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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


ब्रह्मचर्य का अर्थ हैं, मन-वचन से समस्त इन्द्रियो कासंयम। इस संयम के लिए ऊपर बताये गये त्यागो की आवश्यकता हैं, इसे मैं दिन-प्रतिदिन अनुभव करता रहा हूँ और आज भी कर रहा हूँ। त्याग के क्षेत्रकी सीमा ही नहीं हैं, जैसे ब्रह्मचर्य की महिमा की कोई सीमा नहीं हैं। ऐसा ब्रह्मचर्य अल्प प्रयत्न से सिद्ध नहीं होता। करोड़ो लोगों के लिए वह सदाकेवल आदर्श रुप ही रहेगा। क्योंकि प्रयत्नशील ब्रह्मचारी अपनी त्रुटियों का नित्य दर्शन करेगा, अपने अन्दर ओने-कोने में छिपकर बैठे हुए विकारों कोपहचान लेगा और उन्हे निकालने का सतत प्रयत्न करेगा। जब ते विचारो का इतना अंकुश प्राप्त नहीं होता कि इच्छा के बिना एक भी विचार मन में न आये, तबतक ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण नहीं कहा जा सकता। विचार-मात्र विकार हैं, मन को वश में करना; और मन को वश वायु को वश में करने से भी कठिन हैं। फिर भी यदिआत्मा हैं, तो यह वस्तु भी साध्य है ही। हमारे मार्ग में कठिनाइयाँ आकर बाधा डालती हैं, इससे कोई यह न माने कि वह असाध्य हैं। और परम अर्थ के लिएपरम प्रयत्न की आवश्यकता हो तो उसमें आश्चर्य ही क्या।

परन्तु ऐसा ब्रह्मचर्य केवल प्रयत्न- साध्य नहीं हैं, इसे मैंने हिन्दुस्तान मेंआने के बाद अनुभव किया। कहा जा सकता है कि तब तक मैं मूर्च्छावश था। मैंनेयह मान लिया था कि फलाहार से विकार समूल नष्ट हो जाते हैं और मैंअभिमान-पूर्वक यह मानता था कि अब मेरे लिए कुछ करना बाकी नहीं हैं।

पर इस विचार के प्रकरण तक पहुँचने में अभी देर हैं। इस बीच इतना कह देनाआवश्यक हैं कि ईश्वर-साक्षात्कार के लिए जो लोग मेरी व्याख्या वाले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं, वे यदि अपने प्रयत्न के साथ ही ईश्वरपर श्रद्धा रखने वाले हो, तो उनके निराशा का कोई कारण नहीं रहेगा।

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।
रसवजै रसोप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।। गीता 2, 51।।

(निराहारी के विषय तो शान्त हो जाते है, पर उसकी वासना का शमन नहीं होता।ईश्वर-दर्शन से वासना भी शान्त हो जाती हैं।)

अतएव आत्मार्थी के लिए रामनाम और रामकृपा ही अन्तिम साधन हैं, इस वस्तु कासाक्षात्कार मैंने हिन्दुस्तान में ही किया।

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