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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....

धर्म-संकट


मैंने जैसे दफ्तर किराये पर लिया, वैसे ही गिरगाँव में घर भी लिया। पर ईश्वर ने मुझे स्थिर न होनेदिया। घर लिये अधिक दिन नहीं हुए थे कि इतने में मेरा दूसरा लड़का बहुत बीमार हो गया। उसे कालज्वर में जकड़ लिया। ज्वर उतरता न था। बेचैनी भी थी।फिर रात में सन्निपात के लक्षण भी दिखायी पड़े। इस बीमारी के पहले बचपन में उसे चेचक भी बहुत जोर की निकल चुकी थी।

मैंने डॉक्टर की सलाह ली। उन्होंने कहा, 'इसके लिए दवा बहुत कम उपयोगीहोगी। इसे तो अंडे और मुर्गी का शोरवा देने की जरूरत हैं।'

मणिलाल की उमर दस साल की थी। उससे मैं क्या पूछता? अभिभावक होने के नाते निर्णयतो मुझी को करना था। डॉक्टर एक बहुत भले पारसी थे। मैंने कहा, 'डॉक्टर, हम सब अन्नाहारी है। मेरी इच्छा अपने लड़के को इन दो में से एक भी चीज देनेकी कोई उपाय नहीं बताइयेगा?'

डॉक्टर बोले, 'आपके लड़के के प्राण संकट में हैं। दूध और पानी मिलाकर दिया जा सकता हैं, पर इससे उसे पूरापोषण नहीं मिल सकेगा। जैसा कि आप जानते हैं, मैं बहुतेरे हिन्दू कुटुम्बो में जाता हूँ। पर दवा के नाम पर तो हम उन्हे जो चीज दें, वे ले लेते हैं।मैं सोचता हूँ कि आप अपने लड़के पर ऐसी सख्ती न करे तो अच्छा हो।'

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