लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


'आपकहते है, सो ठीक हैं। आपको यही कहना भी चाहिये। मेरी जिम्मेदारी बहुत बड़ी हैं। लड़का बड़ा होता तो मैं अवश्य ही उसकी इच्छा जानने का प्रयत्न करताऔर वह जो चाहता उसे करने देता। यहाँ तो मुझे ही इस बालक के बारे में निर्णय करना हैं। मेरा ख्याल हैं कि मनुष्य के धर्म की परीक्षा ऐसे ही समयहोती हैं। सही हो या गलत, पर मैंने यह धर्म माना है कि मनुष्यो के माँसादिन खाना चाहिये। जीवन के साधनों की भी सीमा होती हैं। कुछ बाते ऐसी है, जोजीने के लिए भी हगे नहीं करनी चाहिये। मेरे धर्म की मर्यादा मुझे अपने लिए और अपने परिवार वालो के लिए ऐसे समय भी माँस इत्यादि का उपयोग करने सेरोकती हैं। इसलिए मुझे वह जोखिम उठानी ही होगी, जिसकी आप कल्पना करते है। पर आपसे में एक चीज माँग लेता हूँ। आपका उपचार तो मैं नहीं करूँगा, किन्तुमुझे इस बच्चे की छाती, नाडी इत्यादि देखना नहीं आता। मुझे पानी के उपचारोका थोड़ा ज्ञान हैं। मैं उन उपचारो को आजमाना चाहता हूँ। पर यदि आपबीच-बीच में मणिलाल की तबीयत देखने आते रहेंगे और उसके शरीर में होने वालेफेरफारो की जानकारी मुझे देते रहेंगे तो मैं आपका उपकार मानूँगा।'

सज्जन डॉक्टर ने मेरी कठिनाई समझ ली और मेरी प्रार्थना के अनुसार मणिलालको देखने आना कबूल कर लिया।

यद्यपि मणिलाल स्वयं निर्णय करने की स्थिति में नहीं था, फिर भी मैंने उसे डॉक्टरके साथ हुई चर्चा सुना दी और उससे कहा कि वह अपनी राय बताये।

'आप खुशी से पानी के उपचार कीजिये। मुझे न शोरवा पीना है, और न अंडे खानेहैं।'

इस कथन से मैं खुश हुआ, यद्यपि मैं समझता था कि मैंने उसे ये दोनों चीजेखिलायी होती तो वह खा भी लेता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book