जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
परआत्महत्या कैसे करें? जहर कौन दें? हमने सुना कि धतूरे के बीज खाने सेमृत्यु होती हैं। हम जंगल में जाकर बीच ले आये। शाम का समय तय किया।केदारनाथजी के मन्दिर की दीपमाला में घी चढ़ाया, दर्शन कियें और एकान्त खोज लिया। पर जहर खाने की हिम्मत न हूई। अगर तुरन्त ही मृत्यु न हुई तोक्या होगा? मरने से लाभ क्या? क्यों न पराधीनता ही सह ली जाये? फिक भी दो-चार बीज खाये। अधिक खाने की हिम्मत ही न पड़ी। दोनों मौत से डरे और यहनिश्चय किया कि रामजी के मन्दिर जाकर दर्शन करके शान्त हो जाये और आत्महत्या की बात भूल जाये।
मेरी समझ में आया कि आत्महत्या का विचार करना सरल हैं, आत्महत्या करना सरल नहीं। इसलिए कोई आत्महत्या करनेका धमकी देता हैं, तो मुझ पर उसका बहुत कम असर होता हैं अथवा यह कहना ठीक होगा कि कोई असर हो ही नहीं।
आत्महत्या के इस विचार का परिणाम यह हुआ कि हम दोनो जूठी बीड़ी चुराकर पीने की और नौकर के पैसे चुराकर पैसेबीड़ी खरीदने और फूँकने की आदत भूल गये। फिर कभी बड़ेपन में पीने की कभीइच्छा नहीं हुई। मैंने हमेशा यह माना हैं कि यह आदत जंगली, गन्दी औरहानिकारक हैं। दुनिया में बीड़ी का इतना जबरदस्त शौक क्यों हैं, इसे मैंकभी समझ नहीं सका हूँ। रेलगाड़ी के जिस डिब्बे में बहुत बीड़ी पी जातीहैं, वहाँ बैठना मेरे लिए मुश्किल हो जाता हैं औऱ धुँए से मेरा दम घुटनेलगता हैं।
बीड़ी के ठूँठ चुराने और इसी सिलसिले में नोकर के पैसे चुराने की के दोष की तुलना में मुझसे चोरी का दूसरा जो दोष हुआ, उसे मैंअधिक गम्भीर मानता हूँ। बीड़ी के दोष के समय मेरी उमर बारह तेरह साल की रही होगी ; शायद इससे कम भी हो। दूसरी चोरी के समय मेरी उमर पन्द्रह सालकी रही होगी। यह चोरी मेरे माँसाहारी भाई के सोने के कड़े के टुकड़े की थी। उन पर मामूली सा, लगभग पच्चीस रुपये का कर्ज हो गया था। उसकी अदायगीके बारे हम दोनो भाई सोच रहे थे। मेरे भाई के हाथ में सोने का ठोस कड़ा था। उसमें से एक तोला सोना काट लेना मुश्किल न था।
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