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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....

चोरी और प्रायश्चित


माँसाहार के समय के और उससे पहले के कुछ दोषों का वर्णन अभी रह गया हैं।ये दोष विवाह से पहले का अथवा उसके तुरन्त बाद के हैं।

अपने एक रिश्तेदार के साथ मुझे बीडी पीने को शौक लगा। हमारे पास पैसे नहीं थे।हम दोनो में से किसी का यह ख्याल तो नहीं था कि बीड़ी पीने में कोई फायदा हैं, अथवा गन्ध में आनन्द हैं। पर हमे लगा सिर्फ धुआँ उड़ाने में ही कुछमजा हैं। मेरे काकाजी को बीड़ी पीने की आदत थी। उन्हें और दूसरो को धुआँ उड़ाते देखकर हमे भी बीड़ी फूकने की इच्छा हुई। गाँठ में पैसे तो थे नहीं,इसलिए काकाजी पीने के बाद बीड़ी के जो ठूँठ फैंक देके, हमने उन्हें चुरानाशुरू किया।

पर बीड़ी के ये ठूँठ हर समय निल नहीं सकते थे, औऱ उनमें से बहुत धुआँ भी नहीं निकलता था। इसलिए नौकर की जेब में पड़े दो-चारपैसों में से हम ने एकाध पैसा चुराने की आदत डाली और हम बीड़ी खरीदने लगे।पर सवाल यह पैदा हुआ कि उसे संभाल कर रखें कहाँ। हम जानते थे कि बड़ो केदेखते तो बीडी पी ही नहीं सकते। जैसे-तैसे दो-चार पैसे चुराकर कुछ हफ्तेकाम चलाया। इसी बीच सुना एक प्रकार का पौधा होता हैं जिसके डंठल बीड़ी कीतरप जलते हैं और फूँके जा सकते है। हमने उन्हें प्राप्त किया और फूँकनेलगे !

पर हमें संतोष नहीं हुआ। अपनी पराधीनता हमें अखरने लगी।हमें दुःख इस बात का था कि बड़ों की आज्ञा के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकतेथे। हम उब गये और हमने आत्महत्या करने का निश्चय कर किया !

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