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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


जो आदमी नया धर्म स्वीकारकरता हैं, उसमें उस धर्म के प्रचार का जोश उस धर्म में जन्मे हुए लोगों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है। विलायत में तो अन्नाहार एक नया धर्म ही था। औऱमेरे लिए भी वह वैसा ही माना जायेगा, क्योंकि बुद्धि से तो मैं माँसाहार का हिमायती बनने के बाद ही विलायत गया था। अन्नाहार की नीति कोज्ञानपूर्वक तो मैंने विलायत में ही अपनाया था। अतएव मेरी स्थिति नये धर्म में प्रवेश करने-जैसी बन गयी थी, और मुझमें नवधर्मी का जोश आ गया था। इसकारण इस समय मैं जिस बस्ती में रहता था, उसमें मैंने अन्नाहारी मण्डल की स्थापना करने का निश्चय किया। इस बस्ती का नाम बेजवॉटर था। इसमे सर एडविनआर्नल्ड रहते थे। मैंने उन्हे उपसभापति बनने को निमंत्रित किया। वे बने।डॉ. ओल्डफील्ड सभापति बने। मैं मंत्री बना। यह संस्था कुछ समय तक तो अच्छीचली, पर कुछ महीनों के बाद इसका अन्त हो गया, क्योंकि मैंने अमुक मुद्दत के बाद अपने रिवाज के अनुसार वह वस्ती छोड़ दी। पर इस छोटे औऱ अल्प अवधिके अनुभव से मुझे संस्थाओं का निर्माण करने औऱ उन्हें चलाने का कुछ अनुभव प्राप्त हुआ।

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