लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


इसअध्याय को समाप्त करने से पहले प्रतिज्ञा के अर्थ के विषय में कुछ कहनाजरुरी हैं। मेरी प्रतिज्ञा माता के सम्मुख किया हुआ एक करार था। दुनियामें बहुत से झगडे केवल करार के अर्थ के कारण उत्पन्न होते हैं। इकरारनामाकितनी ही स्पष्ट भाषा में क्यो न लिखा जाये, तो भी भाषाशास्त्री 'राई कापर्वत' कर देंगे। इसमे सभ्य-असभ्य का भेद नहीं रहता। स्वार्थ सबको अन्धाबना देता हैं। राजा से रंक तक सभी लोग करारों के खुद को अच्छे लगने वालेअर्थ करके दुनिया को, खुद को और भगवान को धोखा देते हैं। इस प्रकारपक्षकार लोग जिस शब्द अथवा वाक्य का अपने अनुकूल पड़नेवाला अर्थ करते हैं,न्यायशास्त्र में उसे द्वि-अर्थी मध्यपद कहा गया हैं। सुवर्ण न्याय तो यह हैं कि विपक्ष ने हमारी बात का जो अर्थ माना हो, वही सच माना जाये ; हमारेमन में जो हो वह खोटा अथवा अधूरा हैं। और ऐसा ही दूसरा सुवर्ण न्याय यह हैकि जहाँ दो अर्थ हो सकते हैं वहीँ दुर्बल पक्ष जो अर्थ करे, वही सच मानाचाहिये। इन दो सुवर्ण मार्गों का त्याग होने से ही अक्सर झगडे होते है और अधर्म चलता हैं। और इस अन्याय की जड़ असत्य हैं। जिसे सत्य के ही मार्ग परजाना हो, उसे सुवर्ण मार्ग सहज भाव से मिल जाता हैं। उसे शास्त्र नहीं खोजने पड़ते। माता ने 'माँस' शब्द का जो अर्थ माना औऱ जिसे मैंने उस समयसमझा, वही मेरे लिए सच्चा था। वह अर्थ नहीं जिसे मैं अपने अधिक अनुभव से या अपनी विद्वत्त के मद में सीखा-समझा था।

इस समय तक के मेरे प्रयोग आर्थिक और आरोग्य की दृष्टि से होते थे। विलायत में उन्होंनेधार्मिक स्वरुप ग्रहण नहीं किया था। धार्मिक दृष्टि से मेरे कठिन प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में हुए, जिन की छानबीन आगे करनी होगी। पर कहा जा सकता हैंकि उनका बीज विलायत में बोया गया था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book