जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
पाठक समझ ले कि यह पत्र मैंने क्षणभर में नहींलिख डाला था। न जाने कितने मसविदे तैयार किये होगें। पर यह पत्र भेज कर मैंने अपने सिर का एक बड़ा बोझ उतार डाला। लगभग लौटती डाक से मुझे उसविधवा बहन का उत्तर मिला। उसने लिखा था :
'खुले दिल से लिखा तुम्हार पत्र मिला। हम दोनो खुश हुई और खूब हँसी। तुमने जिस असत्य से कामलिया, वह तो क्षमा के योग्य ही हैं। पर तुमने अपनी सही स्थिति प्रकट कर दीयह अच्छा ही हुआ। मेरा न्योता कायम हैं। अगले रविवार को हम अवश्य तुम्हारीराह देखेंगी, तुम्हारे बाल-विवाह की बाते सुनेंगी और तुम्हार मजाक उड़ाने का आनन्द भी लूटेंगी। विश्वास रखो कि हमारी मित्रता तो जैसी थी वैसी हीरहेगी।'
इस प्रकार मैंने अपने अन्दर घुसे हुए असत्य के विष कोबाहर निकाल दिया और फिर अपने विवाह आदि की बात करने में मुझे कही घबराहटनहीं हुई।
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