लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....

धर्मों का परिचय


विलायत में रहते हुए मुझे कोई एक साल हुआ होगा। इस बीच दो थियॉसॉफिस्ट मित्रो सेमेरी पहचान हुई। दोनो सगे भाई थे और अविवाहित थे। उन्होंमे मुझसे गीता की चर्चा की। वे एडविन आर्नल्ड की गीता का अनुवाद पढ रहे थे। पर उन्होंनेमुझे अपने साथ संस्कृत में गीता पढ़ने के लिए न्योता। मैं शरमाया, क्योंकि मैंने गीता संस्कृत में या मातृभाषा में पढ़ी ही नहीं थी। मुझे उनसे कहनापड़ा कि मैंने गीता पढ़ी ही नहीं पर मैं उसे आपके साथ पढ़ने के लिए तैयारहूँ। संस्कृत का मेरा अभ्यास भी नहीं के बराबर ही हैं। मैं उसे इतना हीसमझ पाऊँगा कि अनुवाद में कोई गलत अर्थ होगा तो उसे सुधार सकूँगा। इसप्रकार मैंने उन भाईयों के साथ गीता पढ़ना शुरू किया। दूसरे अध्याय केअंतिम श्लोको में से

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोत्तभिजायते।।
क्रोधाद् भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

(विषयो का चिन्तन करने वाले पुरुष को उन विषयों में आसक्ति पैदा होती हैं। फिरआसक्ति से कामना पैदा होती हैं और कामना से क्रोध पैदा होता हैं, क्रोध सेमूढ़ता पैदा होती हैं, मूढ़ता से स्मृति-लोप होता हैं और स्मृति-लोप सेबुद्धि नष्ट होती हैं। और जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती हैं उसका खुद का नाशहो जाता हैं।)

इन श्लोको को मेरे मन पर गहरा असर पड़ा। उनकी भनक मेरे कान में गूंजती ही रही। उस समय मुझे लगा कि भगवद् गीता अमूल्य ग्रंथहैं। यह मान्यता धीरे-धीरे बढ़ती गयी, और आज तत्त्वज्ञान के लिए मैं उसेसर्वोत्तम ग्रन्थ मानता हूँ। निराशा के समय में इस ग्रंथ ने मेरी अमूल्यसहायता की हैं। इसके लगभग सभी अंग्रेजी अनुवाद पढ़ गया हूँ। पर एडविनआर्नल्ड का अनुवाद मुझे श्रेष्ठ प्रतीत होता हैं। उसमें मूल ग्रंथ के भावकी रक्षा की गयी हैं, फिर भी वह ग्रंथ अनुवाद जैसा नहीं लगता। इस बारमैंने भगवद् गीता का अध्ययन किया, ऐसा तो मैं कह ही नहीं सकता। मेरेनित्यपाठ का ग्रंथ तो वह कई वर्षो के बाद बना। इन्हीं भाईयों ने मुझेसुझाया कि मैं आर्नल्ड का बुद्ध-चरित पढ़ूँ। उस समय तक तो मुझे सर एडविनआर्नल्ड के गीता के अनुवाद का ही पता था। मैंने बुद्ध-चरित भगवद् गीता से भी अधिक रस-पूर्वक पढ़ा। पुस्तक हाथ में लेने के बाद समाप्त करके ही छोड़सका।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book