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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


'आपकेआने से मुझे खुशी हुई हैं। आशा हैं, यहाँ आप सुखपूर्वक रहेगेम और यहाँ के लोगों का परिचय प्राप्त करेंगे। ईश्वर आपका कल्याण करे। ' यह कह करकार्डिनल खड़े हो गये।

एक बार नारायण हेमचन्द्र मेरे यहाँ धोती कुर्ता पहनकर आये। भली घर-मालकिन में दरवाजा खोला और उन्हें देख कर डरगयी। मेरे पास आकर (पाठकों को याद होगा कि मैं अपने घर बदलता ही रहता था। इसलिए यह मालकिन नारायण हेमचन्द्र को नहीं जानती थी।) बोली, 'कोई पागल साआदमी तुमसे मिलना चाहता हैं।' मैं दरवाजे पर गया तो नारायण हेमचन्द्र को खड़ा पाया। मैं दंग यह गया। पर उसके मुँह पर तो सदा की हँसी के सिवा औरकुछ न था।

'क्या लड़को ने आपको तंग नहीं किया?'

जवाब में वे बोले, 'मेरे पीछे दौड़ते रहे। मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया,इसलिए वे चुप हो गये।'

नारायण हेमचन्द्र कुछ महीने विलायत रहकर पेरिस गये। वहाँ फ्रेंच का अध्ययन शुरूकिया और फ्रेंच पुस्तकों का अनुवाद करने लगे। उनके अनुवाद को जाँचने लायकफ्रेंच मैं जानता था, इसलिए उन्होंने उसे देख लेने जाने का कहा। मैंनेदेखा कि वह अनुवाद नहीं था, केवल भावार्थ था।

आखिर उन्होंने अमेरीका जाने का अपनी निश्चय पूरा किया। बड़ी मुश्किल से डेक का या तीसरेदर्जे के टिकट पा सके थे। अमेरीका में धोती-कुर्ता पहनकर निकलने के कारण'असभ्य पोशाक पहनने' के अपराध में वे पकड़ लिये गये थे। मुझे याद पड़ताहैं कि बाद में वे छूट गये थे।

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