नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
[दृश्य परिवर्तन]
[जैसा कि ऊपर कहा गया है? उस अवस्था में शकुन्तला और उसकी सखियां दिखाई देती हैं।]
सखियां : (बड़े प्यार से शकुन्तला को पंखा झलती हुई) सखि शकुन्तला! इन कमल के पत्तों के झलने से तुम्हें कुछ ठण्डक भी पहुंच रही है कि नहीं?
शकुन्तला : सखियो! क्या तुम मुझे पंखा झल रही हो?
[सखियां दुःखी होने का अभिनय करती-सी एक-दूसरे को देखती हैं।]
राजा : शकुन्तला तो बहुत ही अस्वस्थ शरीर-सी दिखाई दे रही है।
[सोचकर]
क्या इसे लू लग गई है? या कहीं ऐसा तो नहीं है कि जो दशा मेरे मन की हो रही है, वही इसके मन की भी हो रही हो?
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