लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल

अभिज्ञान शाकुन्तल

कालिदास

प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6162
आईएसबीएन :9788170287735

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

333 पाठक हैं

विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...


[दृश्य परिवर्तन]

[जैसा कि ऊपर कहा गया है? उस अवस्था में शकुन्तला और उसकी सखियां दिखाई देती हैं।]

सखियां : (बड़े प्यार से शकुन्तला को पंखा झलती हुई) सखि शकुन्तला! इन कमल के पत्तों के झलने से तुम्हें कुछ ठण्डक भी पहुंच रही है कि नहीं?

शकुन्तला : सखियो! क्या तुम मुझे पंखा झल रही हो?

[सखियां दुःखी होने का अभिनय करती-सी एक-दूसरे को देखती हैं।]

राजा : शकुन्तला तो बहुत ही अस्वस्थ शरीर-सी दिखाई दे रही है।

[सोचकर]

क्या इसे लू लग गई है? या कहीं ऐसा तो नहीं है कि जो दशा मेरे मन की हो रही है, वही इसके मन की भी हो रही हो?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book