नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
[तभी हाथों में उपहार लिये दो ऋषिकुमारों का प्रवेश]
ऋषिकुमार : (आभूषण देते हुए।) यह लीजिए, आभूषण। इनसे देवी का श्रृंगार कीजिए।
[आभूषण देखकर सभी चकित-सी होती हैं।]
गौतमी : वत्स नारद! यह सब तुम को कहां से मिल गये?
शिष्य : पिता कण्व के प्रभाव से प्राप्त हुए हैं।
गौतमी : क्या उन्होंने अपने तप-बल से तत्काल उत्पन्न किए हैं?
अन्य शिष्य : नहीं, ऐसा नहीं है। सुनिए, पूज्य महात्मा कण्व ने हमें निर्देश दिया था कि हम शकुन्तला के श्रृंगार के लिए लता-वृक्षों से फूल-पत्ते ले आयें।
तो इस पर-
किसी वृक्ष ने शुभ मांगलिक वस्त्र दे दिया, किसी ने पैरों में लगाने की महावर दे दी और वनदेवियों ने तो कोंपलों से प्रतिस्पर्द्धा करके वृक्षों में से कलाई तक अपने हाथ निकाल कर बहुत से आभूषण दे डाले।
प्रियंवदा : (शकुन्तला को देखकर) सखी! ये लक्षण यही प्रकट करते हैं कि पति के घर में तुम राजलक्ष्मी बनकर समस्त सुखों का उपयोग करोगी।
[शकुन्तला लज्जा का अभिनय करती है।]
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