नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
|
333 पाठक हैं |
विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
[दृश्य परिवर्तन]
[नेपथ्य में]
आश्चर्य है, आश्चर्य है। यह क्या हो गया?
राजा : (कान-लगाकर) अरे, अब क्या हो गया?
[प्रवेश करके]
पुरोहित : (आश्चर्य से) महाराज! बड़े आश्चर्य की बात हो गई है।
राजा : क्यों, क्या हो गया है?
पुरोहित : महाराज! कण्व ऋषि के शिष्यों के जाने के उपरान्त वह ऋषिकन्या जब बांहें पसारकर रोने लगी तो...
राजा : (उत्सुकता से) हां तो फिर, उस समय क्या हो गया?
पुरोहित : त्यों ही स्त्री के समान एक ज्योति-सी आई और उस ऋषिकन्या को अपनी गोद में उठाकर अप्सरा तीर्थ की ओर चली गई।
[सब आश्चर्य प्रकट करते हैं।]
राजा : भगवन्! हमने तो उसको पहले ही छोड़ दिया था। आपने मार्ग निकालकर अपने घर ले जाना चाहा, वह इस प्रकार कहीं अन्यत्र चली गई है, अब उस पर सोच-विचार करना व्यर्थ है। अब आप भी अपने घर जाकर विश्राम कीजिये।
पुरोहित : (इधर-उधर देखकर) महाराज की जय हो।
[पुरोहित का प्रस्थान]
राजा : (प्रतिहारी से) वेत्रवती! मेरा चित्त बड़ा व्याकुल-सा होने लगा है। मैं विश्राम करना चाहता हूं।
प्रतिहारी : आइये, महाराज! इधर से आइये।
[आगे-आगे चलती है।]
राजा : सोचता हुआ यद्यपि विवाह की सुधि न होने से मैंने उसका अत्यन्त तिरस्कार कर दिया है फिर भी मेरा हृदय न जाने क्यों रह-रहकर उसकी बातों पर विश्वास करने का हो उठता है। मेरे हृदय में यह कसक-सी क्यों होने लगी है?
[सब चले जाते हैं।]
[पटाक्षेप]
|