लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


आपको यह भी समझना है कि जब हम ऐसी नाजुक हालत में पड़े हैं, तब हमें आप छोटी-छोटी बातों पर तंग न करें। आज जब हिन्दुस्तान की यह हालत है, दुनिया की यह नाजुक हालत है, तब हमें क्या करना चाहिए? इस नाजुक हालत में अगर हम अपनी हुकूमत को ठीक नहीं चला पाएँगे, अगर उसे चलाने में आप साथ नहीं देंगे, तो हमारे देश को नुकसान होगा। इसलिए आज आप को केन्द्रीय सरकार का और प्रान्तों में जो हमारी हुकूमतें हैं, उनका साथ देना चाहिए। तो आज आप जो लाखों आदमी यहॉं जमा हुए हैं, आप जो कलकत्ता के निवासी हैं, मैं आप लोगों से बड़ी अदब से कहना चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान की ऐसी हालत में आपको हमारा एक मेसेज (सन्देश) देशभर में फैला देना चाहिए। वह सन्देश यह है कि आज देश की हालत बहुत नाजुक है, और उसमें हमें कोई हड़ताल नहीं करनी चाहिए, न कोई दूसरा तूफान खड़ा करना चाहिए। आज तो हम सब को मिल कर काम करना चाहिए।
इधर कुछ लोग कहते हैं कि भई, हमारे यहाँ सेक्युलर स्टेट (धर्म-निरपेक्ष सरकार) चाहिए। यहाँ हिन्दुओं का साम्प्रदायिक राज नहीं होना चाहिए। कौन कहता है कि यहां साम्प्रदायिक राज बनाओ? हिन्दुस्तान में तो आज भी तीन-चार करोड़ मुसलमान पड़े हैं। यहां साम्प्रदायिक राज कैसे हो सकता है? लेकिन एक बात यह है कि हिन्दुस्तान में जो मुसलमान पड़े हैं, उनमें से काफी लोगों ने, शायद ज्यादातर लोगों ने, पाकिस्तान बनाने में साथ दिया था। ठीक है। अब एक रोज में, एक रात में उनका दिल बदल गया, वह मेरी समझ में नहीं आता। अब वे सब कहते हैं कि हम वफादार हैं, और हमारी वफादारी में शंका क्यों करते हो? अपने दिल से पूछो! यह बात आप हम से क्यों पूछते हैं? यह हमसे पूछने की बात नहीं है। लेकिन अब मैं एक बात कहता हूँ कि आपने पाकिस्तान बनाया, आपको मुबारक। उसमें हम कोई दखल देना नहीं चाहते। जो कुछ हो गया, सो हो गया। अब जैसे हम बैठे हैं, ठीक बैठे हैं। कोई-कोई कहते हैं कि हिन्दोस्तान और पाकिस्तान फिर एक हो जाएँ। मैं कहता हूँ कि अब वह सब कुछ नहीं हो सकता। उन्हें वहीं बैठा रहने दो। जो भाई पाकिस्तान में चले गए हैं, उनको पाकिस्तान को अच्छा बनाने दो। पाकिस्तान जब स्वर्ग बन जाएगा, तब हम को भी उसकी ठंडी हवा लगेगी। यही ठीक है। आप लोग जब ऐसी बात कहते हैं तो उनको शंका पैदा होती है। ऐसी बात हम क्यों करें? अपने को मजबूत बनाओ, तगड़ा बनाओ।
पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है। अगर वह मजबूत होता है, तो बहुत अच्छी बात है। उससे हमको कोई नुकसान नहीं है। वह ठीक है। लेकिन बहुत दफा ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तान मिटाने के लिए, उसको बरबाद करने के लिए उन के दुश्मन लोगों ने कौन्स्पिरेसी (षड्यन्त्र) की है। मैं पाकिस्तान के लीडरों से बार-बार कहना चाहता हूँ कि पाकिस्तान का कोई भी दुश्मन क्यों न हो, मगर अगर कोई कौन्स्पिरेसी हैं, तो वह पाकिस्तान में ही पड़ी हैं। बाहर कहीं कोई कौन्स्पिरेसी नहीं हैं। वह तो वहाँ भीतर ही पड़ी है। जितने दुश्मन हैं, सब वहां ही हैं इधर कोई नहीं है। हम तो उनका कोई बुरा नहीं चाहते हैं। हम क्यों उनका बुरा चाहें? हमने तो राजी-खुशी से तुम्हारा हिस्सा तुमको दे दिया कि जाओ पाकिस्तान बनाओ। लेकिन अगर कोई हमारी आँख में धूल फेंकने के लिए आए, तो हम कहेंगे कि हम इस तरह से नहीं करने देंगे। अब इस तरह काम नहीं चलेगा। अब हमारा जो हिन्दुस्तान बाकी बच रहा है, उसको छोड़ दो। हिन्दुस्तान में हिन्दोस्तानियों को काम करने दो। उसमें आप कोई दखल मत दो। हम आपके काम में कोई दखल नहीं देंगे।
आप देख लीजिए कि हम ने किस तरह बंटवारा किया। तो जितनी चीज थी, उस सब चीज में बहुत उदारता से हमने उनको उनके हिस्से से भी ज्यादा देने की कोशिश की। जब हमने उनको रुपया देने का किया, उस समय हमने कह दिया था कि आपको यदि पांच सौ करोड़ रुपया चाहिए और इतना हिस्सा लेने का आपका हक न हो, तो हम ज्यादा देने के लिए भी तैयार हैं। लेकिन मैंने लिखकर दे दिया था कि अगर इन रुपयों से आपको काश्मीर में गोली चलानी हो, तो हम इस तरह से रुपया नही देंगे। हाँ, तुम में ताकत हो तो ले जाओ। ठीक है। हम खुशी से रुपया तो तब देंगे, जब यह सब फैसला हो जाए। जो आपका रुपया है, उसमें हम कोई दखल नहीं देंगे। हमने आपके साथ मिल कर जो फैसला किया, वह तो एक कन्सेण्ट (रजामन्दी का देना-पावना) डिक्री है। लेकिन रजामन्दी से जो फैसला होगा, वही तो लागू होगा। तो जिस रोज काश्मीर का फैसला हो जाए, उस रोज पैसा ले जाओ। इसी तरह कुछ लोग कहते है कि हमारा पैसा नहीं देते और जो कुछ आपने फैसला किया, उसमें से पलट जाना चाहते हैं। हमारी पलटने की नीयत नही है। अगर हमारी यह नीयत होती, तो हम फैसला करते ही क्यों। तब हम कहते कि जाओ कोर्ट में। हमने इस तरह से काम नहीं किया। तो मैं बार-बार उन्हें सुनाना चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ हमारी कोई अदावत नहीं है, और न हम कोई बुराई करना चाहते हैं। तुम्हारे साथ हमें कोई झगड़ा भी नहीं करना। लेकिन हम यही कहते हैं कि आप मेहरबानी करके हमें इधर पड़े रहने दीजिए, हमें यहां अपना काम करने दीजिए।
इधर मैं आप लोगों से भी कहना चाहता हूँ कि मेहरबानी करके आप आपस में झगड़ा छोड़ दीजिए। थोड़े दिन हमें लगकर काम करने दीजिए। यदि परदेशियों ने यहाँ दो सौ साल बिगाड़ किया, और देश की हुकूमत बुरी तरह से चलाई, तो एक दो साल हमको भी थोड़ा बिगाड़ कर लेने दीजिए। देखिए तो सही, यहाँ क्या चीज होती है। क्योंकि हम यदि बिगाड़ करेंगे, तो उस बिगाड़ से भी कुछ अच्छा ही होगा, बुरा नहीं होगा। यह आप समझ लीजिए। आज हमारा प्रथम काम यह है कि हमारे मुल्क में ज्यादा माल पैदा हो, इस धरती में से ज्यादा अनाज पैदा हो, हमारे मुल्क में बहुत से कारखाने बनें और कारखानों में बहुत माल पैदा हो। तभी हमारे मजदूर भी तगड़े हो सकेंगे। अमेरिका को देखिए, वह दुनिया का सब से अधिक धनिक मुल्क है। वहाँ मजदूर भी तगड़े हैं, मालिक भी तगड़े हैं, और सब लोग भी वहाँ तगड़े हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book