इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
वहां किसी प्रकार का कोर्ड संकट नहीं है। इंग्लैण्ड में आज मजदूरों का राज्य है। वहाँ भी बार-बार इस प्रकार की स्ट्राइक (हड़ताल) नहीं चलती। वे भी इसी फिक्र में है कि उनके कारखाने किस तरह से ज्यादा चलें और ज्यादा-से-ज्यादा माल किस तरह से पैदा करें।
हिन्दुस्तान की किस्मत में एशिया की लीडरशिप के लिए लियाकत चाहिए। आज हमें कितनी ही प्रकार की चीजों के लिए बाहर जाना पड़ता है। बाहर से भी जरूरत की चीजें मिल नहीं रही हैं। सब जगह से हम तंग हो रहे हैं। इस हालत में हमें अपने ही मुल्क में ज्यादा से ज्यादा माल पैदा करना है। मगर वे कहते हैं कि ''गो स्लो''! (धीरे चलो)। जरा धीमे पैदा करो। यानी हड़ताल करो। इस प्रकार का काम करने से तो न मजदूरों का भला होगा और न देश का भला होगा। दुनिया कहेगी कि एक बन्दर के पास एक हीरा हाथ में आया, तो बन्दर ने समझा कि कोई फल है। हीरा हाथ में पकड़ वह उसे खाने लगा। मगर वह हीरा था, जब वह कदर के दाँतों से न टूटा, तो उसने यह समझ कर उसे फेंक दिया कि वह तो पत्थर है। हीरे का दाम तो जौहरी ही समझ सकता है। इसी प्रकार अब देखना यह है कि हमारे हाथ में आज जो स्वराज्य आया है, उसका व्यवहार हम बन्दर की तरह करेंगे या जौहरी की तरह।
जहाँ तक हमारा सम्बन्ध है, हमने तो परदेशियों की हुकूमत को हटाने का ठेका लिया था। वह हमने पूरा किया और आज हमारी जिन्दगी पूरी होने का भी समय आ गया है। अगला बोझ तो अब इन नौजवानों पर पड़ने वाला है, जो कहते हैं कि हमारी लीडरशिप पुरानी हो गई। मैं नौजवानों से कहता हूँ कि अगर तुम ठीक तरह से यह बोझ नहीं उठाओगे, तो आप भी मर जाओगे और मजदूर भी मर जाएँगे। आप को इस प्रकार काम नहीं करना चाहिए, जिस से हिन्दोस्तान का नुकसान हो। आज जरूरत इस बात की है कि हम ज्यादे-से-ज्यादा और अच्छी-से-अच्छी आर्मी (सेना) रक्खें। ताकि दुनिया के किसी मुल्क से हमें भय न रहे। यह काम सारा देश मिल कर ही कर सकेगा।
अब आप लोगों ने जिस प्रेम से मेरा स्वागत किया है, जिस मुहब्बत से मेरी बात सुनी है, उसके लिए मैं आपको मुबारकबाद देना चाहता हूँ। आप लोग इतने प्रेम से और इतनी बड़ी संख्या में यहाँ जमा होने हैं। उसका मतलब मैं यह भी समझता हूँ कि आप लोगों में कांग्रेस के प्रति पूरी वफादारी और भक्ति है। आप के प्रान्त का जो टुकड़ा हुआ है, उस की चोट लगते हुए भी आपको हम पर इतना विश्वास है कि ये लोग जो काम करते हैं, समझबूझ कर आप की भलाई के लिए ही करते हैं। कांग्रेस आपके हित के लिए ही काम करती है। सो मैं आप को भी विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि बंगाल का टुकड़ा हो जाने से जितनी चोट आप को लगी है, इससे ज्यादा नहीं तो, इतनी ही चोट हम को भी लगी है। आप ऐसा कभी न समझें कि हमें चोट नहीं लगी। लेकिन जब तक फल पका न हो, तब तक उसे खाने में मजा नहीं। जब फल पकता है, तभी उसमें मिठास आती है।
मैंने जैसा कहा, जब तक पाकिस्तान को यह समझ न आ जाए कि यह काम बुरा है, तब तक हमें उसको बुलाना नहीं है। तो धीरज रखो। धीरज रख कर अपना काम ठीक करो। दूसरे के सामने न झुको और जो चीज हो गई है, उसको याद मत करो। आगे का रास्ता सोचो। आगे की मंजिल काटने के उपाय सोचो। यह करोगे तो पीछे वाला अपने आप ठीक हो जाएगा। फिर उसमें कुछ भी करने की कोई जरूरत आपको नहीं रहेगी। हमने आगे की भी सोची है, पीछे की भी सोची है। और सोच-विचार कर हमने जो निष्कर्ष निकाला है, वह मैं आपको कहना चाहता हूँ। हमने आज देश का दो टुकड़ा न किया होता, तो हिन्दुस्तान का टुकड़ा-टुकड़ा हो जाने वाला थ।। पाकिस्तान तो हुआ, उससे भी बुरा राजस्थान हो जाने वाला था। रियासतों का भी टुकडा करने का था कि अलग-अलग एक राजस्थान बनाओ, या छोटे-छोटे राजाओं को मिला कर अनेक राजस्थान बनाओ। तब ऐसी बहुत सी बातें चलती थीं। लेकिन अब हम उन सब चीजों में से निकल आए हैं। आज जो हिन्दुस्तान बाकी बच रहा है, वह भी बहुत बड़ा मुल्क है। इतने बड़े मुल्क को हम ताकतवान बनाएँ, तो जितने टुकड़े हमारे आसपास पड़े हैं, वे सब हमारी छाया में चले आएँगे। आप को कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं है। लेकिन इस चीज में आप को हमारा साथ देना पड़ेगा।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950