इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
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शिवाजी पार्क, बम्बई
१८ जनवरी, ११४८
बहनो और भाइयो,
कल चौपाटी पर जो सभा हुई थी, उसमें मैंने बहुत-सी बातें कह दी थीं और आप लोगों ने वे बातें समझ भी ली होंगी। क्योंकि या तो रेडियो आपने सुना होगा और या अखबारों में देख लिया होगा। जैसा भाई पाटिल ने आपको बताया, कल हमारे दिलों में बहुत दर्द भरा हुआ था। आज हमारा दर्द कुछ कम हुआ है, क्योंकि गान्धी जी का उपवास टूट गया है। लेकिन तो भी यह तो हमारे ही कामों का नतीजा है कि उनको हम ऐसी हालत में रख देते हैं कि उनको उपवास करना पड़ता है। वह दर्द तो हमको हो ही जाता है। क्योंकि जब गान्धी जी उपवास करते हैं तो यह चीज़ कोई हिन्दुस्तान में ही नहीं रहती है। यह सारी दुनिया में फैल जाती है। तब सारी दुनिया सोचने लगती है कि कोई ऐसी चीज़ है, जिसके लिए इस महान पुरुष को उपवास करना पड़ता है। क्योंकि आज के युग में सारी दुनिया मानती है कि वह सबसे बड़ी हस्ती है। दुनिया में जो एक ऐसा महान पुरुष है, उसको उपवास क्यों करना पड़ता है? सो हम चाहते हैं कि वैसा मौका फिर पैदा न हो कि उनको फाका करना पड़े।
अब गान्धी जी का फाका छूट गया, तो यह बहुत खुशी की बात है। लेकिन फाका छूटने के बाद भी, अगर वे कारण कायम रहे, जिन के लिए उनको फाका करना पड़ा, तो वह उससे भी बुरा होगा। तो उसके लिए उसका रहस्य हमें समझ लेना चाहिए। तो मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि जो कुछ आज हुआ, वह तो हो गया। लेकिन अब हमें हिन्दुस्तान में कम-से-कम इतनी आबोहवा जरूर पैदा कर लेनी चाहिए कि यहाँ दो कौमों के बीच जो जहर भरा है, वह निकल जाए। हिन्दुस्तान में रहनेवाले सिक्ख, हिन्दू तथा मुसलमान दोनों के बीच दोनों के हितों में, जो अन्तर बन गया है, वह टूट जाए और वे एक दूसरे के साथ मिलकर रहें, ऐसी आबोहवा हमें पैदा करनी चाहिए। मैं जानता हूँ कि यह काम कठिन है, आसान नहीं है। क्योंकि जो हालत वहां पाकिस्तान में बनती है, उसका कुछ-न-कुछ असर हमारे मुल्क पर पड़ता ही है। लेकिन जब हमने हिन्दुस्तान के दो टुकड़े मंजूर कर लिए, तो हमें समझना चाहिए कि वहाँ कुछ भी हो इधर हमारी जो जिम्मेवारी है, वह हमको अदा करनी ही है। अगर हम उसे अदा न करें, तो हमारा काम नहीं चलेगा।
तो आज उसके बारे में मैं ज्यादा नहीं कहूँगा। लेकिन मैं एक बात जरूर कहना चाहता हूँ, जो आपको अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए। आपने आजादी हासिल की, मुल्क को परदेसी हुकूमत में से मुक्त किया। लेकिन इतनी कुर्बानी करने के बाद हमारा उद्देश्य तो पूरा हो गया, तब भी जितनी खुशी हम लोगों को होनी चाहिए, वह हमें नहीं हुई। उसका कारण यह है कि एक तरह से हमने आजादी तो पाई। लेकिन उसके बाद हिन्दुस्तान को जिस रास्ते पर हमें ले जाना था, उस रास्ते पर हम उसे ले नहीं जा सके। जिस प्रकार का हमारा स्वराज्य होना चाहिए था, वैसा हम बना नहीं सके। तो हमारे चन्द लोग यह बात नहीं समझते हैं और कहते हैं कि यह राज तो वैसे ही चलता है, जैसे पुराना राज चलता था। कई नवजवान कहते हैं कि यह राज चलाने वाले धनिकों के हाथ में पड़े हैं। यह तो कैपिटलिस्ट (पूंजीपति) की गवर्नमेंट है। वह लोग नहीं समझते हैं कि हम लोगों ने इतने थोड़े समय में कितना काम किया है।
मैंने चन्द बातें कल बताई थीं कि हमने क्या-क्या किया और कितने रोज में किया। हमने १५ अगस्त को पावर (शक्ति) ली। उसे अभी ५ महीने से ज्यादा नहीं हुआ। अब इन पाँच महीनों में हमने जो काम किया, वह मैंने मुख्तसिर तौर पर बताया कि हमने दो प्रान्तों के टुकड़े किए और हमारी जो माल-मिलकियत थी, सारी हिन्दुस्तान की गवर्नमेंट की जो जगह थी, जो जागीर थी, उस सबका टुकड़ा किया और उसे आपस में बैठ कर बांट लिया। हमें किसी अदालत में नहीं जाना पड़ा, कोई पंच नहीं करना पडा। हमने आपस में बैठकर सब तै कर लिया। इसी बीच में हमने लाखों आदमियों की अदला-बदली कर ली। यह सब हमने बड़ी मुसीबत की हालत में किया, क्योंकि हमने बैठकर आपस में समझौता करके लोगों की अदला-बदली नहीं की। यहाँ तो लोगों को जबरदस्ती भागना पड़ा, अपनी खुशी से जाने का मौका नहीं मिला। उसमें लोगों पर बहुत संकट आया। हमको भी बहुत परेशानी हुई। भाग-भागकर लोग दिल्ली में आए ओर दिल्ली में भी ऐसी हालत पैदा हो गई कि हमारे लिये राज चलाना भी मुश्किल हो गया। अब यह सब बातें तो हुई। लेकिन जो और बातें हुईं, और जो मैंने कल नहीं कही थी, वह मैं आज आप से कहना चाहता हूँ।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950