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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


हमारी राज चलाने की जो सर्विस थी, जो नौकर वर्ग उसमें थे, उनका भी हमें दो हिस्सा करना पड़ा। जो अमलदार वर्ग थे और छोटे-छोटे नौकर थे, उन सब का भी हमें दो हिस्सा करना पड़ा। तो जितने मुसलमान थे, वे तो भागकर उस तरफ चले गए और जितने हिन्दू और सिक्ख थे, वे इस तरफ आ गए। हमारी तरफ तो कुछ मुसलमान रहे भी, लेकिन वहाँ तो कोई भी नहीं रहा। गवर्नर जेनरल से लेकर चपरासी तक देश में जितने आफिसर और नौकर थे, उन सब को कहा गया कि आप पसन्द कर लीजिए कि आपको कहां जाना है। तो अपनी ओर जितने मुसलमान यहाँ थे, उन में से ज्यादातर अपनी पसन्दगी से वहां चले गए। लेकिन हिन्दू-सिख तो उधर एक भी न रहे। सब-के-सब चले आए। कितने ही सालों से अँग्रेजों ने हमारी हुकूमत चलाने के लिए एक तन्त्र बनाया था, जिसको 'लोहे की चौखटी' यानी 'स्टील फ्रेम' कहते हैं। यह वज्र का बना हुआ एक फ्रेम था, जिसको सिविल सर्विस कहते हैं। यह कोई पन्द्रह सौ आदमियों की एक सर्विस थी। यह पन्द्रह सौ अफ्सर सारे हिन्दुस्तान का राज्य चलाते थे। बहुत साल से और बड़ी मजबूती से वह राज्य चला रहे थे। जब यह फैसला हुआ, तब हमारे पास पन्द्रह सौ आफिसर थे। उसमें २५ फीसदी अँग्रेज थे। वे सभी तो भागकर चले गए। कोई दो-तीन फीसदी रहे हों, तो वे भी चलते चले गए। तो वह जो फ्रेम था, आधा तो' टूट गया। अब जो बाकी रहा, उसमें से जितने मुसलमान थे, वह सब भी चले गए। उनमें से चन्द लोग यहाँ रहे, बाकी सब चले गए। आजादी प्राप्त कर लेने के बाद हमारा और मुल्कों के साथ व्यवहार शुरू हुआ और बड़े-बड़े देशों में हमें अपने एलची भेजने पड़े। उन एलचियों के साथ अच्छे-अच्छे चुनिन्दे आफिसर भी हमें भेजने पड़े। नतीजा यह हुआ है कि आज हमारे पास पुरानी सर्विस के लोगों का सिर्फ चौथा हिस्सा बच रहा है, और इसी २५ फीसदी सर्विस से हम हिन्दुस्तान का सारा कारोबार चला रहे हैं। नई सर्विस तो हमारे पास कोई है नहीं। वह तो हमें बनानी पड़ेगी। इस तरह से तो लोग मिलते नहीं, और जिसके पास अनुभव नहीं है, जिसने कभी काम नहीं किया, वैसे आदमियों को ले लेने से तो काम चलता नहीं है।

राज चलाने के तन्त्र का तीन हिस्सा टूट गया। सिर्फ चौथा हिस्सा बाकी रहा है, और उसी से हम काम चला रहे हैं। इस पर भी पिछले चार पाँच महीनों में हमने इतना काम कर लिया। और साथ-ही-साथ कांस्टीच्यूएन्ट असेम्बली में हमारा जो नया संविधान बनाने को है, वह करीब-करीब सब पूरा कर लिया है। खाली उसको अच्छी तरह से कानून के रूप में रखने का काम ही बाकी बच रहा है। संविधान के सब सिद्धान्त हमने तै कर लिए हैं। वह भी तो बहुत बड़ा काम था, वह हमने पूरा कर लिया।

जब हमने चार-पाँच महीने में इतना काम कर लिया, तो जो भाई कहते हैं कि आप लोग तो पुराने ढंग से काम करते हैं और अगर आप इसी तरह से काम चलाएँगे, तो हम उसको पसन्द नहीं करेंगे और कांग्रेस में से निकल जाएँगे, तो वह क्या ठीक है? अगर वे निकल जाएँगे और मुल्क की बदकिस्मती होगी, तो सम्भव है कि कांग्रेस टूट जाए। हो सकता है कि हम भी उन से आजिजी करें कि भाई, हमारे साथ रहो। लेकिन हमारी समझ में नहीं आता कि यह क्या बात है कि कुछ लोग अपनी आँख से देखते हुए भी कि मुल्क में इतना कुछ हो रहा है, यह अनुभव नहीं करते कि उसमें हमारी भी कोई जिम्मेवारी है। उन्हें यह सोचना चाहिए कि बोझ उठाने में उनका भी कोई हिस्सा होना चाहिए, न कि जो लोग बोझ उठाते हैं खाली उनकी पीठ पर गाली ठोकते रहना ही उनका काम है। जब मुल्क का टुकड़ा हुआ तो आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी में सब की राय ली गई कि पाकिस्तान को हिन्दुस्तान से अलग करना चाहिए या नहीं। तो उस वक्त जो लोग अपनी राय न बना सके, अब वे लोग हमसे कहते हैं कि आप तो पुराने ढंग से राज करते हो।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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