स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
हमने एक दफा फैसला किया कि मुल्क में आज अनाज का जो कंट्रोल और राशनिंग है, वह बहुत तकलीफदेह है। शहरों में तो उसकी कुछ न-कुछ जरूरत है, लेकिन देहात में लोगों को उससे बहुत कष्ट होता है। किसान लोग बहुत माँग करते हैं कि यह कंट्रोल हटाना चाहिए। शहर में भी बहुत-से लोग यही बात कहते हैं। हमने बार-बार प्रान्तों के वज़ीरों को बुलाया। उनसे पूछा, कांग्रेस कमेटियों से पूछा, सबसे पूछा। आखिर हमने यह भी मुनासिब समझा कि जो लोग काँग्रेस में नहीं हैं, उनकी भी राय लेनी चाहिए और जो लोग हमारी टीका करते हैं, उनकी भी राय लेनी चाहिए। तो हमने उनको बुलाया। इसी काम के लिये बड़े-बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों को भी बुलाया। साथ ही हमने एक कमेटी बनाई, जिसमें जो सोशलिस्ट भाई हमारी टीका करते हैं, उनके प्रतिनिधि को भी बुलाया। खुद उनके लीडर से भी हमने कहा कि भाई आप आइए। तो उसने कहा कि मैं तो नहीं आ सकता हूँ, हमारा प्रतिनिधि आएगा। तो उनका प्रतिनिधि भी आया। उस कमेटी में यह तै हुआ कि कन्ट्रोल आहिस्ता-आहिस्ता हटा देना चाहिए। लेकिन उसमें उनका जो प्रतिनिधि था, उसने कहा कि आहिस्ता आहिस्ता नहीं, आज ही हटा देना चाहिए। उसको रखना ही नहीं चाहिए।
यह फैसला तो हुआ। लेकिन उसके बाद गवर्नमेंट ने फिर सोचा कि सब प्रान्तों के प्रधानों को भी बुलाना चाहिए। सो हमने सबको बुलाया। कहा कि अब यह मौका आया है कि हमें एक दफा तो कन्ट्रोल हटा लेना चाहिए, पीछे जो कुछ होगा देखा जाएगा। सारे मुल्क की यही राय प्रतीत होती है कि कन्ट्रोल हटाना चाहिए। लेकिन जब हमने कन्ट्रोल हटा लिए, तो कुछ लोगों ने मिलकर बम्बई में एक प्रस्ताव पास किया कि यह बहुत बुरा किया गया है, कण्ट्रोल नहीं हटाने चाहिए। यह उनकी जिम्मेवारी और यह उनकी रेस्पांसिबिलिटी है! अब वह हमें यह कहते हैं कि आप पुराने ढंग से राज करते हो। ठीक है।
उसके बाद हमने एक कान्फ्रेन्स बुलाई कि हमारे मुल्क में अधिक दौलत पैदा होनी चाहिए। आज वह बहुत कम पैदा होती है और कारखानों में पूरा माल नहीं बनता है। जब तक उद्योगपति और मजदूर वर्ग दोनों का संगठन नहीं होगा, दोनों का मेल मिलाप नहीं होगा, दोनों आपस में मुहब्बत से काम नहीं करेंगे, तो उससे हमारा नुकसान होगा। इसलिए हमने दोनों को बुलाया, ताकि वे आपस में मिलकर और समझ-बूझकर कुछ काम करें। इस कान्फरेंस में उनके प्रतिनिधि भी थे, कम्युनिस्ट लोग भी थे और उद्योगपति भी थे। ये सब लोग जमा हुए। तो हमारे लीडर, हमारे प्राइम मिनिस्टर पं० नेहरू ने सब को समझाया कि आज मौका ऐसा है कि हमें बार-बार स्ट्राइक (हड़ताल) नहीं करनी चाहिए। और यह भी कहा कि तीन साल के समय के लिए हम ट्रूस (सन्धि) कर लें कि इन तीन सालों में हम हड़ताल नहीं करेंगे और आपस में मिलजुल कर काम करेंगे। उसके लिए उद्योगपति को जो कुछ करना चाहिए, वह भी समझाया और मजदूर को जो कुछ करना चाहिए वह भी समझाया। सब ने मिलकर फैसला कर लिया। परन्तु उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद वे इधर आए और इधर आकर उन्होंने प्रस्ताव किया, यह चीज़ हमको मंजूर नहीं है। हमें तो बम्बई में एक दिन की टोकन स्ट्राइक (चिह्नरूप हड़ताल) करनी चाहिए। सो इधर आकर उन्हेंने टोकन स्ट्राइक की।
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