इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
|
|
स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
कल मैंने अपने नौजवानों को एक चीज़ बताई थी। वह यह कि एक दिन की हड़ताल तो आपने कर ली, परन्तु क्या इसका हिसाब आपने लगाया कि उस से कितना नुकसान हुआ? उससे कितना कपड़ा कम पैदा हुआ? अपने मजदूर वर्ग को यदि इसी रास्ते पर आप ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) देते रहे, तो आप का काम कैसे चलेगा? हमारा काम तो जैसे-तैसे पूरा हो गया, लेकिन यह बोझ आपको उठाना है। आप सारी चीज़ें उठा कर मज़दूरों को दे दीजिए, इसमें भी हमें कोई इंकार नहीं है। परन्तु आपको सोचना पड़ेगा कि देश का जो बोझ आपके सिर पड़ने वाला है, उसे आप कैसे उठाएँगे? यहाँ तो आपने एक दिन की हड़ताल की, लेकिन उधर बन्दर पर तीन सप्ताह से हड़ताल चल रही है। मुल्क में अनाज नहीं है और हमारे देहातों में और शहर में लोगों को अनाज चाहिए। मगर बन्दरगाह पर हड़ताल है। आज हमारे लोग सिन्ध से भागे-भागे आते हैं, उनको हमें अनाज देना पड़ता है, पंजाब से भागे-भागे आते हैं उन्हें अनाज देना है। मद्रास में अनाज पूरा नहीं पकता, वहाँ लोग भूख से मरते हैं, इन सबके लिए हमें वाहर के मुल्कों से अनाज लाना पड़ता है। और जब अनाज के जहाज हमारे बन्दर पर आते हैं तो ये मजदूरों को कहते हैं कि अनाज मत उतारो, बैठ जाओ। तो अब तीन हफ्ते से ये लोग बैठे हैं। अब हम क्या करें?
अब यह सवाल उठता है कि इस तरह से काम होगा, तो कौन गवर्नमेंट चलने वाली है? वह हमें सोचना पड़ेगा। प्रान्त की गवर्नमेंट तो छोड़ दीजिए। लेकिन यह पोर्ट ट्रस्ट का मामला तो सेण्ट्रल गवर्नमेंट (केन्द्रीय सरकार) का है, और हमारा जो मिनिस्टर है, वह मजदूरों पर सब से ज्यादा सहानुभूति रखने वाला है। हमने बार-बार अनुभव किया है कि उसकी सिम्पेथी (सहानुभूति) मजदूरों से बहुत ज्यादा है। लेकिन असल में वह भी तंग आ गया है। अब तो उसने कहा कि ऐसा समय आ गया है, जब हमें निश्चय कर लेना चाहिए और एक जगह पर अड़ जाना चाहिए कि अब आगे किसी स्ट्राइक को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। तब हमने कहा कि ठीक है। इस पर हमने यह फैसला कर लिया है।
आज यह जो मजदूर वहाँ हड़ताल कर बैठ गए है, उनकी जगह पर हमने एक छोटी-सी फौज तैयार की है। वह लोग लश्कर में भर्ती होते हैं। थे लोग सब काम करने को तैयार रहेंगे। पब्लिक यूटिलिटी सर्विस (जन-कल्याण की सेवाएँ) के कामों में जब कभी मजदूर स्ट्राइक करेंगे, तो हम इन लोगों से काम लेंगे। तो ऐसी एक फौज हमने बनाई है। उनसे हम कहेंगे कि यह काम तुम करो और वे लोग नहीं करते हैं तो उनको बैठ लेने दो। तो अब यह नए लोग काम कर रहे हैं। लेकिन वह मजदूर बैठे हैं, उसका क्या होगा? तब मैंने कल तो कहा है कि अब हम यह फैसला करनेवाले हैं कि इन मजदूरों की जगह पर दूसरे मजदूरों को भर्ती करें। और फिर यह पुराने मजदूर कहेंगे कि उनकी जगह चली गई। तब वह रोते रहेंगे।
|
- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950