इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
यह कहा जाता है कि हिन्दुस्तान में जो लोग चले आए हैं, उनको हमारे (यहाँ से लौटकर पीछे जाना है और यहाँ से जो लोग उधर चले गए हैं उनको लौटकर पीछे आना है। ठीक है, आपस में बैठकर एका कर सको तो करो। लेकिन उसके लिए दोनों गवर्नमेंटों को अनुकूल आबोहवा पैदा करनी पड़ेगी। उसी के लिए गान्धी जी ने फाका किया। अब उसमें से कब तक फल निकलता है, वह सब देखने की बात है। अच्छा फल निकल आए, तो बहुत अच्छी बात है। उससे बेहतर और कोई बात नहीं हो सकती। वही हम चाहते हैं। तो जब हमारी यह हालत है, तो हमें अलग-अलग जूथ बनाकर एक दूसरे को भला-बुरा कहना समझदारी की बात नहीं है। हम सब मिलकर काम करें, यही समझ का मार्ग है।
मैं कहता हूँ कि कम-से-कम तीन-चार साल तक तो मिलकर काम करो। हमें कुछ काम करने दो, तब तो कुछ काम बनेगा। लेकिन यह न करो, और लगे रहो कि चुनाव में आकर दिखाएँ तो उसके लिए ऐसा करने की जरूरत नहीं है। यदि आपको इसी तरह से करना है, तो आइए, आपस में बैठ कर हम फैसला कर ले। भाई, अगर आप बोझ उठाने को तैयार हों, तो हम देने के लिए भी तैयार हैं। क्योंकि आज तो मैं देखता हूँ कि कुछ प्रान्त की असेम्बलियों में भी अगर चार पाँच जगहें खाली हो जाऐं, तो उनका बोझ उठाने के लिए भी कोई योग्य व्यक्ति उनके पास वहाँ तो नहीं है। हां, बाहर हैं।
आपने एक दिन की हड़ताल करवाई, तो आप कहते हैं कि आपकी लीडरशिप कायम हो गई। एक दिन की हड़ताल से कभी मजदूरों की लीडरशिप सिद्ध नहीं होती है। आपकी लीडरशिप तो तब सिद्ध होगी, जब आप मजदूरों के पास से ऐसा काम कराएँगे, जो मजदूरों को पसन्द नहीं, लेकिन सही काम है। अगर हम इस तरह से काम कर सकेंगे, तो हम अपने मजदूरों को स्वराज्य में सही तालीम भी दे सकेंगे। दूसरी तरह से काम नहीं चलेगा।
अब दूसरी बात यह है कि हमारा यह हिन्दुस्तान बहुत बड़ा मुल्क है। पाकिस्तान को छोड़ देने के बाद भी जो बच रहा है, वह बहुत बड़ा है। उसको हमें एक सूत्र में संगठित करना है। परन्तु हमारे में एक ख्याल पड़ गया है,
जो ख्याल हमारी आजादी में से उठा है। पहले भी वह थोड़ा-थोड़ा था, लेकिन अब वह ज्यादा हो गया है। हमारे में प्रान्तीय भाव बहुत ज्यादा फैल गया है। साथ ही हमारे में कौमी भाव भी बढ़ गया है। हिन्दू मुसलमान के भाव के सम्बन्ध में तो जो कुछ होनेवाला था, वह हो गया। उसको छोड़ दीजिए। लेकिन यदि यह भाव हमारे में हो कि हमें मराठा, ब्राह्मण, क्षत्रिय, राजपूत, जाट, सिक्ख आदि का जाति भाव बनाए रखना है और हम सब अपना-अपना अलग-अलग कौमी या जातीय संगठन बनाने की कोशिश करें अथवा प्रान्तीय टुकड़ा करने की जल्दबाजी करें, तो हमारा सब-का-सब जरूरी काम रह जाएगा और हम इसी झगड़े में फँस जाएँगे। भारत के प्रान्तीय भाग अलग-अलग कर दिए जाएँ, मैं इसके खिलाफ नहीं हूँ। यदि महाराष्ट्र अलग बनना चाहे, तो मैं कभी उसका विरोध नहीं करूँगा। लेकिन आज जो बात है, वह मैं आपके सामने रख दूंगा। आज इन बातों का समय नहीं है। थोड़ा ठहर जाइए। हिन्दुस्तान को उठा लो और जब वह उठ जाए, तो उसके बाद, आप अपना हिस्सा खुशी से ले लो। क्योंकि यदि हम आज उस झगड़े में पड़ेंगे, तो यह समझ लीजिए कि यह कोई आसान बात नहीं है। हाँ, एक बात होती है कि आज महाराष्ट्र को अलग करना हो, सिद्धान्त रूप में तो उसमें कोई झगड़ा नहीं है। लेकिन जब इस सिद्धान्त को व्यवहार में लाना होगा, तो उसमें आपस में काफी झगड़ा उठ खड़ा होगा। तो यह एक महाराष्ट्र की ही बात नहीं है। कर्नाटकवाले कहते हैं कि हमारा अलग प्रान्त चाहिए। महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच में कहाँ तक किसकी सरहदें हैं, यह झगड़ा है। इसी तरह के और झगड़े हैं।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950