इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
आज मैं जब एक बजे इधर आया, तो मैंने अखबार में इधर कीं एक खबर देखी, जिस से मुझे बड़ा दर्द हुआ। मैंने अखबार में देखा कि इधर एक छोटी-सी रियासत बिहार और उड़ीसा में पड़ी है, उस रियासत में गोली चली और उसमें बत्तीस या तेंतीस आदमी मर गए, कुछ घायल भी हुए। यह बहुत बुरा हुआ। यह सब किस लिए हुआ? यह छोटी-सी रियासत बिहार में हो या उड़ीसा में, यह उसके लिए झगड़ा था। जब वे हमारे पास आए थे तो हमने कहा था कि भई, उसका फैसला हम एक कमीशन बैठा कर करेंगे। जो कमीशन कहेगा, उसकी जाँच कर फैसला करेंगे। आज जो कुछ फैसला हमने किया है, वह तो आरजी फैसला है। इस आरजी फैसले के लिए किसी को झगड़ा नहीं करना चाहिए था। मगर झगड़ा हुआ और गोली चली। अब हमको स्वराज्य तो मिला। लेकिन दोनों प्रान्तों में? जहां हमारी हुकुमत है, प्रजा अपना काम इस तरह करे और अमलदार वर्ग को गोली चलानी पड़े, तो यह बहुत बुरी बात है। अब इधर कलकत्ते में असेम्बली के दरवाजे पर गोली चलानी पडे, तो फिर इस तरह राज करने से क्या फायदा? तब तो राज करने के लिए और लोगों को तैयार होना चाहिए। जिसको राज चाहिए, उसे अगर हमारी जनता राज दे दे, तो उसको इन्तजार करने की कोई जरूरत नहीं।
लेकिन एक बात आप समझें। मैं इस बात का आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हम लोगों ने कभी हुकूमत नहीं की है और कलकत्ता में भी जो हमारा प्रधान मण्डल बैठा है, उन लोगों ने भी कभी कोई हुकूमत नहीं चलाई। उनके पास सरकार चलाने का अनुभव तो नहीं है। लेकिन एक बात उनके पास है और वह यह कि वे जनता के प्रतिनिघि हैं। बहुत दिनों के बाद जनता के प्रतिनिधियों का प्रधान मण्डल बना है। उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं कर सकता कि वे लोग कोई रिश्वत लेकर काम करेंगे, या किसी काम में खामख्वाह बिगाड़ करेंगे। तो जिसका जितना दिमाग चलेगा, उतना ही काम वह करेगा। लेकिन हमारा प्रघान मण्डल किसी बुरी नीयत से कोई काम नहीं करेगा। उसमें मैला काम करनेवाला कोई नहीं है। तो अनुभव काम सिखाएगा। यदि आपके पास ज्यादा अनुभव है और आप ज्यादा काबिल हैं तो आप काम उठा लीजिए। आप जनता की राय से उनको हटा सकते हैं। लेकिन इस प्रकार रुकावट डाल कर आप ऐसा काम करें कि गोली चलाने की जरूरत पड़े, तो यह बहुत बुरा होगा। इस तरह तो न हमारी हुकूमत चलेगी और न आपकी चलेगी। हम लोगों ने ६० साल तक कोशिश करके जो कुछ प्राप्त किया है, इस तरह वह सब गिर जाएगा। उससे किसी को कोई फायदा नहीं होगा।
तो मैं आपसे यह कहना चाहता है कि हमारे पास तो करने को बहुत काम पड़ा है। अभी हमारा और पाकिस्तान का रिश्ता कैसा है, वह भी आप जानते हैं। काश्मीर में आज हमारी कैसी हालत है, वह भी आप जानते है। और जगह की हालत भी आप जानते हैं। यह तो ईश्वर की मेहरबानी है कि आप लोगों ने कुछ संभाल लिया। (बंगाल में पंजाब के बनिस्बत कम लोगों का नरसंहार हुआ था) नहीं तो यदि पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में एक साथ झगड़ा हुआ होता, तो यह फिर से लाखों आदमियों का मामला हो जाता। तो आपको समझना चाहिए कि हम बहुत नाजुक समय में से गुजर रहे हैं। हिन्दुस्तान की हालत अभी बहुत नाजुक है। उस समय पर आपको कोई गड़बड़ नहीं करनी चाहिए। हाँ, आपको अगर कोई शिकायत है, तो उसके लिए धीरज से काम लीजिए। जल्दबाजी में बना-बनाया काम न बिगाड़ दीजिए। देश का ध्यान रख कर आप बरदाश्त से काम लीजिए। दो सौ साल तक परदेशियों की गुलामी की। अब अपने लोग आए, तो दो-चार महीनों में इन लोगों ने इतना क्या बिगाड़ दिया? इस तरह से क्यों काम करते हो? इस तरह तो हमारा काम नहीं चलेगा।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950