विभिन्न रामायण एवं गीता >> भगवती गीता भगवती गीताकृष्ण अवतार वाजपेयी
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गीता का अर्थ है अध्यात्म का ज्ञान ईश्वर। ईश्वर शक्ति द्वारा भक्त को कल्याण हेतु सुनाया जाय। श्रीकृष्ण ने गीता युद्ध भूमि में अर्जुन को सुनाई थी। भगवती गीता को स्वयं पार्वती ने प्रसूत गृह में सद्य: जन्मना होकर पिता हिमालय को सुनाई है।
पञ्चमोऽध्यायः - श्री भगवती गीता (पार्वती गीता) माहात्म्य
श्री महादेव उवाच
एवं श्रीपार्वतीवक्याद्योगसार परं भुने।
निशम्य पर्वतश्रेष्ठो जीवमुक्तो बभूव ह।।1।।
सापीयं शैलराजाय योगमुक्ला महेश्वरी।
मातृस्तन्यं पपौ वाला प्राकृतेव हि लीलया।।2।।
श्री महादेव जी ने कहा-मुनि नारद। इस भाति श्री पार्वती जी के मुख से श्रेष्ठ योगसार को श्रवण कर पर्वतश्रेष्ठ हिमालय जीवन्मुक्त हो गये। वे महेश्वरी भी गिरिराज को योग वर्णन कर लीलापूर्वक सामान्य बालिका की तरहमाता का स्तन पान करने लगी।।1-2।।
गिरीन्द्रस्तु महाहर्षादकरोत्सुमहोत्सवम्।
यथा न दृष्टै केनापि श्रुतंवाकेनचिक्लचित्।।३।।
षष्ठेऽदिन षष्ठीं सम्पूज्य सम्प्राप्ते दशमेऽहनि।
पार्वतीत्यकरोन्नाम सान्वयं पर्वताधिपः।।4।।
पर्वतराज हिमालय ने भी अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ विशाल उत्सव मनाया जैसा किसी ने कहीं भी न देखा था और न सुना था। स्फें दिन षष्ठी देवी की पूजा कर दसवाँ दिन आने पर गिरिराज हिमालय ने उनका 'पार्वती' सार्थक रखा।।3-4।।
एवं त्रिजगतां माता नित्या प्रकृतिरुत्तमा।
सन्स मेनका गर्भाद्धिमालयगृहे स्थिता।।5।।
इस तरह तीनों लोकों की जननी नित्यस्वरूपिणी श्रेष्ठ प्रक़ति मेनका के गर्भ से जन्म लेकर हिमालय के घर में रहने लगीं।।5।।
हिमालयाय पार्वत्या कथित योगमुत्तमम्
यः पठेत्सुलभा मुक्तिस्तस्य नारद जायते।।6।।
क्या भवति शर्वाणी नित्यं मङ्गलदायिनी।
जायते च इन् भक्तिः पार्वत्या मुनिअव।।7।।
मुनि नारद! जो मनुष्य पार्वती द्वारा हिमालय से कहे गये इस उत्तम योग का पाठ करता है, उस को मुक्ति सुलभ हो जाती है। मुनिश्रेष्ठ! भगवती शर्वाणी उस मनुष्य पर सदैव प्रसन्न रहती हैं एवं देवी पार्वती के प्रति उस भक्त के मन में दृढ़ भक्ति उत्पन्न हो जाती है।।6-7।।
अष्टम्यां च चतुद्रश्यां नवम्बां भक्तिसंयुत।
पठन् श्रीपार्वतीगीतां जीवन्मुक्तो भवेवर।।8।।
शरत्काले महाष्टम्यां यः पठेत्समुपोषितः।
रात्री जागरितो भूत्वा तस्य पुण्यं ववीमि किम्।।9।।
अष्टमी, नवमी एवं चतुर्दशी तिथि को भक्तिपूर्ण हो श्री पार्वतीगीता का पाठ करने वाला मनुष्य जीवनमुक्त हो जाता है। शरत्काल में महाष्टमी तिथि को उपवास करके तथा रात्रि में जागरण करके जो मनुष्य इसका पाठ करता है, उसके पुण्य का मैं वर्णन क्या करूँ।।8-9।।
स सर्वदेवपूज्यश्च दुर्गाभक्तिपरायणः।
इन्द्रादयो लोकपालास्तदाज्ञावशवर्तिन।।1०।।
स्वयं दैवीकलामेति साक्षाद्देव्या प्रसादत।
नश्यन्ति तस्य पापानि ब्रह्महत्यादिकान्यपि।।1।।
पुत्रं सर्वगुणोपेतं लभते चिरजीविनम्।
नश्यन्ति रिपवस्तस्य नित्यं प्रत्यक्षमेति मङ्गलम्।।12।।
दुर्गाभक्ति परायण वह मनुष्य समस्त देवताओं का पूज्य बन जाता है तथा इन्द्रादि लोकपाल उसकी आज्ञा के अधीन हो जाते है। वह भक्त (पाक) साक्षात् भगवती की कृपा से दैवीकला को स्वयं प्राप्त हो जाता है तथा उसके ब्रह्महत्यादि पाप भी नष्ट हो जाते हैं। वह सर्वगुणसम्पन्न तथा दीर्घजीवी पुत्र प्राप्त करता है। उसके सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं एवं वह नित्य कल्याण की प्राप्ति करता है।।1०-12।।
अमावस्या तिथि प्राप्त यः पठेद्भतिसंयुतः।
सर्वपापविनिर्मुक्तः स दुगांतुल्यतामियात्।।1३।।
निशीथे पठते वस्तु बिल्यवृ क्षस्य सत्रिधौ।
तस्य संवत्सरादुर्गा स्वयं प्रत्यक्षमेति वै।।14।।
अमावस्या तिथि को जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस श्री पार्वती गीता का पाठ करता है, वह समस्त पापों से ककर दुर्गासम ही हो जाता है। बेल (विल्व) वृक्ष के पास बैक्कर जो व्यक्ति अर्धरात्रि में श्रीपार्वती गीता का पाठ करता है उसको एक वर्ष में ही दुर्गा साक्षात् दर्शन देती हैं।।13-14।।
किमत्र बहुनोक्तेन श्रृणु नारद तत्त्वतः।
अस्थाः पाठसमं पुण्यं नास्त्येव पृथिवीतले।।15।।
मुनि नारद! इसके विषय में अधिक क्या कहूं? तत्त्व की बात तो यह है कि सम्पूर्ण भूमि पर श्री पार्वती गीता के पाअम कोई दूसरा पुण्य नर्ही है।।15।।
तपसां यज्ञदानादिकमंणामिह विद्यते।
फ्लस्य संख्या नैतस्य विद्यते मुनिपुगंम।।16।।
इत्युक्तं ते यथा जाता नित्यापि परमेश्वरी।
लीलया मेनकागर्भे भूयः किं श्रोतुमिच्छसि।।17।।
हे मुनि श्रेष्ठ! इस लोक में तप, यज्ञ, और दान आदि कर्मो के फल तो सीमित हैं, परन्तु श्रीपार्वतीगीता पाठ के फल की कोई सीमा (असीमित) नहीं है। अतः शाश्वत होते हुए भी परमेश्वरी जिस प्रकार से लीलापूर्वक मेनका के गर्भ से उत्पन्न हुई वह समस्त वृत्तान्त मैंने आप को सुना दिया। अब आप क्या सुनना चाहते हैं?।।16-17।।
ॐ श्री महादेवनारदसंवादे श्री भगवतीगीतामह्मक्यवर्णन नाम पञ्चमोऽध्यायः।
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