विभिन्न रामायण एवं गीता >> भगवती गीता भगवती गीताकृष्ण अवतार वाजपेयी
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गीता का अर्थ है अध्यात्म का ज्ञान ईश्वर। ईश्वर शक्ति द्वारा भक्त को कल्याण हेतु सुनाया जाय। श्रीकृष्ण ने गीता युद्ध भूमि में अर्जुन को सुनाई थी। भगवती गीता को स्वयं पार्वती ने प्रसूत गृह में सद्य: जन्मना होकर पिता हिमालय को सुनाई है।
कामना
भगवती अकेली हैं किन्तु परिवार में पंच मुख शिवजी षड मुख पुत्र कार्तिकेय, लम्बोदार गणपति गजानन सबका भरण-पोषण प्रसन्नता से करती है सब सन्तुष्ट है। दूसरा आश्चर्य देखिए कि भगवती का वाहन सिंह, शिव का वाहन वृषभ (बैल), शिव का आभूषण सर्प, तब गणेश का वाहन चूहा, तो कार्तिकेय का वाहन मयूर (मोर) परस्पर एक-दूस्मे के शत्रु है किन्तु किसी को किसी से कोई प्राण हानि का भय नही। यह सब भगवती का प्रताप, तेज, सुशासन, नियंत्रण एवं व्यवस्था है। जब भगवती अपनी सुव्यवस्था रखती हैं तब जगत को कैसे नही सुव्यवस्थित रखेंगी। भगवती जो जगन्माता हैं उनको सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करना है, कर रही है। उनसे श्रेष्ठ कोई नहीं है। उनकी कृपा से सर्वत्र मचल ही रहता है।
हे जगद्धात्री भी! तुम सबका कल्याण करो, सब पर प्रसन्न रहो, किसी को कोई कष्ट, पीड़ा एवं वियोग न हो। सब तेरे बालक हैं। उनसे यदि कोई अपराध भी हो जाय तब स्वारता से आप क्षमा करें। जय भगवती।
एक दृष्टि :
1. भगवती ही एक मात्र सृष्टि की रचना करने वाली है।
2. वह दुष्टें की शासिका, सज्जनों की पालिका हैं।
३. पहले सती रूप में शिव पत्नी हैं, पुनः पार्वती रूप में, पर हैं एक ही आद्या शक्ति।
4. विष्णु भगवान को भी पुत्र गणेश रूप में जन्म दिया है।
5. ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देव उनकी सदा वन्दना करते हैं।
6. दक्ष के यज्ञ में लया सती ने प्रवेश किया था, सती ने नहीं।
7. सती ने शिवजी को भयभीत कर अपना रौद्ररूप दिखाया था तथा अपनी दस महाविद्यायें दिखा दी थीं।
8. भगवती का रथ दस हजार सिंहों का है।
9. नन्दी पहले दक्ष के यहाँ थे वहाँ से शिव शरण में पहुँचे।
1०. सती ने गक तथा पार्वती दो रूपों में हिमालय राज के घर जन्म लिया। दोनों का विवाह शिव के साथ हुआ।
11. पार्वती जी पूर्णा परात्पराम्बा हैं।
12. गणेश जगदम्बा के विष्णु रूप पुत्र हैं।
13. भगवती अपने भक्तों के साथ सदा रहती हैं।
14. कामाख्याशक्ति पीठ सर्वश्रेष्ठ शक्तिपीठ है।
15. कामाख्या कवच का पाठकर्ता निर्भय रहता है।
16. भगवती गीता श्रेष्ठ गीता है। इसका नित्य पाठ सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला है।
17. श्रीरामचन्द्र जी ने भगवती का पितृरूप रूप में विल्य वृक्ष के नीचे पूजन करके रावण पर विजय प्राप्त की थी।
18. शिवजी ने भगवान विष्णु को एक बार शाप दिया था कि तुम को भी प्रिया वियोग होगा।
19. श्रीराम की सहायता हेतु रुद्र (शिव) ने पवनपुत्र रूप में अवतार लिया।
2०. भगवती ने अपनी सखियां जया और विजया के साथ पृथ्वी पर कृष्णावतार लिया था शिवजी ने अपनी आठो मूर्तिर्यो सहित 'राधा' रुक्मिणी आदि रूप में जन्म लिया।
21. देवी मूर्ति का पूजन करना चाहिए।
22. स्थूल पूजन से सूक्ष्म पूजन की ओर बढ़ना ही दर्शन की ओर बढ़ना है।
इस पावनी कथा को अवश्य पढ़िये।
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- अपनी बात
- कामना
- गीता साहित्य
- भगवती चरित्र कथा
- शिवजी द्वारा काली के सहस्रनाम
- शिव-पार्वती विवाह
- राम की सहायता कर दुष्टों की संहारिका
- देवी की सर्वव्यापकता, देवी लोक और स्वरूप
- शारदीय पूजाविधान, माहात्म्य तथा फल
- भगवती का भूभार हरण हेतु कृष्णावतार
- कालीदर्शन से इन्द्र का ब्रह्महत्या से छूटना-
- माहात्म्य देवी पुराण
- कामाख्या कवच का माहात्म्य
- कामाख्या कवच
- प्रथमोऽध्यायः : भगवती गीता
- द्वितीयोऽध्याय : शरीर की नश्वरता एवं अनासक्तयोग का वर्णन
- तृतीयोऽध्यायः - देवी भक्ति की महिमा
- चतुर्थोऽध्यायः - अनन्य शरणागति की महिमा
- पञ्चमोऽध्यायः - श्री भगवती गीता (पार्वती गीता) माहात्म्य
- श्री भगवती स्तोत्रम्
- लघु दुर्गा सप्तशती
- रुद्रचण्डी
- देवी-पुष्पाञ्जलि-स्तोत्रम्
- संक्षेप में पूजन विधि