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नारी विमर्श >> चश्में बदल जाते हैं

चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6385
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।


अचानक सोमप्रकाश की छोटी बहू उसी भय को भगाने के लिए जल्दी से बोल उठी-'अच्छा भइया।...बर्निंगघाट में माँ के शरीर से सारे गहने उतार लिए गए थे न? माँ की अँगुली में वह बढ़िया पन्ना-जड़ी अँगूठी थी...वह सब बर्निंगघाट से ले आए हैं न?'
'भइया' विमलप्रकाश बोल उठे-'लाया क्यों नहीं जायेगा? कैसी बच्चों जैसी बातें कर रही हो रूबी?'

रूबी इससे अप्रतिभ नहीं हुई। बोली-'नहीं, माने उस समय तो आप लोगों की मानसिक दशा खूब वैसी थी...गलती होना असम्भव नहीं।'
विमल संक्षेप में बोले-'फिर भी ले आया गया था।'
'लाए थे तो अच्छा ही किया था। पिताजी को दे दिया था न?'
'पिताजी को?' विमल जैसे चौंक पड़ा।
'वाह! और फिर किसे देंगे? पिताजी के अलावा? माँ की चीज़ें थीं।' मलिन भाव से विमल बोला-'पिताजी के सामने यह बात छेड़ने का साहस ही नहीं हुआ।'
'वह तो सच है। आप ठीक कह रहे हैं। तो फिर सम्भालकर रख दिया है न?'
तब 'भइया' की अर्द्धांगिनी बोल उठीं-'हाँ, मेरे लॉकर में रखा है। तेरे फ्लैट में जो काण्ड हो गया उस दिन, बाबा:! इसीलिए तेरे पास रखने नहीं दिया था। अगर रखना चाहती है तो कल ही दे दूँगी।'

'अरे? मैं भला क्यों रखना चाहूँगी? यूँ ही याद आ गया तो पूछ लिया। खासतौर से वह पन्नावाली अँगूठी याद आ गई तो...'
'वह तुझे इतनी पसन्द है? तो उसे तू ही ले लेना।'
'वाह! मैं अकेले क्यों?'
बड़ी जिठानी हँसने लगीं-'तो क्या एक अँगूठी दोनों पहनेंगे? बाद में-बँटवारा होगा। उसे न हो बँटवारे से अलग ही रखो।' यह उदार भाव जताया बड़ी बहू ने देवरानी के लिए जिससे कि उसका मन जिठानी के अनुकूल रहे। ससुर का बोझ कन्धों पर ढोने को तैयार हो जाए।
पर उस स्तब्ध कमरे में क्या और कोई नहीं था?
वह सहसा स्तब्धता भंग कर बोल उठी-'बँटवारे की बात ही जब छेड़ दी है सुलेखा तब मैं यह बता दूँ कि कि 'मातृधन' हक़दार केवल लड़की ही होती है।'
'ऐं?'
'हाँ रे-यही है। चिरकाल से सभी जानते आ रहे हैं कि 'मातृधन' पर लड़कों का कोई अधिकार नहीं। वह केवल लड़कियों को ही मिलता है। कानून में भी है और शास्त्रों में भी।'
दोनों भाइयों ने एक दूसरे को देखा। आपस में आँखें मिलीं दोनों देवरानी जिठानी की। और एक दूसरे को देखा जो जोड़ी दम्पत्ति ने। और उसी वक्त सोमप्रकाश के बूढ़े मार्का दामाद अपनी पत्नी से कर्कश स्वरों में बोल उठे-'ओ:! शास्त्र! कानून। लग रहा है सभी कुछ जानकर बैठी हो। वह सब पुराने ज़माने की बातें है, भूल जाओ तो। माँ सभी की थीं-लड़कों की भी, लड़की की भी। तब एक को ही सारा फायदा क्यों हो?'
सुनेत्रा तो अवाक रह गई। उसका हमेशा का कंजूस, अर्थलोभी पति में यह कैसा रूपान्तर? सुन्दरी सलहजों के सामने 'हीरो' बनना चाहता है? इसीलिए उसने भी खनक कर कहा-'और तुमको सब पता है? जाओ जाकर पाँच जने से पूछो।'
'ये साला किसी को पूछने की ज़रूरत नहीं समझता है सुनेत्रा। हो सकता है कभी रहा होगा यह नियम। और वह भी तब जब लड़कियों को पिता की सम्पत्ति में हिस्सा नहीं मिलता था। अब इस ऊपरी सुख की ललक क्यों? पेड़ का भी खाओगी और ज़मीन का भी बटोरोगी? वाह! लेकिन वह अब तक भीतर के कमरे में क्या कर रहे हैं यह तो कोई बताओ? जाओ न, एक बार जाकर देख तो आओ।'
जाकर देख आए? सुनकर सुनेत्रा का खून बर्फ सा जम गया। बाप रे! अगर जाकर देखे...अरे आप रे, अगर जाकर देखे कि पिताजी खाट पर स्थिर हो कर पड़े हुए हैं-पत्थर की तरह?
सूखे कण्ठ स्वर से बोली-'देखूँगी क्या? शायद रेस्ट कर रहे हों?'
सुनेत्रा ने ही पहले सोचा था 'कुछ हो तो नहीं गया है?'
अमल ने दीदी के चेहरे की तरफ देखकर आवाज़ पर कंट्रोल रखते हुए कहा-'यही सम्भव है। इधर कुछ दिनों से उनके मन...'
बड़े बेटे ने डूबती आवाज़ में कहा-'ये है कि...इस वक्त पिताजी नहाते हैं न? शायद नहाने चले गए हैं।'
सुनेत्रा बोली-'हट! अभी...बारह बजे दिन को? कब का नहा चुके हैं। अभी तक अवनी तो है...वह क्या वक्त का इधर-उधर होना बरदाश्त करेगा?'
'तो फिर-ये है कि...अचानक...यूँ ही बाथरूम में...मानें कई दिनों से 'अनियम' भी तो हो रहा है। अपनी तबियत के बारे में तो पिताजी कुछ कहते भी नहीं हैं।'
अभिमन्यु बोल उठे-'तो एक बार देख आने में हज्र क्या है? मैं नहीं जा रहा हूँ-मुझे ये है कि...कुछ 'लाइक' नहीं करते हैं।'
'आश्चर्य है। ऐसी अदभुत बातें करते हो तुम भी। तुम्हें 'लाइक' नहीं करते हैं यह बात कहीं किसने तुमसे?'
पत्नी की छिड़की सुनकर अभिमन्यु हँस देता है-'ये बात क्या कोई न बताए तो समझ में नहीं आती है? ठीक है-मैं ही जाकर देखता हूँ। चिन्ता हो रही है।'
और तभी छोटी सलहज बोल उठी-'चिन्ता करने वाली क्या बात है। आप लोग ऐसी एब्सर्ड बातें करते हैं। वह आ रहे हैं...'
सारी आँखें खास एक दरवाज़े पर जा टिकीं।
पर्दा हटा।

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