कहानी संग्रह >> कामतानाथ संकलित कहानियां कामतानाथ संकलित कहानियांकामतानाथ
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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...
जमा-हासिल
एक : पूर्वार्द्ध
यूनियन के सर्कुलर देख रहा था तभी उसे ध्यान आया कि छोटे भाई का पत्र अभी तक
उसकी जेब में पड़ा है, जिसे उसने अभी पढ़ा नहीं है। सुबह जब वह ऑफिस आने के
लिए साइकिल निकाल रहा था, तभी पोस्ट-मैन उसे दरवाजे पर मिला था। उसने पत्र
जेब में डाल लिया था और रोज की तरह ऑफिस चला आया था।
ऑफिस पहुंचने में उसे देर हो गई थी। आज उसका तीसरा क्रास लगने वाला था, जिसके
मायने होते हैं एक दिन की छुट्टी की कटौती। उसने साइकिल बाहर गेट पर ही खड़ी
कर दी और कैरियर से बैग निकाल कर जल्दी से सेक्शन की ओर भागा। मस्टर रोल
सब-एकाउंटेंट की मेज पर पड़ा था। सौभाग्य से क्रास अभी तक नहीं लगा था।
हस्ताक्षर करके उसने बैग सीट पर पटका और बाहर निकल आया। साइकिल उठा कर स्टैंड
पर रखी और सड़क पर सिगरेट लेने चला आया। पान की दकान से सिगरेट सुलगा कर वह
वापस जा रहा था, तभी दरबान ने उसे एक तार तथा एक एक्सप्रेस डिलिवरी पत्र
दिया। तार खोलकर उसने पढ़ा। आल इंडिया एसोशिएशन ने हड़ताल का नोटिस दे दिया
था। जल्दी ही सी. ई. सी. (सेन्ट्रत एक्जिक्युटिव कमेटी) की मीटिंग होने वाली
थी। उसी की सूचना थी। एक्सप्रेस डिलिवरी पत्र भी उसने खोल लिया, परंतु पढ़ा
नहीं। सोचा सीट पर आकर पढ़ेगा। केंद्रीय श्रम मंत्री से अखिल भारतीय नेताओं
की बातचीत का विवरण था।
सीट पर आकर उसने पत्र पढ़ा। श्रम-मंत्री ने तीन सप्ताह का समय मांगा था,
वित्त मंत्रालय से बात करने के लिए। उनका कहना था कि वित्त मंत्रालय की सहमति
के बिना कुछ भी संभव नहीं है। केन्द्रीय नेताओं का विचार था कि यह टालने वाली
बात है। इससे पहले भी केंद्रीय सरकार के रवैये का कटु अनुभव उन्हें था।
पत्र और टेलीग्राम लेकर वह दास के पास गया। दास यूनियन के प्रेसीडेंट हैं।
उनकी राय से उसने शाम को कार्यकारिणी की बैठक का नोटिस निकाल दिया।
हड़ताल के मायने उसे काफी परिश्रम करना पड़ेगा। पिछले बारह वर्षों से वह
यूनियन में कार्य कर रहा है। परंतु आज तक उसने यह नहीं देखा कि यूनियन के
किसी आवाहन को सदस्यों ने सहजता से स्वीकार लिया हो। और फिर इधर, पिछले
तीन-चार वर्षों में तो दो एक प्रतिद्वंद्वी यूनियनें और बन गई हैं। उनकी
सदस्यता अधिक नहीं है। परंतु विघटन कार्य के लिए सदस्यता की आवश्यकता तो होती
नहीं।
कोई ग्यारह बजे वह सीट पर लौट कर आया, तो लाल साहब ने उसे याद दिलाया कि आज
उसे तमाम सेक्शनों की स्टेशनरी इशू करनी है, मेसर्स पी. एन. भाटिया के दो बिल
भी पास करवाने हैं। स्टेशनरी वाल्ट की कुंजी लेकर वह उठने वाला ही था कि डाक
सेक्शन का चपरासी आज की डाक उसे दे गया। यूनियन की सारी डाक पलहे उसी के पास
आती है। चार-पांच लिफाफे थे। उन्हें खोल रहा था, तभी उसे छोटे भाई के पत्र का
ध्यान आया।
यूनियन के पत्रों में कोई खास बात नहीं थी। अधिकतर दूसरे केन्द्रों पर चल रहे
प्रोग्रामों की रिपोर्ट थीं। एक पत्र रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन के यहां का था,
जिसमें यूनियन के सालाना रिटर्न्स मांगे गए थे। उसे खीज हुई। आज से दस दिन
पहले उसने रिटर्न्स तैयार कर दिए थे। सबके हस्ताक्षर भी हो गए थे। परंतु किसी
को इतनी फुर्सत नहीं मिली कि उन्हें डिस्पैच कर देता। कार्यकारिणी के एक-दो
सदस्यों को छोड़ कर कोई जरा-सा भी काम नहीं करता। सर्कुलर निकालने से लेकर
डिस्पैच और फाइल करने तक का सारा काम उसे स्वयं निबटाना पड़ता है। उसे ध्यान
आया, उसने स्वयं मेहता को कहा था कि ट्रेजरार से एडवांस लेकर डाक टिकट मंगवा
ले और रिटर्न्स भिजवा दे, नहीं तो रजिस्ट्रार के यहां से नोटिस आ जाएगा। वहीं
हुआ।
पत्र बढ़ कर उसने क्लिप करके ड्रार में रख दिया और वाल्ट की कुंजी लेकर
चपरासी को आने को कह कर नीचे चल दिया। छोटे भाई का पत्र अब भी उसकी जेब में
था। उसने सोचा अब वाल्ट में ही जाकर उसे पढ़ेगा। वाल्ट खोलकर वह अंदर गया तो
देखा मेज-कुर्सी पर खासी गर्द जमा थी। तीन आदमियों की ड्यूटी बारी-बारी से
वहां झाडू लगवाने की है, परंतु उसके अतिरिक्त और कोई कभी इस ओर ध्यान नहीं
देता। सभी सामान निकाल कर, ताला लगा कर चल देते हैं। बैठना सिर्फ उसी को
पड़ता है। उसने इधर-उधर देखा। शायद कोई कपड़ा पड़ा हो। आखिर रूमाल निकाल कर
उसी से मेज-कुर्सी झाड़नी पड़ी। चपरासी अभी तक नहीं आया था। वह छोटे भाई का
पत्र खोल कर पढ़ने लगा।
उसने लिखा था कि पत्नी को भेज पाना उसके लिए संभव नहीं है। उसका स्वास्थ्य
आजकल ठीक नहीं चल रहा है। और फिर पिंकी के दांत निकल रहे हैं। उसे दिन-भर
दस्त आते रहते हैं। डॉक्टर बनर्जी कर इलाज हो रहा है। अभी कोई खास फासदा नहीं
है। वह स्वयं कोशिश करेगा अगले इतवार को आने की। मां को, उसने राय दी थी,
अस्पताल में भरती करा दो तो अच्छा रहेगा। किरायेदार मकान छोड़ गए हैं। घर में
ताला पड़ा है। हाउस और वाटर टैक्स के नोटिस आए हैं। पिछले दिनों वह उधर गया
था, तो नोटिस दरवाजे पर चिपके थे। छप्पन रुपये अस्सी पैसे देने हैं। भेज दे
तो वह जमा करा देगा। अन्यथा वह सीधे कारपोरेशन को मनीआर्डर कर दे। नोटिस का
नंबर और तारीख उसने पत्र में लिख दी थी। घर की कुंजी वह इतवार को आएगा, तो
लेता आएगा। अन्यथा किसी और के हाथ भिजवा देगा।
पत्र पढ़कर उसने जेब में रख लिया। पत्र उसके पत्र के उत्तर में था, जिसमें
उसने लिखा था कि वह पत्नी को भेज दे, क्योंकि मां की तबीयत बहुत खराब चल रही
है। वह बहुत कमजोर हो गई हैं। पेट में कुछ वर्म आ गया है। उठने-बैठने में
तकलीफ होती है। दिन भर कराहती रहती हैं। उसकी पत्नी के प्रसव में कुछ ही दिन
रह गए हैं। किसी भी दिन उसे अस्पताल जाना पड़ सकता है।
वह सोचने लगा कि अब क्या प्रबंध हो सकता है। मां अस्पताल जाने के लिए तैयार
नहीं हैं। अस्पताल से उन्हें जाने क्यों डर लगता है। वह कहती हैं, वहां
डॉक्टर उनका पेट चीर डालेगा। और फिर वह अस्पताल जाने के लिए राजी भी हो गईं,
तो वहां उनका अकेले रहना संभव नहीं है। किसी न किसी को उनके साथ रहना होगा।
वह स्वयं रह सकता है, परंतु जनाने वार्ड में पुरुषों के रहने की आज्ञा नहीं
है। इस सबके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि अस्पताल में भरती कराना भी अपने
आप में एक बड़ी समस्या है। बिना किसी सोर्स के यह संभव नहीं है और सोर्स उसके
पास है नहीं।
तभी उसे ध्यान आया कि डॉक्टर ने मां का पेशाब टेस्ट कराने के लिए कहा था।
पेशाब की शीशी वह सुबह जल्दी में घर पर ही भूल आया था। उसने सोचा स्टेशनरी
निकलवा चुकने के बाद वह थोड़ी देर की छुट्टी लेकर घर से शीशी ले आएगा।
आज ही उसे रुपयों का प्रबंध भी करना होगा। उसके पास मुश्किल से दस-पंद्रह
रुपये रह गए हैं। यदि आज फिर डॉक्टर ने मां को ग्लूकोज का इंजेक्शन दिया. तो
आठ रुपये उसी में निकल जाएंगे। पांच रुपये पेशाब टेस्ट कराने में लगेंगे।
एक-दो रुपये के फल आदि लेने होंगे।
छोटे भाई ने किरायेदारों के मकान छोड़ने की बात लिखी थी, परंतु किराए के बारे
में कुछ भी नहीं लिखा था कि वह उसे दे गए हैं, या नहीं। मकान का टैक्स भी जमा
करना होगा। अन्यथा पाइप कट गया, तो उसे दोबारा ठीक कराने में और ज्यादा खर्च
होगा।
उसने छोटे भाई को बहुत समझाया था कि पिता तो अब रहे नहीं. वह उसी. मकान में
वापस आ जाए, परंतु वह राजी नहीं हुआ। परिणामस्वरूप जबसे उसका ट्रांसफर हुआ,
मकान खाली पड़ा है। एक वर्ष तक खाली पड़ा रहा तो उसने छोटे भाई से कहा कि
उसमें कोई किरायेदार ही रख दे। परंतु छोटे भाई ने इंकार कर दिया। उसने कहा,
मकान से मेरा कोई भी मतलब नहीं है, जैसा तुम चाहो करो।
पिता जीवित थे, तभी वह मकान छोड़कर चला गया था-विवाह के कुछ दिनों पश्चात् ही
घर के खर्च को लेकर कुछ बातचीत हुई थी। छोटा भाई कुल सौ रुपये देता था। विवाह
से पहले भी इतना ही देता था। विवाह हो जाने के कुछ दिनों बाद पिता ने कहा कि
अब वह कुछ अधिक दिया करे। पिता ने ऐसा अपने वायदे के खिलाफ किया था। छोटा भाई
विवाह करने को तैयार नहीं था। उसका कहना था कि जितना उसे मिलता है, उसमें
उसका ही खर्च नहीं चल पाता। विवाह के बाद खर्च और बढ़ जाएगा। पिता जाने क्यों
उसके विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे। उन्होंने कहा-वह अभी जितना दे रहा है,
विवाह के बाद भी उतना ही देता रहे। घर में एक प्राणी के बढ़ने से खर्च में
कोई खास फर्क नहीं पड़ जाएगा। वैसे ही एक आदमी का खाना रोज बच जाता है।
पिता का सोचना गलत था। उनका एस्टीमेट शुरू से ही गड़बड़ा गया था। वह समझते
थे, दहेज में जो कैश मिलेगा, उसी में विवाह का खर्च निबट जाएगा। परंतु ऐसा
हुआ नहीं। कोई सात-आठ सौ कर्ज हो गया। उसका सूद भी माहवार जाने लगा था। शुरू
में चार-छह महीने पिता खामेश रहे। तब उन्होंने छोटे भाई को वार्षिक
इंक्रीमेंट मिलने पर उससे कहा कि वह कुछ और दिया करे। छोटे भाई ने उत्तर दिया
कि उसने पहले ही कह दिया था कि वह और नहीं दे पाएगा। इसी को लेकर बात बढ़ी और
उसने मकान छोड़ दिया। उसे लेबर कॉलोनी में दो कमरों का फ्लैट मिल गया। शायद
वह पहले ही मकान छोड़ने का इरादा बना रहा था। तकलीफ भी थी उसे। नीचे के
हिस्से में रहना पड़ता था। वहां सीलन थी। धूप बिल्कुल नहीं पहुंचती थी। पंखे
के बावजूद गर्मियों में रात में परेशानी होती थी।
उसने छोटे भाई को समझाया था। पिता की मृत्यु के बाद मां ने भी उससे बहुत कहा,
परंतु वह वापस नहीं आया। तभी उसका ट्रांसफर हो गया और मकान खाली हो गया। उस
समय भी उसने छोटे भाई को कहा था कि अब वह आ जाए, उसे तकलीफ भी नहीं होगी।
परंतु वह आने को तैयार नहीं हुआ। आखिर जब काफी दिनों मकान खाली पड़ा रहा,
फिजूल में बिजली बम्बे का टैक्स भरना पड़ा, तो उसने उसे किराए पर उठा दिया।
श्यामलाल रजिस्टर लेकर आ गया था। वह स्टेशनरी निकलवाने लगा। पहले उसने सोचा,
आज सभी सेक्शनों की स्टेशनरी निकलवा देगा। परंतु फिर उसने इरादा बदल दिया।
उसे एक बार घर भी जाना था। अतः उसने कुल पांच सेक्शनों के इंडेंट निकाल लिए।
बाकी रख दिए। वहीं कुर्सी पर बैठे-बैठे वह आवाज देता जाता-चौबीस ब्लाटिंग, आठ
पेंसिल, चार रबड़, छह निब, बारह कार्बन, एक पैकेट सीलिंग वैक्स, एक वेस्ट
पेपर बास्केट, तीन कलम, दो पैकैट पिन, दो पैकैट जेम क्लिप आदि और श्यामलाल
सामान निकालता जाता।
उसे एक महीने से ऊपर स्टेशनरी सेक्शन में आए हो चुका है, परंतु उसने आज तक एक
बार भी स्टॉक पोजीशन नहीं मिलाई। जो इशू करता है, स्टॉक रजिस्टर में पोस्ट कर
देता है। एक बार कोशिश की भी तो देखा, पांच हजार लिफाफों की जगह साढ़े आठ
हजार और तेरह बड़े ब्लाटिंग पैड की जगह सत्रह थे। पास बुकें. दस कम थीं। इसी
तरह और सामान भी बेहिसाब था। उसने सब-एकाउंटेंट को बताया, तो उन्होंने कहा,
“सब ऐसे ही चलता है।" चलने दो, उसको क्या करना, उसने सोचा। स्टेशनरी निकाल कर
वह ऊपर आया तो देखा, एक्सचेंज हाल में लोग पार्टी खा रहे थे। बतरा ने उसे एक
समोसा ऑफर किया, तो उसने ले लिया।
किस बात की पार्टी है, उसने पूछा, तो पता चला, हुसैन साहब ने नई शादी की है।
उसने देखा, हुसैन साहब ने दाढ़ी मुड़वा दी थी। बालों में खिजाब लगाए थे और
टेरिलिन की बुशर्ट पहले थे। लोग पार्टी खा रहे थे और हुसैन साहब पर जुमले भी
कस रहे थे। अभी दो महीने नहीं हुए होंगे उनकी पत्नी को मरे और पचास बरस की
उमर में उन्होंने नया विवाह रचा लिया था।
उसने श्यामलाल से कहा कि स्टेशनरी उसकी सीट पर ले जाकर रख दे, वह थोड़ी देर
में आता है। श्यामलाल चला गया। वह वहीं बतरा की बगल में बैठ गया। लोग उससे
सरकार से केन्द्रीय नेताओं की बातचीत के परिणाम के बारे में पूछने लगे। सुबह
आई सूचना के आधार पर उसने बताया कि वार्ता असफल हो गई है। आल इंडिया ने
हड़ताल का नोटिस दे दिया है। जल्दी ही सी.ई.सी. की मीटिंग होगी। लोगों ने
सरकार को कोसा, परंतु साथ-ही-साथ हड़ताल के सफल होने में संदेह भी प्रकट
किया।
तभी श्यामलाल उसे बुलाने आ गया-"भाटिया का आदमी आया है। लाल साहब ने आपको
सलाम दिया है।"
वह उठकर चला गया।
श्यामलाल को उसने जिन सेक्शनों की स्टेशनरी वह निकाल लाया था, उन लोगों की
स्टेशनरी लेने के लिए बुलाने भेज दिया और भाटिया के बिलों का पेमेंट आर्डर
बनाने लगा। तब तक वह आदमी बैठा लाल साहब से बातें करता रहा।
पेमेंट आर्डर बनाकर उसने एकाउंटेंट के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिया और लाल
साहब से घर जाने के लिए छुट्टी मांगने लगा-“आर्डर थोड़ी देर में आ जाएगा, तो
आप इन्हें दे दीजिएगा, मुझे जरा घर तक जाना है। कोई एक घंटा लग जाएगा।" उसने
कहा।
"क्या बात है?" लाल साहब ने पूछा।
"मां की तबियत खराब है। यूरीन टेस्ट कराना था। मैं सुबह जल्दी में घर पर ही
भूल आया।"
"जाइए। स्टेशनरी तो सब निकाल दी न?" "कुछ सेक्शन रह गए है। कल पूरा हो
जाएगा।"
"हां, निबटा दो भाई! लोग नाक में दम किए हैं। हालांकि आफिस में कितनी
इस्तेमाल होती है और कितनी घर जाती हैं, सभी जानते हैं।"
उसने घड़ी देखी। एक बजने वाला था। बाहर आकर उसने स्टैंड से साइकिल उठाई और घर
के लिए चल दिया। घर पहुंचा, तो पत्नी बाहर कमरे में लेटी थी। उसने कितनी बार
उसे समझाया है कि दिन में थोड़ी देर मां के पास बैठा करे। कुछ बात किया करे।
परंतु उसकी आदत है कि मां से खाने आदि के लिए पूछने से अधिक बात नहीं करती।
मां को इसका दुख रहता है। परंतु वह जानता है, पत्नी स्वभाव वश ही ऐसा करती
हैं। अन्यथा उसे मां से चिढ़ हो, ऐसी बात नहीं।
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