बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अवसर राम कथा - अवसरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, दूसरा सोपान
कोई उत्तर उनके पास हो या न हो, किंतु कैकय के राजदूत के पास इतनी बड़ी निजी सेना, दशरथ किसी स्थिति में नहीं रहने दे सकते।
कल ही उन्हें राजसभा में घोषणा करनी पड़ेगी कि अयोध्या मे स्थित प्रत्येक राजदूत को अपने अंग-रक्षकों तथा निजी सेनाओं को कोसल के सेनापति के आज्ञाधीन मानना होगा।...और कल ही उन्हें कैकय के राजदूत की निजी सेना को निःशस्त्र कर अयोध्या की सेना के अधीन असैनिक पदों पर भेज देना होगा।
इतना तो उन्हें करना ही होगा-चाहे कोई प्रसन्न हो या अप्रसन्न...यह वह कर देंगे। किंतु उसके पश्चात? अब स्थिति यह नहीं थी कि वह सोचें कि भेड़िये को ईट मारें या न मारें। आधी ईट वह मार चुके थे और शेष आधी उन्हें मारनी ही होगी; उसके पश्चात भेड़िया चाहे झपट ही पडे...अब कैकेयी से यह छिपा भी नहीं रह सकता कि उन्होंने आघात कर दिया है। कैकेयी प्रत्याघात भी अवश्य करेगी...।
बात अब केवल कैकेयी की ही नहीं है। देश के भीतर का विरोध और बाहरी आक्रमणों की संभावनाएं...वह बवंडर उठेगा कि सत्ता दशरथ के हाथों में नही रह पाएगी। यदि बाहर से कोई न भी आया और विभिन्न दबावों में पिसकर, उन्हें अपने वचनानुसार सत्ता भरत को सौंपनी पड़ी, तो पिछले दिनों के इन सारे प्रयत्नों, संघर्षों, आघातों का क्या होगा। भरत कुल अट्ठारह वर्षों का तरुण है। वह स्वतंत्र रूप से राज नहीं कर सकता। राज युधाजित ही करेगा। दशरथ का भरत-विरोध खुलकर सामने आ चुका है।...ऐसी स्थिति में भरत के हाथ सत्ता गई तो दशरथ का स्थान कहां होगा-भूगर्भ कारागार में? गुप्त यन्त्रणालय में? युधाजित के चरणों में? अथवा खड्ग की नोक पर?...
कैकेयी की ओर से किसी प्रकार की दया, सहानुभूति अथवा कोमलता की अपेक्षा वह नहीं कर सकते। कैकेयी के साथ वह काफी लम्बे समय तक रहे हैं। वह उसकी धातु पहचानते हैं। होने पर आए तो वह कठोर भी हो सकती है और क्रूर भी। भरत की मां ने अपने हठ के पीछे पति के प्राणों तक की चिंता नहीं की थी, जबकि वह पति से प्रेम भी करती थी। दशरथ जानते हैं कैकेयी को उनके प्रति रंचमात्र भी प्रेम नहीं है-फिर वह दया क्यों करेगी?
तो? दशरथ स्वयं को कैकेयी की दया पर छोड़ दें? नहीं तो? दशरथ का ध्यान राम की ओर चला गया।...शंबर युद्ध के पश्चात् भी, दशरथ को राम ने ही सहारा दिया था। तब भी दशरथ ने सोचा था-कितना बड़ा बेटा है उनका, और कितना समर्थ। और अब तो राम अपनी सेवा, अपने शौर्य और चरित्र की उदारता के कारण सारे आर्यावर्त में श्रद्धेय हो चुका है।...दशरथ का ध्यान इस ओर पहले क्यों नहीं गया। उन्होंने सदा ही राम और राम की मां की उपेक्षा की है। कभी समय से, उन्हें उनका देश नहीं दिया...।
यदि राम को युवराज घोषित कर, सत्ता उसे सौंप दी जाए, तो किसे आपत्ति होगी? राम सम्राट् की ज्येष्ठ रानी का पुत्र है। भाइयों में सबसे बड़ा है। योग्य, शक्तिशाली और वीर है; सबसे बढ़कर लोकप्रिय है, प्रजा मन से उसका स्वागत करेगी। कोई यह नही कहेगा कि दशरथ ने घबराकर राज छोड़ दिया, कोई नहीं कह सकेगा कि दशरथ कैकेयी अथवा युधाजित से पराजित हुए। प्रत्येक व्यक्ति स्वीकार करेगा कि दशरथ ने उचित समय पर उपयुक्त पात्र को सत्ता सौंप दी...राम के हाथ में-सत्ता पूरी तरह सुरक्षित रहेगी-युधाजित अपनी तथा अपने मित्रों की संपूर्ण बर्बर सेनाएं लेकर भी अयोध्या पर चढ़ दौड़े, तो राम तनिक भी विचलित नहीं होगा।...
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