बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अवसर राम कथा - अवसरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, दूसरा सोपान
राम ने आश्रम में प्रवेश किया। कंधे से उतारकर अपना धनुष, आसन के साथ, भूमि पर रखा और बैठ गए। यह सबके लिए बैठ जाने का संकेत था।
''सुनो त्रिजट!'' राम ने बात आरंभ की, ''हमारे पास अधिक समय नहीं है। आज संध्या तक हमें तमसा तट तक पहुंचना है। अतः जल्दी चलना होगा। साथ आए इन सब बंधुओं के भोजन का प्रबंध शीघ्र कर दो, ताकि विलंब न हो।'' त्रिजट ने व्यवस्था कर रखी थी। संकेत पाते ही उसके शिष्य ब्रह्मचारियों ने भोजन परोसना आरंभ कर दिया।
उधर भोजन चलता रहा और इधर सुयज्ञ, चित्ररथ तथा त्रिजट आकर राम, सीता तथा लक्ष्मण के निकट बैठ गए।
''हम समस्त शस्त्रास्त्र, अपने रथों में रखकर, अपने साथ ले आए हैं।'' सुयज्ञ ने कहा, ''मेरा विचार है कि यहां से हम सब चलें। रात तमसा के तट पर ठहरें। प्रातः सब मित्रों और ब्रह्मचारियों को विदा कर, हम आपके साथ चलें और आपको श्रृंगवेरपुर में निषादराज गुह तक पहुंचा कर ही लौटें। अन्यथा शस्त्रास्त्रों के साथ कठिनाई होगी।''
''आगे के लिए क्या प्रबंध हो राम!'' त्रिजट ने पूछा।
''वहां से गुह के व्यक्ति हमें भारद्वाज आश्रम तक पहुंचा आएंगे।'' राम ने कुछ सोचते हुए कहा, ''आगे कठिनाई नहीं होगी। मेरा विचार है सुयज्ञ की योजना उत्तम है।''
''युवा-संगठनों के लिए क्या आदेश है?'' चित्ररथ ने भोजन करते हुए, युवकों की ओर संकेत किया।
''क्यों लक्ष्मण!'' राम बोले, ''तुम्हारी युवा सेना अयोध्या में ऊधम तो नहीं मचाएगी?''
''यह भरत के व्यवहार पर निर्भर है।'' लक्ष्मण ने उत्तर दिया, ''न्याय-संगत शासन को ये सहयोग देंगे। यदि भरत ने कैकेयी की प्रतिहिंसात्मक नीति अपनाई, तो अयोध्या को जलाकर क्षार कर देंगे।''
''तो ठीक है मंत्रिवर!'' राम ने कहा, ''लौटकर अधिकांश ब्रह्मचारी त्रिजट के आश्रम पर ही रहेंगे। ये लोग अपनी विद्या, साधना तथा ज्ञान का अभ्यास करेंगे; पर त्रिजट! लौकिक शस्त्रास्त्रों का अभ्यास भी इन्हें अवश्य कराना। लक्ष्मण के सारे युवा संगठनों के नागरिक सदस्य अयोध्या में निवास करेंगे। वे प्रतीक्षा करेंगे। यदि सब कुछ सुख-शांति से न्यायपूर्वक चलता रहा-यदि राजनीतिक शक्ति का उपयोग जनता के विरुद्ध नहीं किया गया, तो ये आवश्यकतानुसार या तो तटस्थ रहेंगे, अथवा भरत का समर्थन करेंगे। किंतु यदि भरत की राजनीति ने स्वयं को जनविरोधी सिद्ध किया, अथवा प्रतिहिंसा की नीति अपनाई, तो अयोध्या के भीतर उसके विरोध का दायित्व इन्हीं संगठनों पर होगा। यदि भरत ने सैनिक अभियान किया तो त्रिजट-आश्रम के ब्रह्मचारियों को अप्रत्यक्ष छिपा युद्ध करना होगा, ताकि अत्याचारी सेना की गति रोकी जा सके। किंतु सम्मुख
युद्ध वे लोग नहीं करेंगे। सम्मुख युद्ध की आवश्यकता पड़ी तो वह श्रृंगवेरपुर की निषाद सेना करेगी। मैं सारी गतिविधि का निरीक्षण चित्रकूट से करूंगा और स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जाने पर ही आगे बढ़ूंगा।''
''एक बात कहने की अनुमति मैं भी चाहूँगी।'' सीता बोलीं।
"बोलो प्रिये!''
''आशंकाओं ने अयोध्या में पर्याप्त अनर्थ कर डाला है-आशंकाएं, चाहे सम्राट् की रही हों अथवा माता कैकेयी की, कहीं ऐसा न हो कि भरत बेचारा भी, भरत-विरोधी आशंकाओं के कारण ही पीड़ित हो। राम-समर्थक सभी व्यक्तियों की ओर से प्रतिहिंसा की आशंका है। ऐसा न हो कि अपनी इन आशंकाओं के कारण भरत को गलत समझकर, उसका विरोध आरम्भ कर दिया जाए।...एक बात और भी है। आपके समर्थक संगठित और सशस्त्र हैं कहीं अपनी शस्त्र-शक्ति के प्रमाद में ये लोग भरत के शासन की उपेक्षा कर, उसमें प्रतिहिंसा न जगा दें।''
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