लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अवसर

राम कथा - अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6496
आईएसबीएन :81-216-0760-4

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

213 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास, दूसरा सोपान

सारी योजना को कार्यान्वित करने के लिए वह सारी लकड़ी चाहिए थी। उतनी लकड़ी एक ही दिन में नहीं काटी जा सकती थी, फिर केवल लकड़ी ही नहीं काटनी थी। संध्या तक दो कुटीर अवश्य तैयार हो जाने चाहिए थे। शेष काम धीरे-धीरे लकड़ी काटकर करते रहेंगे।

भोजन के पश्चात्, काटी गई लकड़ियों को लेकर, वे लोग नये आश्रम के लिए चुने गए स्थान पर आ गए। अब शक्ति और श्रम के स्थान पर कौशल की आवश्यकता थी। प्रत्येक व्यक्ति निरंतर काम करता दिखाई पड़ रहा था, किंतु लक्ष्मण सबसे अधिक व्यस्त थे। निर्माण कार्य बड़ी शीघ्रता से हो रहा था। सूर्य से जैसे होड़ लगी हुई थी...। अंततः लक्ष्मण सफल हुए। जिस समय तीनों कुटीर बनकर तैयार हुए, सूर्यास्त में अभी समय था।

एक बार फिर से वाल्मीकि आश्रम की ओर यात्रा आरंभ हुई। अत्यन्त सावधानी से सारा शस्त्रागार नये आश्रम में स्थानांतरित किया गया; राम, सीता तथा लक्ष्मण ने अपने आश्रम में प्रवेश किया। बड़े कुटीर में राम तथा सीता का स्थान था, छोटा कुटीर लक्ष्मण के लिए था। उन दोनों को मिलाने वाला मध्य कुटीर शस्त्रागार था। मध्य कुटीर में बाहर की ओर खुलने वाला, न तो कोई द्वार था, न गवाक्ष। उसमें से एक-एक लघु द्वार, राम-सीता तथा लक्ष्मण वाले कुटीरों में खुलता था।

व्यवस्था पूर्ण होने पर, वाल्मीकि-शिष्य अपने आश्रम की ओर लौट गए। उन्हें सूर्यास्त से पूर्व अपने आश्रम में पहुंचना था। उस दल के पीछे-पीछे, सबसे धीमी गति से चलने वाला व्यक्ति-मुखर था।

रात को लक्ष्मण सोने के लिए अपनी कुटिया में चले गए, तो राम ने सीता की ओर परीक्षक दृष्टि से देखा : क्या प्रतिक्रिया है सीता की आज तक की घटनाओं के विषय में?

अयोध्या से बाहर न यह पहला दिन था, न पहली रात। किंतु अब तक वे लोग चलते रहे थे। प्रत्येक दिन, पिछले-दिन से भिन्न था और प्रत्येक रात पिछली रात से। कोई असुविधा अधिक नहीं खटकती थी, क्योंकि अगला दिन उसी प्रकार घटने वाला नहीं था। आज से उनके जीवन में एक विराम आया था, और एक सीमा तक स्थायित्व भी। वनवास की सारी अवधि उन्हें चित्रकूट में व्यतीत करनी थी; किंतु संभव है कि उन्हें यहां वर्षभर नहीं तो, कुछ मास लग जाएं। जाने कब अयोध्या के दूत भरत को बुलाने जाएं। कैकेयी को भरत के युवराज्याभिषेक की जल्दी है, इसलिए दूतों को भेजने में अधिक समय नहीं लगेगा। कैकय राजधानी बहुत निकट नहीं है। दूतों को पहुंचने में कुछ समय लगेगा फिर भरत के नाना उसे विदा करने में भी समय लगाएंगे ही। भरत लौटेंगे, उनका अभिषेक होगा, वे सत्ता हाथ में लेंगे, तब कहीं जाकर उनकी नीति स्पष्ट होगी। तब तक राम को चित्रकूट में रुकना होगा...

वनवास की अवधि में लक्ष्मण किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव नहीं करेंगे-राम जानते थे-उन्हें केवल राम का संग मिल जाए, तो वे मग्न हो जाते हैं; और यहां तो सामने एक लक्ष्य भी था। यह सारा चित्रकूट प्रदेश उनके सम्मुख था। यहां के लोगों से परिचय प्राप्त करना था। उनकी जीवन-पद्धति को समझना था, उनकी कठिनाइयों और समस्याओं को जानना था। विभिन्न आश्रमों की व्यवस्था और उनके शिक्षण-सार को परखना था। फिर प्रकृति एक चुनौती के समान उनके सामने खड़ी थी, पर्वत, नदी, वन, हिंस्र पशु; और जैसा कि भारद्वाज आश्रम से ही सुनाई पड़ना आरभ हो गया था कि इस क्षेत्र में राक्षसी अन्याय भी बढ़ता जा रहा था। लक्ष्मण इन सबमें उलझे रहेंगे : उन्हें अयोध्या की याद नहीं आएगी, माता की याद भी नहीं आएगी। जानने-सुनने को कुछ नया हो, करने को कुछ अपूर्व हो, सामने एक चुनौती हो, तो लक्ष्मण स्वयं को भी भूले रहते हैं...

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पंद्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book