जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
तेजी को अपने नये प्रस्ताव के विषय में मैंने बहुत डरते-डरते लिखा। जब बात छह महीने मेरे इंग्लैण्ड में रहने की उठी थी, तब उन्होंने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी, जब दस महीने प्रवास में रहकर लगे हाथ योरोप-भ्रमण की, तब उन्होंने अपना समर्थन दिया था, जब पन्द्रह महीने केम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड में रहकर शोधसामग्री एकत्र करने की. तब उन्होंने कोई आपत्ति न की थी. और अब जब चौबीस महीने केम्ब्रिज में रहकर शोध-कार्य वहीं पूरा करके लौटने की बात खड़ी हुई तो मुझे पता नहीं था, उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी। उनके पत्र मेरे पास बराबर आया करते थे। केम्ब्रिज में अपने मानसिक तनाव की बात मैं पहले लिख चुका हूँ, तेजी भी इलाहाबाद में बैठी उसी प्रकार का मानसिक तनाव अनुभव कर रही थी। अक्सर उन पर कमज़ोरी और उदासी के दौर आते, उन्हें लगता कि उनकी हिम्मत और ताकत आधी रह गयी है, और अब वे मुश्किलों और मुसीबतों का सामना करने में उतनी समर्थ नहीं हैं, जितनी मेरे सान्निध्य में थी। कभी-कभी उन्हें लगता कि मेरे बिना इलाहाबाद में वे सर्वथा अजनबी और असुरक्षित हैं और अगर उन पर कोई खतरा आये तो उन्हें और उनके बच्चों को बचाने वाला कोई नहीं है। मैं अपने पत्रों से उन्हें दिलासा देता, ढाढस बँधाता. जीवन में आयी अनेक परिस्थितियों का सामना करने की उनकी क्षमता की उन्हें याद दिलाता, उनका हौसला बढ़ाता, पर मुझे यह ख्याल भी आता कि ढाई-तीन महीने में उनका यह हाल है तो पन्द्रह महीने कैसे कटेंगे! कभी-कभी मुझे आशंका होती कि उनकी मानसिक स्थिति ऐसी ही रही तो सम्भव है, एक दिन अचानक मुझे देश लौट जाना पड़े। पर तेजी ने अपने उत्तर से मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। एक झटके से जैसे उन्होंने अपनी सारी दुर्बलता दूर हटा दी और मेरे सामने एक स्पष्ट लक्ष्य देखकर उन्होंने बड़े आत्मविश्वास से मुझे लिखा-'अगर नौ महीने और वहाँ रहने से आपका शोध-कार्य वहीं पूरा हो जाता है तो आप खुशी से उसे पूरा करके ही लौटें। हाँ, इतना ज़रूर निश्चित कर लें कि आपको वहाँ का खर्च शिक्षा मन्त्रालय से मिल जायेगा। यहाँ की चिन्ता करने की आपको ज़रूरत नहीं। यहाँ जो कुछ उपलब्ध है और होगा, उसी से हम अपना काम चला लेंगे। कष्ट अगर उठाना ही पड़ा तो मैं उठाऊँगी, बच्चों को किसी प्रकार की तकलीफ न होने दूंगी। आप वहाँ एकाग्रता से काम करें। बच्चे प्रतिदिन यहाँ आपकी सफलता के लिए प्रार्थना करेंगे, देखिये, उन्हें निराश न होना पड़े, नहीं तो ईश्वर पर से ही उनका विश्वास हट जायेगा।' श्रम-संघर्ष के लिए तेजी मुझे प्रेरित कर सकती हैं, यह तो मैं जानता था, पर वे मुझे सफल होने की इतनी बड़ी कसम भी दिला सकती हैं, इसकी कल्पना मैंने न की थी। नारी, तू अपनी भीरुता को इतनी जल्दी कैसे अपनी धीरता में बदल देती है-अपनी मृदुता को अपनी दृढ़ता में!
तेजी से लाइन क्लियर मिलने पर मैं मि० हेन से मिला। वे इस बात से बहुत प्रसन्न हुए कि मैंने दो वर्ष केम्ब्रिज में ही रहकर अपना शोध-कार्य पूरा करने और यहीं से पी-एच०डी० के लिए शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत करने का इरादा किया है। उन्होंने यह तो माना कि जिस प्रकार का शोध-कार्य मेरे मन में है, उसे पूर्ण करने के लिए दो वर्ष का समय पर्याप्त है, पर पी-एच०डी० की डिग्री शायद मुझे न मिल सके। उन्होंने मुझे बतलाया कि 'शोध के लिए केम्ब्रिज में बाहर से बहुत-से लोग आते हैं। कुछ लोगों के पास यहाँ रहने को साल-भर का समय होता है, कुछ के पास दो वर्ष का और कुछ के पास तीन वर्ष या इससे अधिक का। यहाँ की आर्ट्स फैकल्टी ने शोध-सम्बन्धी कार्य को तीन श्रेणियों में बाँट दिया है कि सभी तरह के लोग अपनी रुचि-सामर्थ्य-सुविधा के अनुसार इनसे लाभान्वित हो सकें। जो केवल एक वर्ष यहाँ रह सकते हैं, उनके लिए शोध-विधि (Method of Research) पर व्याख्यान होते हैं, उन्हें पुराने ग्रन्थों को सम्पादित अथवा संशोधित करना सिखाया जाता है, शोध की नैतिकता (Ethics of Research) का व्यावहारिक ज्ञान कराया जाता है और शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत करने की तकनीक बताई जाती है-एकरूपता और व्यवस्था लाने के लिए योरोप में प्रायः हर काम वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है, शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत करने की भी एक वैज्ञानिक रीति है। कोर्स पूरा करने पर शोधार्थी को रिसर्च का एक डिप्लोमा दिया जाता है। जो लोग दो वर्ष के लिए आते हैं, उन्हें एम० लिट० की डिग्री के लिए तैयार किया जाता है। वे किसी बड़े विषय के एक अंग को अपने शोध के लिए चुनते हैं। उनसे किसी मौलिक खोज की प्रत्याशा नहीं की जाती। प्रायः वे अपने विषय में व्यक्त किये गये, इधर-उधर फैले ज्ञान को, अपनी स्थापना (hypothesis) के अनुरूप-और स्थापना तो उन्हें बनानी ही पड़ती हैसंचित, सुव्यवस्थित करते हैं, अधिक-से-अधिक वे उस पर टिप्पणी करते हैं। जो लोग तीन वर्ष का समय दे सकते हैं, उन्हें पी-एच०डी० के लिए रजिस्टर किया जाता है। वे शोध का कोई सम्यक् विषय लेते हैं, उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने विषय पर कोई ऐसी मौलिक खोज करेंगे, जिससे किसी लेखक अथवा उसकी रचना अथवा उसके युग के सम्बन्ध में पुरानी और प्रायः प्रचलित या स्वीकृत धारणा को बदला जा सके, कम-से-कम उसे चुनौती दी जा सके। संक्षेप में, उनका शोध ज्ञान-वृद्धि में योगदान (Contribution to knowledge) हो। डी० लिट० तो प्रायः मानद डिग्री है जो किसी-किसी वयोवृद्ध स्कालर को उसके जीवन-भर के सृजनशील समालोचनात्मक कार्य पर दी जाती है। केम्ब्रिज में साहित्य के एकमात्र डी० लिट० डॉ० टिलयार्ड हैं। उदाहरण के लिए W. B. Yeast and India एम० लिट० का विषय हो सकता था। W. B. Yeast and the Irrational पी-एच० डी० का विषय है, और चूँकि तुम केवल दो वर्ष उसे दे सकोगे, इसलिए फैकल्टी ऐसा समुझेगी कि तुम उसके साथ पूरा न्याय नहीं कर सकोगे और नियमत: वह तुम्हें एम० लिट० के लिए रजिस्टर करेगी।
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