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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


राम के पिता राजा दशरथ ने तीन-तीन पत्नियों को खीर खिलायी और पत्नियों ने फट से चार-चार पुत्र सन्तानों को जन्म दे डाला। पुराणों की वही जादू की खीर भारत के दक्षिणांचल में कहीं-कहीं आज भी औरतों को खिलायी जाती है ताकि वह पुत्र को जन्म दे।

किसी-किसी की राय में सीता इस समाज के कन्या-शिशु-हत्या-यज्ञ की शिकार हुईं और बाद में उनका उद्धार किया गया। राजा जनक को सीता माटी के नीचे गड़ी हुई एक हाँडी में मिली थीं। जहाँ वे मिली थीं, वहाँ की रीत थी-हाँडी में जिन्दा कन्या-शिशु को ढूंसकर उसमें टुकड़ा भर गुड़ और टुकड़ा भर धागा रखकर, हाँडी का ढक्कन कस कर बन्द कर दिया जाता था और उस हाँडी को मिट्टी तले गाड़कर लोग ज़ोर से चिल्लाकर कहते थे-'गुड़ खा, वहीं रह, कभी लौटकर मत आना। अपने भाई को भेज दे।' सम्भवतः कहा गया है-राम एवं सीता, दोनों ही सेक्स सिलेक्शन के प्राचीन फॉर्म की 'प्रोडक्ट' हैं।

पुत्र-पिपासा में धर्म, जाति में कोई भेद-भाव नहीं होता। बादशाह अकबर ने बेटे की चाह में शेख सलीम चिश्ती से दुआ माँगी थी। बेटा हुआ! बेटे का नाम रखा गया-सलीम और बेटे की पैदाइश पर जश्न मनाने के लिए फतेहपुर सीकरी नामक एक खूबसूरत शहर तामीर किया गया था।

इस देश के कोने-कोने, गली-कूचे में धर्मशालाएँ स्थित हैं, जहाँ जाकर पुत्र-कामना की जाती है। हिन्दू, सिख, मुस्लिम, बौद्ध-सभी को पुत्र की ज़रूरत होती है। समूचा भारत बाबा लोगों से भर उठा है। बाबा लोगों के दरवाज़े पर धरने दिये जाने लगे। फकीर कविराज तो बहुत हुए। भगवान, बाबा-ये लोग अब कोई इतने परफेक्ट नहीं रहे। विज्ञान परफेक्ट है। विज्ञान अब, इन्सान को झाड़-फूंक, टोना-टोटका, भगवान, बाबा से उद्धार करने के लिए आया है। भगवान से प्रार्थना करने के बावजूद, सैकड़ों तरह के पूजा-पाठ करने के बावजूद, इतना बढ़िया फल कभी नहीं मिला, जैसा सुफल विज्ञान दे रहा है। विज्ञान के आगमन के बाद, अब कोख में पलते बच्चे का लिंग तक देखा जा सकता है, लिंग अगर पसन्द नहीं आया, तो लिंग समेत बच्चे को हवा कर दिया जाता है। 'ट्रेडीशन' और 'टेक्नोलॉजी' का ऐसा समन्वय दुनिया में कहीं इतने बीभत्स तरीके से नहीं है।

ढेरों अनचाहे गर्भ को विज्ञान के माध्यम से विदा किया जा सकता है।' शुरू-शुरू में विज्ञान के लोग यह दावा भी करते थे। स्कैन तो खैर है ही, अब, एमनिओसिंथेसिस आया। यह मुख्यतः भ्रूण में कोई अस्वाभाविकता या डिफॉर्मिटी या पंगुत्व तो नहीं है, इसकी जाँच करने के लिए होता है।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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