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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


गर्भपात दो तरह से किये जाते हैं। वैध और अवैध। वैध और अवैध में धागे जैसा महीन-सा फर्क होता है। गर्भपात कराना वैध होता है, लेकिन लिंग निर्णय के बाद गर्भपात कराना अवैध है। कोई भी औरत वैध तरीके से गर्भपात करा सकती है। बशर्ते भ्रूण में कोई अस्वाभाविकता पायी गयी हो। लेकिन स्वाभाविक और अस्वाभाविक के बीच फर्क क्या है? डॉक्टरी विज्ञान में जिस भ्रूण को अस्वाभाविक भ्रूण कहा जाता है, वह और स्वस्थ-स्वाभाविक कन्या-भ्रूण-ये दोनों ही स्थान पर खड़े हैं। सामाजिक तौर पर ये दोनों ही भ्रूण अनचाहे होते हैं।

अस्वाभाविक या पंगु भ्रूण और कन्या-भ्रूण-इन दोनों को जन्म देने में काफी ख़र्च होता है। मानसिक स्वस्थता भी क़ायम नहीं रहेगी, अर्थनैतिक मेरुदण्ड भी टूट जायेगा। इससे तो बेहतर है ऐसे शिशु को जन्म ही न दिया जाये। यह है कन्या-भ्रूण-हत्या में विश्वास करने वाले लोगों की राय।

गर्भपात की क्लिनिकों की तरफ़ से एक इश्तेहार दिया जाता है-पाँच सौ रुपये खर्च करें और 50,000 रुपये बचायें, यानी इसे मार डालें। अगर यह बचा रहा तो तेरी अंटी से पचास हजार रुपये दहेज देने में खिसक जायेंगे। सन् 2005 में ही अल्ट्रासाउण्ड का कारखाना ही पूरे 500 करोड़ रुपयों में गढ़ा गया। पुत्र-पिपासु लोगों के लिए लिंग-निर्णायक क्लिनिक आजकल आधुनिक मंदिर बन गये हैं।

गर्भपात के अधिकार के लिए यूरोप-अमेरिका की औरतों को लम्बी लड़ाई लड़ना पड़ी थी। गर्भपात का अधिकार पाना नारी-स्वाधीनता के पक्ष में विराट घटना है। लेकिन भारतवर्ष में एक विशेष लिंग की वजह से जब कभी गर्भपात की घटना होती है और वह लिंग अगर स्त्रीलिंग है, उसके साथ नारी-स्वाधीनता का तो नाता होता ही नहीं बल्कि इसके साथ औरत-पराधीनता की करुण कहानी भी जड़ी होती है।

भारतीय जिस भी देश में निवास करने जायें, टुकड़ा भर भारत अपने साथ ले जाते हैं। यूरोप, अमेरिका वे लोग चाहे जहाँ भी रहें, उनकी पुत्र-लिप्सा कभी नहीं मरती। वहाँ के मुक़ाबले यहाँ खर्च कम लगता है इसलिए गर्भपात कराने यहाँ चले आते हैं। जाँच-पड़ताल करने पर और भी सैकड़ों जानकारियाँ मिली हैं। भ्रूण में रोग की जाँच के लिए आधुनिक पद्धतियों का सहारा ले कर वे लोग गुपचुप लिंग भी देख लेते हैं, भ्रूण अगर कन्या शिशु का हुआ, तो आँख मूंदकर हत्या! न्यू जर्सी के भारतीय परिवार में कन्या-शिशु की संख्या पंजाब, हरियाणा से कुछ अधिक नहीं है। भारतीय लड़कियाँ अब काफ़ी हद तक विलुप्तप्राय प्राणी हैं, एन्डेनजारभ, बाघों से भी अधिक विलुप्तप्राय।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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