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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


पुरुषांग न होने के जुर्म में, जिन लोगों को ज़िन्दगी भर नियतित होना पड़ता है, प्राप्य स्वाधीनता और अधिकारों से वंचित होना पड़ता है। दीन-हीन, गरीब हो कर परमखापेक्षी हो कर, आश्रिता हो कर, बोझ हो कर, ज़िन्दा रहने की असहनीय यन्त्रणा सहने को मजबूर होना पड़ता है। परिवार, समाज और राष्ट्र में जिनकी कोई सरक्षा नहीं है, ऐसी औरतों की भला जात क्या? समाज क्या? देश क्या? बांग्ला और बंगाली पर मर्द भले गर्व कर सकता है, औरत के पास गर्व करने को कुछ भी नहीं है।

बंगाली औरत के त्याग पर खड़े हो कर बंगाली-मर्द अपने फ़ायदे बटोर लेते हैं। औरतें कुछ भी बटोर नहीं पातीं। शून्य जीवन, शून्य में ही पड़ा रहता है। जिस पति और गृहस्थी के लिए औरतें अपनी ज़िन्दगी निःशेष कर देती हैं, वही कोई सुख नहीं देता। कलाई में जूही फूलों का गजरा लपेटे, टमटम-बग्घी पर सवार हो कर, बाबू लोग हर शाम बाई जी की महफ़िल में जाया करते थे। अब, न तो टमटम-बग्घी रही, न ही बाई जी की महफिल।

लेकिन औरत की अवज्ञा-अपमान पर नारी संग, बहुगामिता-सारा कुछ बहाल तबीयत से आज भी मौजूद है। मर्द अपना बहुगामी स्वभाव, देह और धर्म आज भी कायम रखे हुए है। पिछले ज़माने में मर्द जितनी बार चाहे विवाह कर सकता था, करता भी था। लेकिन, अब एक से अधिक विवाह बंगाली-हिन्दुओं में ज़रूर निषिद्ध हो गया है लेकिन बंगाली-मुसलमानों के लिए नहीं हुआ। वे लोग आज भी चार-चार शादियों का मौज-मज़ा लेते हैं। मानसिक-शारीरिक अत्याचार बरसा कर औरतों का जीना मुहाल किये रहते हैं। वैसे मर्द चाहे जिस भी धर्म का हो, जिस भी जात का हो, बहुगामिता को अपने लिए क़ानूनी हक़ समझते हैं। लेकिन औरत के लिए? अगर वह वेश्या हो तो वैध है, वर्ना नहीं। बंगाली औरत को सेक्स की बातें करने की मनाही है। पति अगर नपुंसक हो तो भी उसे त्याग करने की मनाही है। सम्पत्ति पर दावा करने की मनाही है। उच्चाकांक्षिणी होने की मनाही है। अपने सुख और स्वाधीनता के लिए कोई कदम उठाने की मनाही है। यानी मनाही का कहीं कोई अन्त नहीं। नाराज़ होना, अड़ जाना, फाड़ डालना, तोड़ डालना-हर बात की मनाही।

इतनी सारी मनाही के बावजूद जो औरतें तोड़-फोड़ करती हैं, दावा करती हैं, अपने अधिकार के लिए ज़ोरदार आवाज़ उठाती हैं, छीन लेती हैं, नोच लेती हैं, पीछे मुड़ कर नहीं देखतीं, लोगों की थू-थू, हिकारत की बिलकुल परवाह नहीं करतीं, भेद-भाव का प्रतिवाद करती हैं, किसी उत्तेजक घटना का सूत्रपात करती हैं-ये सब, चिर-आचरित बंगाली औरत की दमघोंटू ज़िन्दगी के दायरे से बाहर निकल आने वाली औरतें हैं। इन औरतों ने सिर पर आँचल डाले, सिन्दूर लगाये, मर्द की व्यक्तिगत सम्पत्ति बनी रहने वाला चेहरा उछाल कर फेंक दिया है और वे लोग नया चेहरा ले कर आयी हैं। वैसे ऐसी औरतें गिनती में काफ़ी कम हैं। लेकिन वे लोग अगर नारी के नित्य-निर्यातन से नारी को बचाती हैं, तमाम नारियों को सचेतन करें ताकि नारी एकबारगी ऐलान करे-मर्दो के साथ सामाजिक सम्पर्क भले हो, लेकिन हमारा परिचय, मर्दो की माँ, बहन, बेटी या दादी-नानी, जेठी, काकी न हो कर, मेरा पृथक् अस्तित्व है। हम औरतें, मर्द या मर्द-शासित समाज की सम्पत्ति नहीं हैं, हम इन्सान हैं। हम सब मनुष्य के अधिकार के साथ जियें, हमारी स्वाधीनता की राह में धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज, कानून-कोई भी, अगर बाधा बन कर अड़ा, तो हम उसे कुचल कर आगे बढ़ जाती हैं-तभी न पुरुषतन्त्र अंकित, नतमुखी-सेवादासी, बंगाली नारी, इन्सान जैसी इन्सान बन सकेगी। बंगाली औरत की नयी संज्ञा तैयार होगी-प्रतिवादी, बुद्धिमती, समता में विश्वासी, सबल, सचेतन, साहसी, दृढ़ और दुर्विनीत! बंगाली होने के नाते मुझे गर्व होगा।

क्या आपको नहीं होगा?



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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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