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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


बंगाली औरतों की जो तस्वीर, लोगों के मन में बसी हुई है, वह है साड़ी पहने हुए! उम्र ज़्यादा है तो मामूली क़िस्म की घरेलू सफेद साड़ी पहने आँचल में चाबी का गुच्छा। और उम्र अगर कम हुई तो चुन्नटदार रंगारंग साड़ी। औरत अगर हिन्दू हुई तो माथे पर बिन्दी, माँग में सिन्दूर। अगर न हुई तो जिस हुलिये में है, बस उसी वेश में। हाथ में चूड़ी, कान में ईयरिंग। नाक में नथ या बिना नथ के ही। बंगाली औरत किस चरित्र की होगी, यह तो युग-युगों से मर्दो ने ही तय कर दिया है-लज्जावती, मायावती, नम्र, नत! बंगाली औरत को स्वाधीनचेता, स्वकीय, स्वेच्छाचार रूप शोभा नहीं देता। बंगाली औरत तन-मन उड़ेल कर, घर गृहस्थी के कामकाज में, दिन उगे से ले कर रात-ढले तक मेहनत-मशक्कत करे, बीच-बीच में वीणा या तानपूरा या हारमोनियम बजा कर गाये, चटाई पर अधलेटी हो कर, दुपहरिया के वक़्त कविता लिखे या घर-गृहस्थी की गपशप करे, दरवाजे पर खड़ी हो कर पति का बेचैनी से इन्तज़ार करे, पति जब घर लौटे, तो अपने हाथ से पकाया हुआ खाना बड़े प्यार से परोस कर कौर-कौर खिलाये, हाथ-पंखा डुला कर हवा झले। खुद सबसे बाद में खाये, सबसे नीचे, सर्वहारा लोगों के साथ! धरम-करम करना, बन्द जुबान से सबके सभी अत्याचार सहना, दिल की समूची ममता उँडेले रखना, दुनिया के सभी लोगों के लिए मंगल-कामना करना, दूसरों की सेवा में अपनी ज़िन्दगी विसर्जित करना-अगर ये तमाम हुनर मौजूद न हों तो वह भला बंगाली औरत हो सकती है? बंगाली औरत का मतलब है-सुचित्रा सेन, शबाना, यामिनी राय या कमरुल हसन।

ये तमाम चित्र-चरित्र रचे-गढ़े गये हैं। बहुतेरी औरतें इन्हें चीर कर बाहर भी निकल आयी हैं। ऐसी औरतें अपनी मर्जी का पहनती हैं, अपनी मर्जी का करती हैं। पोशाक में पर्याप्त पश्चिमी रंग-ढंग, भाषा चौकस, बदन के अंग-अंग में लहर, बाँध न मानने वाली, बाधा न मानने वाली। वे औरतें देखने में नयी हैं, सुनने में नयी हैं। लेकिन उन लोगों के साथ काफ़ी दूर तक चलते रहो, तो नज़र आता है। वे लोग एक सीमा तक ही पहुंची हैं, सीमा से बाहर कभी एक कदम भी नहीं बढ़ातीं। वे लोग संस्कार का एक अदृश्य धागा कस कर थामे रहती हैं, धागा कहीं से खिंचते ही पीछे हट जाती हैं। वे लोग पीछे हट कर शादी-ब्याह कर लेती हैं। पति-सेवा करती हैं. बच्चे पैदा करती हैं, अपनी ज़िन्दगी उत्सर्ग कर देती हैं और जुबान पर ताला जड़े, सब कछ सहती रहती हैं। ये औरतें शुरू-शरू में आधुनिक नज़र आती हैं, मगर दरअसल आधुनिक होती नहीं।

ऐसी औरतें शुरू-शुरू में नये दिनों के सपने दिखाती हैं, लेकिन जवान होते ही दादी-नानी के आदर्श क़बूल कर लेती हैं, उन्हीं लोगों की तरह ही, उन्हीं के वृत्त में उतरने लगती हैं। आधुनिकता का सच्चा अर्थ समझने मंह अगर कहीं परेशानी होती है तो शायद ऐसा ही होता है।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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