परिवर्तन >> मनोरमा मनोरमाप्रेमचंद
|
10 पाठकों को प्रिय 9 पाठक हैं |
आजादी के पहले की नारी व्यथा को इस उपन्यास में पिरोने का प्रयास
प्रेमचंद भारत की नई राष्ट्रीय और जनवादी चेतना के प्रतिनिधि साहित्यकार
थे। अपने युग और समाज का जो यथार्थ चित्रण उन्होंने किया, वह अद्वितीय है।
जब उन्होंने लिखना शुरू किया था, तब संसार पर पहले महायुद्ध के बादल मंडरा
रहे थे। जब मौत ने उनके हाथ से कलम छीन ली, तब दूसरे महायुद्ध की
तैयारियां हो रही थीं।
इस बीच विश्व-मानव-संस्कृति में बहुत से परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों से हिन्दुस्तान भी प्रभावित हुआ और उसने उन परिवर्तनों में सहायता भी की। विराट मानव-संस्कृति की धारा में भारतीय जन-संस्कृति की गंगा ने जो कुछ दिया, उसके प्रमाण प्रेमचंद के उपन्यास और उनकी सैकड़ों कहानियां हैं।
‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है। रानी मनोरमा के माध्यम से प्रेमचंद ने उस समय की नारी व्यथा को इस उपन्यास में पिरोने का प्रयास किया है। चक्रधर का विवाह हो या निर्मला का वियोग इस उपन्यास की सभी घटनाएं तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था की देन हैं।
इस बीच विश्व-मानव-संस्कृति में बहुत से परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों से हिन्दुस्तान भी प्रभावित हुआ और उसने उन परिवर्तनों में सहायता भी की। विराट मानव-संस्कृति की धारा में भारतीय जन-संस्कृति की गंगा ने जो कुछ दिया, उसके प्रमाण प्रेमचंद के उपन्यास और उनकी सैकड़ों कहानियां हैं।
‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है। रानी मनोरमा के माध्यम से प्रेमचंद ने उस समय की नारी व्यथा को इस उपन्यास में पिरोने का प्रयास किया है। चक्रधर का विवाह हो या निर्मला का वियोग इस उपन्यास की सभी घटनाएं तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था की देन हैं।
गूगल प्ले स्टोर पर पढ़े
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book