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भूतनाथ (सेट)

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :2177
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 7144
आईएसबीएन :000000000

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तिलिस्म और ऐयारी संसार की सबसे अधिक महत्वपूर्ण रचना

प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।

उत्तर-

शिक्षा का मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय

भारतीय योग मनोविज्ञान का विचार केन्द्र मनुष्य का बाह्य स्वरूप और उसका अन्तःकरण दोनों होते हैं। बाह्य स्वरूप में वह उसकी कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों का अध्ययन करता है और अन्तःकरण में चित्त (मन, बुद्धि और अहंकार) का अध्ययन करता है। उसकी दृष्टि से - "शिक्षा का अर्थ है मनुष्य की बाह्य इन्द्रियों और अन्तः करण का प्रशिक्षण।"
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों का विचार केन्द्र मनुष्य का शरीर, मस्तिष्क और व्यवहार होता है, वे अभी उसके अन्तःकरण के मूल तत्त्व, मन, बुद्धि और अहंकार की खोज नहीं कर सके हैं। उनकी दृष्टि से मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है जो जन्म से कुछ शक्तियाँ लेकर पैदा होता है और इन शक्तियों पर ही उसका विकास निर्भर करता है। अतः शिक्षा के द्वारा सर्वप्रथम इन शक्तियों का विकास होना चाहिए। अब प्रश्न उठता है कि इन जन्मजात शक्तियों का विकास किस दिशा में और कितना किया जाये। इस विषय के जर्मन शिक्षाशास्त्री पैस्टालॉजी का मत है कि यह विकास स्वाभाविक, सम और प्रगतिशील होना चाहिए। उन्होंने शिक्षा को इसी दृष्टि से परिभाषित किया है। उनके शब्दों में -
"शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक समरस और प्रगतिशील विकास है। पैस्टालॉजी के शिष्य फ्रोबेल ने शिक्षा को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है - 'शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक अपनी आन्तरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रकट करता है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न 1

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