लोगों की राय

परिवर्तन >> भूतनाथ (सेट)

भूतनाथ (सेट)

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :2177
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 7144
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

207 पाठक हैं

तिलिस्म और ऐयारी संसार की सबसे अधिक महत्वपूर्ण रचना

प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

शिक्षा का सही सम्प्रत्यय

शिक्षा के विषय में दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों, राजनीतिशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। यदि हम ध्यानपूर्वक देखें तो वे क्षेत्र विशेष तक सीमित हैं। आज हम शिक्षा की व्याख्या करते समय इन सभी के दृष्टिकोणों से तथ्यों का चयन करते हैं। शिक्षा जगत में इसे संकलक प्रवृत्ति (Electric Tendency) कहते हैं। इनके द्वारा उद्घाटित तथ्य संक्षेप में प्रस्तुत हैं। ये तथ्य ही शिक्षा की प्रकृति (Nature of Education) को स्पष्ट करते हैं।
दार्शनिकों ने शिक्षा के विषय में इस तथ्य को उजागर किया कि यह सोद्देश्य प्रक्रिया हैं, इसके द्वारा मनुष्य के ज्ञान एवं कला-कौशल में वृद्धि और व्यवहार में परिमार्जन किया जाता है।
समाजशास्त्रियों ने शिक्षा के विषय में पाँच तथ्यों को उजागर किया और वे ये हैं कि यह सामाजिक प्रक्रिया है, अविरत प्रक्रिया है, द्विध्रुवीय प्रक्रिया है, विकास की प्रक्रिया है और गतिशील प्रक्रिया है।
राजनीतिशास्त्रियों ने यह तथ्य स्पष्ट किया कि किसी भी राष्ट्र का विकास उसकी शिक्षा पर निर्भर करता है, शिक्षा के द्वारा श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण किया जाता है।
अर्थशास्त्रियों ने यह तथ्य उजागर किया कि शिक्षा एक आर्थिक निवेश है, इसके द्वारा व्यक्ति और समाज का आर्थिक विकास किया जाता है।
मनोवैज्ञानिकों ने यह तथ्य स्पष्ट किया कि शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों पर निर्भर करती है और वैज्ञानिकों ने यह तथ्य उजागर किया कि शिक्षा मनुष्य की अन्त शक्तियों और बाह्य जीवन में सामंजस्य स्थापित करती है।
अब यदि हम शिक्षा को परिभाषा में बाँधना चाहें तो ये सभी तथ्य सामने रखने होंगे। अब तक हमने शिक्षा की जो भी परिभाषाएँ देखी हैं उनमें प्रायः दो दोष हैं - एक तो यह कि इनसे शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का स्पष्ट बोध नहीं होता और दूसरा यह कि ये शिक्षा के किसी उद्देश्य विशेष पर ही बल देती है। यही कारण है कि वे सर्वमान्य परिभाषाएँ नहीं हो सकीं। शिक्षा की उपयुक्ततम परिभाषा तो वह होगी जिससे शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति एवं कार्य, दोनों का स्पष्ट बोध हो। इस दृष्टि से शिक्षा को निम्नलिखित में परिभाषित करना चाहिए -
"शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कला-कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यष्टि एवं समाज दोनों निरन्तर विकास करते हैं।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न 1

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book