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भूतनाथ (सेट)

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :2177
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 7144
आईएसबीएन :000000000

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तिलिस्म और ऐयारी संसार की सबसे अधिक महत्वपूर्ण रचना

प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
उत्तर-
विद्या के सम्बन्ध में अधिकांश भौतिक विद्वान शिक्षा को ही विद्या मानते हैं। वे विद्या और शिक्षा के अन्तर को समझने में असमर्थ हैं जबकि विद्या और शिक्षा इन दोनों में धरती और आसमान का अन्तर है।
भारतीय विचारधारा के अनुसार शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के शिक्ष धातु में 'अ' प्रत्यय लगने से बना है जिसका अर्थ है - सीखना तथा सिखाना। इस प्रकार शिक्षा से आशय है कि यह वह निरन्तर प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानव सीखता है तथा दूसरे को सिखाता है। भौतिक शिक्षा अनुकरण के द्वारा सीखी जाती है जिसका सम्बन्ध ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों व मन बुद्धि तक सीमित है। जबकि विद्या शब्द विद् धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना अर्थात् वास्तविक ज्ञान। ज्ञान का विकास वैदिककालीन शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य था। तब ज्ञान को मनुष्य का तीसरा नेत्र माना जाता था जो कि हमें दृश्य व सूक्ष्म दोनों जगत् का ज्ञान कराता है। आध्यात्मिक विकास हेतु नीतिशास्त्र के साथ भाषा, साहित्य और धर्म का ज्ञान कराया जाता था तथा धार्मिक क्रियाओं में प्रशिक्षित किया जाता था। ज्ञान स्वयं अन्तर से प्रकट होता है इसे ही अध्यात्मक ज्ञान कहा जाता है।
वैदिक काल में दो प्रकार की विद्याएँ थीं -
A. परा विद्या (आध्यात्मिक विद्या)
 चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) का अध्ययन,
 वेदांग, दर्शन, पुराण, उपनिषद, नीतिशास्त्र आदि।
B. अपरा विद्या (लौकिक विद्या)
 बीजगणित, पशुपालन, स्वास्थ्य शिक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, रसायनशास्त्र, ललित कलाएँ, तर्कशास्त्र, प्राणिशास्त्र, भू-गर्भशास्त्र, अंकशास्त्र, शल्य विद्या, ज्योतिष विद्या, धनुर्विद्या, सर्वविद्या आदि।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न 1

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