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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


जैसा कि मैंने अभी कहा, हमारे और सगीर मियां के दरवाजे अगल-बगल हैं। पास-पास। उस दिन जैसे ही मैंने टैक्सी से सामान उतारा, और सीढ़ियां चढ़ने लगा, मुझे एहसास हुआ, सगीर मियां के दरवाजे से लगे गमले के पीछे सफेद शीशे की धुंधली दीवार से एक महिला जैसी आकृति झांक रही है।

कमरे में अभी सामान रख ही रहे थे कि बाहर से 'कॉल-बेल' बजती है। "अदित भाई, क्या अब्बाजान आ गए?"

“जी हां, भाईजान ! बस पहुंच ही रहे हैं," अदित सामान रखते-रखते उत्तर देता है, “तशरीफ लाइए न भीतर।"

"अभी नहीं, शाम को फुरसत में बैठेंगे भाईजान! उनसे हमारा आदाब कहना न भूलिएगा..."

सगीर मियां शायद कहीं जाने की जल्दी में हैं। खट-खट सीढ़ियां उतर जाते हैं।

शाम को हम चाय पी रहे होते हैं कि दरवाजे पर फिर घंटी बजती है।

"आइए... आइए... बाबूजी, ये सगीर मियां हैं हमारे पड़ोसी..."

सगीर मियां के हाथ में फलों से भरा लिफ़ाफ़ा है, अरे, बेगम भी हैं। साथ !

“तशरीफ रखिए न...!"

वे दोनों झुककर आदाब कहते हैं।

चचाजान, हिंदुस्तान में भी हम आपके पड़ोसी हैं, और यहां भी। वहां आप हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी भाई अपना पड़ोसी का फर्ज निभा रहे हैं, और यहां हम अपना।" वह ठहाका लगाकर हंसते है।

बड़ा मनमौजी स्वभाव है, खुला मन।

“नार्वेजियनों की इस सारी कॉलोनी में सिर्फ दो ही घर हैं, हम काले लोगों के। वह भी देखिए, कैसा इत्तेफाक है कि दोनों अगल-बगल में हैं, पड़ोसी।”

“सगीर भाई रोज़ पूछते रहते थे कि आप कब तशरीफ ला रहे हैं..." अदित सहसा बोल पड़ता है।

"हम सोच रहे थे चचाजान, आप आएंगे तो... हम आपसे कम-से-कम एक सवाल जरूर पूछेगे..."

मैं उनकी ओर देखता हूं, “दो पूछिए जनाब ! हम हाज़िर हैं।”

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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