कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
सभी सैलानी उसमें सवार हुए। बस का कंडक्टर अब 'गाइड' की भूमिका निभा रहा था।
आसमान की ओर तने ‘रोप-वे' के सहारे हम बर्फ से ढके पहाड़ के ऊपर पहुंचे तो वहां एक और ही निराला संसार था।
"इसे 'लैप-लैंड' कहते हैं। यहां के मूल निवासी लैप' या 'सामी कहलाते हैं। कुछ और आगे चलने पर आपको कुत्तों द्वारा खींची जाने वाली स्लेज गाड़ियां दीखेंगी। कहीं रेनडियर भी जुते मिलेंगे। बर्फ से ढके इनके घर...।”
बर्फ पर वहां कुछ मकान-से बने थे। लैप लोगों की बस्ती। जिनसे धुआं निकल रहा था। पास ही रेनडियरों के बाड़े थे। रीछ जैसे डरावने कुत्ते भौंकते हुए, रस्सी तुड़ाने को आतुर !
उनके रंग-बिरंगे भड़कीले कपड़े दूर से ही उनके अलग अस्तित्व का अहसास जगा रहे थे। उन बियाबान हिमखंडों के बीच धीरे-धीरे उत्सव का जैसा वातावरण बन रहा था। राया कछ गा रही थी। बड़े अनुरोध पर उसने गीत के साथ-साथ जार्जियन नृत्य भी प्रस्तुत किया तो दर्शक झूम उठे। तुमसे आग्रह किया तो तुम तैयार नहीं हुईं। पता नहीं क्यों भीतर से इतनी उदास थीं !
"ये साथी, यह वातावरण जिंदगी में फिर कभी जीने को यानी देखने को नहीं मिलेगा। इस क्षण को तुम अविस्मरणीय बना सकती हो। एक इजिप्शिन गीत, जैसा उस दिन सुनाया था, सुना दो न !'
मेरा आग्रह तुम टाल नहीं सकीं।
तुम्हारे मधुर गीत की आवाज़ से आस-पास अपने घरों में बैठे। कुछ लैप भी आ गए।
सर्दी इतनी बढ़ गई थी कि अब अधिक देर तक यहां ठहर पाना संभव नहीं था।
‘हादे' कहते हुए उन्होंने हाथ हिलाए, तो पीछे मुड़कर देखते हुए हमारे ठिठुरते, नीले पड़ते हाथ भी एक साथ हिलने लगे।
हम फिर ट्राम्सो के बंदरगाह पर, अपना-अपना सामान लिए खड़े थे। फिनमार्क से आने वाला जलयान लगभग एक घंटा विलंब से आ रहा था।
प्रश्न यह था कि एक घंटा 'माइनस पंद्रह' के ठंडे वातावरण में कैसे बीतेगा? बंदरगाह में ऐसी कोई व्यवस्था न देखकर सबको आश्चर्य हुआ।
पास ही चारों और से शीशे से घिरा टेलीफोन बूथ था। हम वहां चले गए। केवल एक ही व्यक्ति के खड़े होने की जगह थी। मैंने कहा, “तुम यहीं कुछ क्षण रुको, मैं अभी आता हूं।"
कुछ क्षण बाद लौटा तो देखा-तुम्हारी पलकें भीगी हैं।
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- कथा से कथा-यात्रा तक
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- इस यात्रा में
- एक बार फिर
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- अगला यथार्थ
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- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
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