लोगों की राय

यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

पूर्वी आकाश में रात हो गयी थी और तारे झिलमिलाने लगे थे, पर पश्चिम की ओर अरब सागर के क्षितिज में अभी साँझ शेष थी। परन्तु साँझ के वे बादल जो कुछ देर पहले सुर्ख और ताँबई थे, और जिनके कारण सूर्यास्त सुन्दर लग रहा था, अब स्याही में घुलते जा रहे थे। समय साँझ के सौन्दर्य से आगे बढ आया था-रात के एक नये सौन्दर्य को जन्म देने क लिए।

स्टीमर बहुत डोल रहा था। डेक पर एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कई-कई तरह नृत्य-मुद्राएँ बनाते हुए चलना पड़ता था। बहुत मे लोग गोआ से अपने साथ छिपाकर शराब की बोतलें ले आये थे और उन्हें स्टीमर पर ही पी जाने की कोशिश में थे क्योंकि आगे भारतीय कस्टम्ज़ से फिर उन्हें छिपाने की समस्या थी। दो आदमी जो पी-पीकर धुत्त हो चुके थे, एक-दूसरे से और पीने का अनुरोध कर रहे थे। दोनों के दिमाग़ में यह बात समायी थी कि मुझे तो शराब चढ़ गया है, पर दूसरे को नहीं चढ़ी-इसलिए दूसरे को अभी और पीनी चाहिए। दोनों दलीले दे-देकर एक-दूसरे को यह समझाने की चेष्टा कर रहे थे। एक को अपने कान जलते महसूस हो रहे थे, दूसरे को अपनी आँखें सुर्ख़ लग रही थीं। अन्त में दोनों ही अपने तर्क में सफल हुए क्योंकि दोनों ने और शराब ढाल ली। पास ही कुछ स्त्री-पुरुषों ने पीकर ताल देते हुए एक कोंकणी गीत गाना शुरू कर दिया था। ऐसे ही तरह-तरह के गीत स्टीमर के अलग-अलग हिस्सों में गाये जा रहे थे। मैंने कोशिश की कि कुछ देर सो रहूँ पर एक तो वे आवाज़ें और दूसरे स्टीमर के डोलने का एहसास-मुझे ज़रा नींद नहीं आयी। कुछ देर लेटे रहने के बाद उठकर मैं फिर उसी तख्ते पर जा बैठा। समुद्र में ज्वार आ रहा था। बड़ी-बड़ी लहरें किसी के उसाँस भरते वक्ष की तरह उठ-गिर रही थीं। जहाज़ के डोलने के साथ समुद्र की सतह के बहुत पास पहुँच जाना, फिर ऊपर उठना, और फिर नीचे जाना बहुत अच्छा लग रहा था। बटकल में सामान उतारने के लिए जहाज़ तट से पाँच-छह मील इधर रुका और कुछ पाल वाले बेड़े सामान लेने के लिए वहीं आ गये। उनमें से एक का सन्तुलन ठीक नहीं था। हर ऊँची उठती लहर के साथ ऊपर उठकर जब वह नीचे आता, तो लगता कि बस अभी उलट जाएगा। सामान भरा जा चुका, तो वह उसी तरह एक तरफ़ को लचकता हुआ किनारे की तरफ़ बढ़ने लगा। मुझे हर क्षण लग रहा था कि वह अब उलटा कि अब उलटा। पर मल्लाहों को इसकी चिन्ता नहीं थी। मैं तो उनके ख़तरे से ख़ासी उत्तेजना महसूस कर रहा था और वे थे कि आराम से चप्पू चलाये जा रहे थे। जब बेड़ा जहाज़ के पीछे से दूसरी तरफ़ पहुँच गया, तो मैं भी उसे देखने के लिए उधर चला गया। पर हुआ कुछ भी नहीं-बेड़ा लहरों पर उठता-गिरता और उसी तरह एक तरफ़ को झुककर पानी को चूमता हुआ किनारे की तरफ़ बढ़ता चला गया।

प्राणि-विज्ञान का विद्यार्थी शाम से ही सोने-चाँदी की मछलियाँ मुझे दिखाने के लिए परेशान था। स्टीमर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर और अलग-अलग कोण से झाँककर वह कहीं पर उनकी झलक पा लेने का प्रयत्न कर रहा था। पर अन्त तक उसे सफलता नहीं मिली थी। लेकिन स्टीमर बटकल से चला, तो मेरे सामने सहसा चमकीले जीवों से भरी एक नदी-सी चली आयी। चाँद स्टीमर के इस तरफ़ आ गया था और जहाँ उसकी किरणें सीधी पड़ रही थीं, वहाँ असंख्य सुनहरी मछलियाँ काँपती दिखाई दे रही थीं। पर फ़ासफ़ोरस से चमकने वाली मछलियाँ वे नहीं थीं-लहरों पर चाँदनी के स्पर्श से बनती मछलियाँ थीं। आगे जहाँ स्टीमर की नोंक लहरों को काट रही थी, वहाँ फेन की एक नदी बन रही थी जो हलके आवर्तों में बदलकर पानी के मरुस्थल में विलीन होती जा रही थी।

रात के दो बज चुके थे। मैं उसी तरह तख्ते पर बैठा था। ज्यादातर लोग सो चुके थे। कुछ लड़के सोनेवालों के पास जा-जाकर ऊधम मचाते हुए नाविकों के गीत गा रहे थे।

मैं भी उठा और जाकर बिस्तर पर लेट गया। लड़कों के शोर के बावज़ूद वातावरण में एक निस्तब्धता प्रतीत हो रही थी। स्टीमर के इंजन का शोर भी जैसे शोर नहीं था। समुद्र का गर्जन भी उस निस्तब्धता का ही एक भाग था। सब-कुछ ख़ामोश था। स्वयं रात भी जैसे सो रही थी पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी। मैं खुली आँखों से सिर पर झूलते आकाश को देख रहा था और सोच रहा था कि ऐसे में अपलक ऊपर को देखते जाना भी क्या एक तरह की नींद नहीं है?

 

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book