यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक आखिरी चट्टान तकमोहन राकेश
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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त
मैं ग़ौर से रस्सी को देखने लगा। प्राणि-विज्ञान का विद्यार्थी बोला, "यह समुद्र एक बहुत बड़ा जादूगर है। इसमें न जाने कितनी तरह के जादू छिपे हैं। रात को चाँद निकलने पर मैं आपको सोने-चाँदी और हीरे-मोतियों की मछलियाँ दिखाऊँगा।"
"सचमुच सोने-चाँदी की?"
वह हँसा और बोला, "असली सोने-चाँदी की नहीं,-केवल फ़ासफ़ोरस से चमकने वाली मछलियाँ।"
और पानी के जीवों के सम्बन्ध में और भी कितना कुछ वह मुझे बतलाता रहा। पर मेरा ध्यान थोड़ी देर में उसकी बातों से हटकर डेक की तरफ़ चला गया, क्योंकि वहाँ एक नवयुवक और एक नवयुवती के बीच हारमोनिका बजाने की प्रतियोगिता छिड़ गयी थी।
'साबरमती' का वह थर्ड क्लास का डेक किसी बड़े-से तबेले से कम नहीं था। सारे डेक पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक बिस्तर-ही-बिस्तर बिछे थे जो सब एक-दूसरे से सटे हुए थे। कहीं दस व्यक्तियों के परिवार को केवल चार बिस्तर बिछाने की जगह मिली थी और वे उन चार बिस्तरों में ही घिचपिच होकर सोने जा रहे थे। जहाँ मैंने अपना बिस्तर बिछा रखा था, वहाँ असुविधा और ज्यादा थी क्योंकि स्टीमर का माल उसी हिस्से से चढ़ाया और उतारा जाता था। मेरे बिस्तर के एक तरफ़ एक लम्बे-तगड़े पादरी साहब का बिस्तर था और दूसरी तरफ़ पाँच नमाज़ पढ़नेवाले एक मुसलमान सौदागर का। इस तरह मुझे दो धर्मों के बीच सैंडविच होकर रात बितानी थी। उस समय ज्यादातर लोग अपने-अपने बिस्तरों पर ही बैठे थे। मेरी तरह कुछ थोड़े-से ही लोग थे जो एक तरफ़ तख्ते पर बैठे दोनों दुनियाओं का मज़ा ले रहे थे।
हारमोनिका बजाने की प्रतियोगिता थोड़ी देर पहले शुरू हुई थी। नवयुवक एक तरफ़ के बिस्तरों का प्रतिनिधित्व कर रहा था, नवयुवती दूसरी तरफ़ के बिस्तरों का। पहले नवयवती ने हारमोनिका पर एक फ़िल्मी धुन बजायी थी। उसके समाप्त होते-होते इधर से नवयुवक अपने हारमोनिका पर वही धुन बजाने लगा। उसके बजा चुकने पर इधर से उसे ज़ोर से दाद दी गयी। इस पर नवयुवती दूसरी धुन बजाने लगी। इस बार उसे उधर से जो दाद मिली, वह और भी जोरदार थी। इससे यह प्रतियोगिता छिड़ गयी जो हारमोनिका की कम और दाद देने की प्रतियोगिता अधिक थी। जहाज़ के दूसरे हिस्सों से भी लोग आकर वहाँ जमा होने लगे थे। नवयवुक का पक्ष धीरे-धीरे बलवान् होता जा रहा था। अन्त में एक धुन बजाने पर उसे बहुत ही ज़ोर-शोर से दाद दी गयी, तो उसने खड़े होकर नवयुवती की तरफ़ देखते हुए अपने हैट को छूकर सलाम किया। इस पर उसे और भी ज़ोर से दाद दी गयी। नवयुवती ने उसके बाद और धुन नहीं बजायी।
स्टीमर कुछ देर के लिए कारवाड़ रुककर आगे बढ़ा, तो साँझ हो चुकी थी। पानी का रंग सुरमई हो गया था। दूर एक लाइट-हाउस की बत्ती दो बार जल्दी-जल्दी जलती फिर बुझ जाती। फिर दो बार जलती, फिर बुझ जाती। अँधेरा घिर रहा था। लाइट-हाउस से पीछे का आकाश रुपहला काला नज़र आने लगा था। आकाश के उस हिस्से के आगे लाइट-हाउस की बत्ती का जलना और बुझ जाना ऐसे लग रहा था जैसे कौंधती बिजली को एक मीनार में बन्द कर दिया गया हो और वह उस क़ैद से छूटने के लिए छटपटा रही हो-उसी तरह जैसे मलमल के आँचल में पकड़े जुगनू छटपटाते हैं। जिस द्वीप में लाइट-हाउस बना था, वह और उसके आस-पास के द्वीप स्याह पड़कर ऐसे लग रहे थे जैसे बाढ़ में डूबे बड़े-बड़े दुर्ग, या पानी के अन्दर से उठे जलचरों के देश।
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- प्रकाशकीय
- समर्पण
- वांडर लास्ट
- दिशाहीन दिशा
- अब्दुल जब्बार पठान
- नया आरम्भ
- रंग-ओ-बू
- पीछे की डोरियाँ
- मनुष्य की एक जाति
- लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
- चलता जीवन
- वास्को से पंजिम तक
- सौ साल का गुलाम
- मूर्तियों का व्यापारी
- आगे की पंक्तियाँ
- बदलते रंगों में
- हुसैनी
- समुद्र-तट का होटल
- पंजाबी भाई
- मलबार
- बिखरे केन्द्र
- कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
- बस-यात्रा की साँझ
- सुरक्षित कोना
- भास्कर कुरुप
- यूँ ही भटकते हुए
- पानी के मोड़
- कोवलम्
- आख़िरी चट्टान