यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक आखिरी चट्टान तकमोहन राकेश
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"विचारों की गहराई और यात्रा के अनुभवों का संगम : मोहन राकेश का आख़िरी चट्टान तक यात्रा-वृत्तान्त"
"ये शादीशुदा नहीं है क्या?" मैंने नवयुवक से पूछा।
नवयुवक फिर हँसा। बोला, "होते, तो ऐसी बात क्यों कहते?"
फिर वह गम्भीर होकर अधेड़ मुसलमान से आगे बहस करने लगा। शायद उसे समझाने लगा कि क्यों औरत की गिनती उन चीज़ों में नहीं की जा सकती। मगर अधेड़ मुसलमान आख़िर तक सिर हिलाता रहा। उसकी एक और बात ने फिर लोगों को हँसा दिया। नवयुवक ने मेरे लिए अनुवाद किया, "कहते हैं कि औरत ही नहीं मिलेगी, तो आदमी रोटी, कपड़े और मकान का क्या करेगा? बेकार हैं सब!"
"यह जगह स्टेशन का वेटिंग हॉल नहीं, एक अच्छा-खासा क्लब जान पड़ती है," मैंने नवयुवक से कहा।
"आपकी बात ग़लत नहीं है," वह बोला। "हम लोग रोज़ दोपहर को यहाँ चले आते हैं। छोटी-सी शान्त जगह है, दोपहर काटने के लिए बहुत अच्छी है। चाय, कॉफी और खाने-पीने की दूसरी चीज़ें भी यहाँ मिल जाती हैं। एक से साढ़े चार के बीच कोई गाड़ी नहीं आती, इसलिए आदमी चाहे, तो आराम से सो भी सकता है। हवादार जगह होने से गर्मियों के लिए बहुत ही अच्छी है। हम जितने लोग यहाँ आते हैं, सबके सब बेकार हैं। बेकारी का वक़्त घर बैठकर उतनी आसानी से नहीं कटता, जितनी आसानी से यहाँ कट जाता है।"
उसके बाद मैं दो घंटे और वहाँ रहा-गाड़ी के आने तक। गाड़ी में बैठा, तो उस नवयुवक के अलावा और भी दो-तीन लोगों ने प्लेटफॉर्म से मुझे विदा दी। उतनी देर में मुझे भी उस बेकार-समाज की अस्थायी सदस्यता मिल गयी थी। गाड़ी आगे निकल आयी, तो भी काफ़ी देर मन से मैं तेल्लीचेरी में ही बना रहा- मन्दिर के अहाते में, उस पगडंडी के पास जहाँ ज़मीन की खुदाई हो रही थी, मुस्लिम होटल की मैली जालियों के अन्दर और थर्ड क्लास के से वेटिंग हॉल में। लग रहा था कि जगह-जगह बिखरे ऐसे कितने छोटे-छोटे केन्द्र हैं जो परोक्ष रूप से हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं...परन्तु उन केन्द्रों पर रहनेवाले लोग स्वयं शायद फिर भी अनिर्धारित ही रह जाते हैं...कभी-कभी जीवन-भर।
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- प्रकाशकीय
- समर्पण
- वांडर लास्ट
- दिशाहीन दिशा
- अब्दुल जब्बार पठान
- नया आरम्भ
- रंग-ओ-बू
- पीछे की डोरियाँ
- मनुष्य की एक जाति
- लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
- चलता जीवन
- वास्को से पंजिम तक
- सौ साल का गुलाम
- मूर्तियों का व्यापारी
- आगे की पंक्तियाँ
- बदलते रंगों में
- हुसैनी
- समुद्र-तट का होटल
- पंजाबी भाई
- मलबार
- बिखरे केन्द्र
- कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
- बस-यात्रा की साँझ
- सुरक्षित कोना
- भास्कर कुरुप
- यूँ ही भटकते हुए
- पानी के मोड़
- कोवलम्
- आख़िरी चट्टान