To the Last Rock Travelogue"

" />
लोगों की राय

यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

"विचारों की गहराई और यात्रा के अनुभवों का संगम : मोहन राकेश का आख़िरी चट्टान तक यात्रा-वृत्तान्त"

बस यात्रा की साँझ


चुन्देल से कालीकट के रास्ते में...।

बस एक छोटी-सी बस्ती के बाज़ार में रुकी थी। एक तरफ़ तीन-चार दुकानें थीं, दूसरी तरफ़ पत्थरों की मुँडेर। नीचे घाटी थी। सभी लोग बस से उतरकर वहाँ चाय-कॉफ़ी पीने लगे। सिर्फ़ एक इकन्नी में कॉफ़ी का बड़ा-सा गिलास पीकर मैं दुकान से सड़क पर आया, तो देखा कि दिन का रंग सहसा बदल गया है। लग रहा था-जैसे आँधी आनेवाली हो। पहाड़ पर आँधी नहीं आती, इसलिए आश्चर्य भी हुआ। पर असल में आँधी-वाँधी कुछ नहीं थी-अस्त होते सूर्य के आगे बादल का एक टुकड़ा आ गया था।

च्वि-च्वीयु!...च्वि-च्वीयु-एक पक्षी लगातार बोल रहा था। मुझे लगा जैसे बार-बार वह मुझसे कुछ कह रहा हो। मन हुआ कि उसी की भाषा में मैं भी उसे उत्तर दूँ। कहूँ, "च्वि-व्वियु दोस्त, च्वि-व्वियु! कहो, क्या हालचाल हैं तुम्हारे?"

मैं टहलता हुआ मुँडेर के पास चला गया और नीचे घाटी की तरफ़ देखने लगा। एक युवती तीन-चार गौओं को हाँकती ऊपर सड़क की तरफ़ आ रही थी। जिस वेश में वह थी, उसमें मैंने कालीकट से आते हुए कई स्त्रियों को देखा था-दूधिया सफ़ेद तहमद, उतनी ही सफ़ेद चोली और वैसा ही सफ़ेद पटका। पटका बाँधने का उनका अपना ख़ास ढंग है। गज़-भर कपड़े का टुकड़ा लेकर एक तरफ़ के सिरों को वे सिर के पीछे गाँठ दे लेती हैं और दूसरी तरफ़ के सिरों को खुला छोड़ देती हैं। कन्नड़ नवयुवतियों के इस वेश को देखकर चित्रों में देखी मिस्र की रमणियों की याद हो आती है। परन्तु इस वेश की सादगी एक अतिरिक्त विशेषता है जो उस तुलना में नहीं रखी जा सकती।

युवती गौओं के साथ सड़क पर पहुँच गयी और सीधी सधी हुई चाल से आगे चलती गयी। मेरा ध्यान तब आसपास मँडराती तितलियों में उलझ गया। सब एक ही तरह की तितलियाँ थीं-हरा शरीर और उस पर स्याह रंग के उलझे हुए दायरे। उनसे थोड़ी दूर कुछ और तितलियाँ थीं-गहरा मटियाला रंग और सफ़ेद बार्डर के पंख। वे सब ज़मीन से दो-एक फ़ुट की ऊँचाई पर ही उड़ रही थीं-जैसे कि उससे ऊँचा उड़ पाना उनके पंखों के लिए भारी पड़ता हो।

ड़ाइवर ने हॉर्न दे दिया। मैं ड्राइवर के साथ की अपनी सीट पर जा बैठा। सूर्यास्त के बाद आकाश का रंग इस तरह बदल रहा था कि एक-एक क्षण में होनेवाले परिवर्तन को लक्ष्य किया जा सकता था। वह पक्षी उसी तरह बोल रहा था-च्वि-च्वीयु! च्वि-च्वीयु बस चल दी। मैं खिड़की से झाँककर देखने लगा।

पक्षी की आवाज़ पीछे रहती जा रही थी। आगे घनी हरियाली में वृक्षों के नये सुर्ख़ पत्ते ऐसे लग रहे थे जैसे जगह-जगह सुर्ख़ फूलों के गुच्छे लटक रहे हों। एक मोड़ के बाद हम पहाड़ी के उस हिस्से में आ गये जहाँ बस डेढ़-दो हज़ार फ़ुट की सीधी ऊँचाई से चक्कर काटती हुई नीचे उतरती है। वहाँ से ज़मीन छोटी-छोटी नदियों, टीलों और हरियाली के द्वीपों का समूह नज़र आती है। ज्यों-ज्यों बस नीचे उतर रही थी, उस दृश्य के फैलाव पर अँधेरा घिरता जा रहा था। लग रहा था जैसे उजाले की दुनिया से हम लोग नीचे अँधेरे की दुनिया में उतर रहे हों।

जब तक हम नीचे पहुँचे, अँधेरा पूरी तरह घिर आया था। पर न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि वह पक्षी अपनी झाड़ी में बैठा अब भी लगातार उसी तरह बोल रहा होगा-च्वि-च्वीयु! च्वि-च्वीयु! मेरा मन अपने अन्दर की किसी अनुभूति से उदास होने लगा। वह अनुभूति अपने एक आत्मीय को किसी अनजान बस्ती में रात को अकेला छोड़ आने-जैसी थी-बावजूद इसके कि वह लगातार मुझे पीछे से पुकारता रहा था-च्वि-च्वीयु! च्वि-च्वीयु!

 

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai