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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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"विचारों की गहराई और यात्रा के अनुभवों का संगम : मोहन राकेश का आख़िरी चट्टान तक यात्रा-वृत्तान्त"

जो लड़का बस्ती गया था, वह दूध लेकर लौट आया। उसके पीछे-पीछे दो व्यक्ति भी आये-एक लकड़ी टेकता बुड्ढा और एक युवा स्त्री। स्त्री जरा पीछे रुकी रही, बुड्ढा हम लोगों के पास आ गया। उसकी सफेद दाढ़ी काफी ऊँची-नीची कटी हुई थी। पास आकर वह कुछ पल मुझे ध्यान से देखता रहा, फिर अपनी भाषा में कुछ कहने लगा। मेरे साथी ने मेरे लिए अनुवाद कर दिया। बुड्ढे का लड़का कुछ दिन पहले घर छोड़कर चला गया था। किसी ने उसे बताया था कि वह भागकर दिल्ली गया है। आज यह जानकर कि मैं दिल्ली की तरफ़ से आया हूँ वह अपनी बहू को साथ लेकर मीलभर से यह पता करने आया था कि दिल्ली में रहते कभी मेरी नजर भूमिनाथन् नाम के किसी लड़के पर तो नहीं पड़ी-लड़के की उम्र लगभग मेरे जितनी है, रंग साँवला है और बात करते हुए वह थोड़ा हकलाता है।

मैंने उसे बताया कि एक तो मैं दिल्ली का रहनेवाला नहीं हूँ, दूसरे दिल्ली-जैसे शहर में किसी को इस नरह पहचान पाना सम्भव नहीं है। बुड़ढा निराश होकर पल-भर कुछ सोचता खड़ा रहा। फिर वापस चल दिया। अपनी बहू के पास पहुँचकर रुक गया। युवा स्त्री कुछ देर धीम स्वर में उसे कुछ समझाती रही। उसकी बात सुनकर वह फिर हम लोगों के पास चला आया। आकर मुझे लड़के के क़द काठ और चेहरे-मोहरे के बारे मे विस्तार से बताने लगा। पर मैं इस पर भी उसे कोई अश्वासन नहीं दे सका, तो वह अविश्वास की एक-नजर मुझ पर डालकर फिर वापस चला गया। इस बार उसकी बहू ने भी उससे और बात नहीं की-सिर झुकाये चुपचाप उसके पीछे-पीछे चली गयी।

उनके चले जाने के बाद मुझे बताया गया कि भूमिनाथन् को घर छोडकर गये साल से ऊपर हो चुका है। उन लोगों के पास पहले अपनी जमीन थी जो लगान न दे सकने के कारण उनके हाथों से चली गयी थी। घर में बूढ़े बाप और पत्नी के अलावा भूमिनाथन् के दो बच्चे भी थे। मजदूरी करके वह पाँच आदमियों का पेट नहीं भर पाता था। एक दिन गुस्से मे आकर उसने बाप को पीट दिया। फिर इस बात का मन को इतना रंज लगा कि उसी रात घर छोड़कर चला गया। कछ लोगों का खयाल था कि उसने वहाँ से जाकर आत्महत्या कर ली थी। बुड्ढा रात-दिन उसकी याद में रोता रहता था, इसलिए लोगों ने उससे कह दिया था कि भूमिनाथन् मरा नही है, दिल्ली मैं है-एक आदमी ने अपनी आँखो से उसे वहाँ देखा है।

"अब इसकी बहू मजदूरी करके घर का खर्च चलाती है। तय इसी बात पर बाप-बेटे मेँ लड़ाई हुई थी। लड़का चाहता था कि उसकी बीवी भी साथ मजदूरी करे, पर बाप इसके लिए राजी नहीं था। उसका हठ था कि उनके घर की कोई लड़की औरत मजदूरी करने नहीं जा सकती। अब भी वही घर है, वही वह खुद है जो बहू की कमाई खाकर चुपचाप पड़ा रहता है। आदमी का पेट है-कब तक भूखा रह सकता है?"

थोड़ी देर में बुड्ढा फिर वापस आता दिखाई दिया। उसकी बहू अब उसके साथ नहीं थी। इस बार आकर वह बोला कि मैं लौटकर दिल्ली जाऊँ तो खयाल जरूर रखूँ। हो सकता है कभी उस पर मेरी नजर पड़ जाए। उस हालत में मैं उसे चिट्ठी ड़ाल दृँ। और वह नये सिरे से मुझे लड़के नयन नआ और रगरूप आदि के विषय में बताने लगा।

मैंने इस बार कह दिया कि मै दिल्ली जाऊँगा, तो जरूर खयाल रखूँगा। बुड्ढे की आँखें भर आयीं। वह चलने के लिए तैयार होकर आँखे पोंछता हुआ बोला कि सुबह मैं वहाँ से जल्दी न चला जाऊँ, उसका इन्तजार कर लूँ-वह आकर मुझे अपना पता लिखा एक पोस्ट-कार्ड दे जाएगा।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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