कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
निहत्थे
दूर से देखने पर वह क्यू इस तरह दिखाई दे रहा था जैसे सिर्फ कनस्तरों और
थैलों की कतार हो। दुकानें उस कतार से काफी दूर थीं और कतार के बायीं ओर एक
सूखा हुआ नाला था। लू और गर्द और धूप की वजह से लोगों की आंखें पिचक गई थीं
और टांगों से बहने वाला पसीना जूतों के अंदर इकट्ठा हो रहा था।
दुकानें सारी की सारी ही बंद थीं और मकान उस गर्दभरी दोपहर में इस तरह दिख
रहे थे जैसे किसी अस्पताल में शीशे के मर्तबानों में बंद बदरंग और सूजे हुए
जानवर हों।
-गाड़ी अभी तक नहीं आई! सुखबीर के सामने वाले बूढ़े ने मैला तौलिया उड़ने से
बचाते हुए कहा। सुखबीर बूढ़े के ठीक पीछे खड़ा था। उसके पीछे वाले दो-तीन लोग
बीच-बीच में नाहक धक्कामुक्की करने लगते थे।
पीछे की तरफ कूल्हे धकेलकर सुखबीर ने थोड़ी दबी जबान से कहा-धक्का क्यों देते
हो जी?
कतार की देखरेख के लिए खड़ा सिपाही सुखबीर को फिर घूरने लगा, सुखबीर को अजीब
भय हुआ। उसे लगा कि वह सिपाही उसे लगातार घूरता रहा है और घूरे जाने पर वह
किसी केंचुए की तरह सिकुड़ने लगता है।
-लगे रहो, साला, लगे रहो! हात्तेरी की! एक आदमी ने क्यू के बीच से ऊब कर कहा।
सिपाही ने उसकी ओर देखा तो वह इस तरह भोंदू बन गया गोया वह बात गंदी हवा की
तरह अनायास निकल गई हो।
आज छठा रोज था, फिर भी लोग निराश होकर हटना नहीं चाहते थे। उनका खयाल था कि
जैसे ही वे हटेंगे वैसे ही गाड़ी आ जाएगी। कुछ लोग तो सुबह तीन-चार बजे से ही
लाइन में खड़े हो जाते थे। बीच में उनके बच्चे कभी-कभी उनकी जगह आ खड़े होते
थे।
वैसे लोगों का खयाल था कि हालत ऐसी बुरी भी नहीं थी। एक बार पर्चियां कट
जातीं तो आटा आराम से मिल जाता लेकिन पर्चियां तभी तो कटतीं जब गाड़ी आती।
समूची पंक्ति में जैसे एक छटपटाहट आ गई। धक्कामुक्की फिर शुरू हो गई। पंक्ति
के सिरे से किसी ने बताया कि गाड़ी आ रही है। सुखबीर को एहसास था कि वहां
खड़ा सिपाही उसे लगातार घूर रहा था इसलिए उसने उस धक्कामुक्की में शामिल होने
से अपने आपको भरसक रोका, फिर भी वह लड़खड़ा गया। सिपाही उसे दो कदम अपनी ओर
बढ़ता लगा। उसने अपनी निगाहें फेर लीं। वह अपने आप पर थोड़ा शर्मिंदा भी
हुआ-आखिर वह नागरिक है। नागरिक के कुछ अधिकार भी होते हैं। जरूरत पड़ी तो वह
अपने अधिकारों की बात अंगरेजी में भी कह सकता है।
कुछ धक्के की वजह से और कुछ सिपाही की नजरों से सिकुड़ गए साहस की वजह से,
उसके दोनों कूल्हे क्यू से बाहर आ गए। उसने तुरंत अपनी बांह वहीं घुसा दी।
बांह की वजह से उसकी जगह और तंग हो गई। लिहाजा उसने बांह छुड़ा कर नए सिरे से
क्यू में घुसने के लिए अपना कंघा दो आदमियों के बीच घुसाया।
उसे अपनी गर्दन पर खुरदरी-सी कोई चीज छूती हुई महसूस हुई। वह समझा, कोई सूखा
पत्ता हवा से उड़कर वहां घुस गया है। उसने हथेली से उसे झाड़ना चाहा लेकिन
तभी एक डर उसके सिर से होता हुआ पैरों तक उतर गया। वह दरअसल सिपाही का डंडा
था।
-बाहर निकल! सिपाही ने उसे घुड़का।
-जी? उसके सोचे हुए सारे संवाद जाने कहां चले गए और वह एकाएक सकते में आ गया।
-बीच में घुसता है बहन...पीछे चल लाइन में! सिपाही ने अपना डंडा उठाया। उसने
घबरा कर क्यू के पीछे की ओर देखा। पीछे कोई पांच सौ लोगों की भीड़ होगी। आज
वह सबेरे पांच बजे ही पहुंच गया था इसलिए उससे आगे मुश्किल से पचास लोग ही
थे। अगर आज आटा नहीं मिला तो बहुत मुश्किल हो जाएगी क्योंकि लोग कह रहे थे कि
कल से कर्फ्यू लग जाएगा।
-अबे हट यहां से! हटता है या लगाऊं? सिपाही ने धमकाया। आगे से किसी ने
कहा-कानून कायदा तो कोई मानता नहीं है।
-कौन कानून छांट रहा है उधर? सिपाही ने ललकारा लेकिन बोला कोई नहीं। सिपाही
का ध्यान बंटा देखकर सुखबीर अपने आगे-पीछे के आदमियों की ओर कातर निगाहों से
देखने लगा। उन लोगों ने उसकी ओर से आंखें हटाकर इधर-उधर देखना शुरू कर दिया।
उसने सिपाही द्वारा जबर्दस्ती वहां से हटाए जाने से पहले भुनभुनाकर पास वाले
आदमी से कहा-तुम्हारे साथ ही खड़ा था न मैं?
वह आदमी कुछ नहीं बोला। इस बीच एक गाड़ी तेजी से आई और क्यू से थोड़ी दूर
जाकर खड़ी हो गई। वह पुलिस की गाड़ी थी और उसमें वायरलेस लगा हुआ था। सिपाही
का ध्यान बंट गया। दरअसल आटे के ट्रक के बजाय कोई जुलूस आ रहा था। जलस के
नारे सुनाई पड रहे थे।
जुलूस आ गया। बूढ़े आदमी ने भुनभुनाकर कहा, जान की तो जैसे किसी को परवाह ही
नहीं है। अभी कहीं गोली चल जाए तो बस!
जुलूस के आगे पुलिस की जीप के साथ-साथ पैदल सिपाहियों की काफी बड़ी टुकड़ी चल
रही थी। क्यू की देखरेख के लिए खड़ा सिपाही सहसा बेहद फुर्तीला हो उठा था।
जीप पर बैठे अफसर ने उसे हाथ के इशारे से कहा कि वह क्यू में खड़े लोगों को
थोड़ा-सा पीछे खिसकने को कहे। सिपाही डंडा लेकर लोगों पर पिल पड़ा-भागो, भागो
इधर से!
डंडा पड़ते ही क्यू छितरा गया और लोग भेड़ों की तरह भाग कर नाले के उस पार
कूद गए। सुखबीर भी भागा। लेकिन इस बार उसने सोचा कि औरों की तरह नाले के उस
पार नहीं जाएगा। जुलूस गुजरने के बाद बाकी लोगों से पहले ही वह क्यू में खड़ा
हो जाएगा।
लू और धूप काफी जलन भरी थी और जीप पर बैठे अफसर की आंखें चुंधिया रही थीं।
अगला मोड़ पार करने तक उसे इसी तरह रेंगती जीप में बैठे-बैठे गर्मी को सहना
था क्योंकि मोड़ के बाद राजभवन वाले मार्ग पर जुलूस रोका जाना था। वहां बड़ी
तादाद में पुलिस ने मोर्चाबंदी कर रखी थी।
सुखबीर की जांघों का पसीना रेंगता हुआ पिंडलियों तक आया तो उसे खुजली महसूस
होने लगी। लेकिन पुलिस वालों की मौजूदगी में वह खुजली करके उनका ध्यान नहीं
बंटाना चाहता था। लेकिन पसीना रेंगता हुआ टखने तक आया तो वहां वह और जोर से
चुभने लगा जैसे कोई चींटी काटने लगी हो।
उसने सोचा कि पुलिस वालों का ध्यान बंटने से पहले ही वह फुर्ती से झुक कर
खुजली कर ले और सीधा हो जाए। परेशानी में वह भूल गया था कि टांग उठाकर भी
खुजली की जा सकती थी। लिहाजा वह पलक झपकने के साथ नीचे झुका और दाहिने हाथ से
खुजली करके फुर्ती से सीधा हो गया।
जीप पर चल रहा पुलिस अफसर धूप में आंखें मिचमिचा कर सामने देख रहा था। उसे
दाई ओर एक आदमी के जमीन की ओर झुकने और सीधा होने की झलक मिली। वह चेहरे पर
हाथ पर लगा कर नीचे झुका और चिल्लाया-अरे, पत्थर मारता है हरामी!
-पत्थर? क्यू वाला सिपाही चौंक गया। तब तक जीप के साथ चल रहे सिपाही उसकी ओर
लपके। दो क्षण का भी अवकाश मिलता तो वह भाग खड़ा होता। वह निश्चय ही काफी तेज
भाग सकता था। लेकिन क्यू संभालने के लिए खड़े सिपाही ने लपक कर उसका कालर
पकड़ लिया-मैं तो बहुत देर से देख रहा था, तभी समझ गया था...
-अरे मगर, वह छटपटाया लेकिन तब तक कई पुलिस वालों ने उसे दबोच लिया। एक ने
उसकी गर्दन इतनी जोर से दवा ली थी कि उसे खांसी ही आने लगी थी। पुलिस की एक
जीप जव उसे लेकर रवाना हुई, उस वक्त तक भी उसे यकीन नहीं था कि उसे सचमुच
पकड़ लिया गया है। उसे गाड़ी के अंदर इस तरह धकेला गया था कि उसकी कुहनियां
और माथा रगड़ गया था। उसे लगा कि अगर वह यों ही मुर्गे की तरह पड़ा रहा तो
पुलिस वाले शायद उसे पीटेंगे इसलिए वह उठकर बैठने लगा।
-भागेगा बहन...! एक सिपाही चिल्लाया और उसने जूते सहित अपना पैर उसकी पीठ पर
दे मारा। सुखबीर को लगा जैसे वहां रीढ़ के कई टुकड़े हो गए हों।
सुखबीर के पकड़े जाने की घटना के बाद भारी गड़बड़ी मच गई थी हालांकि वह इससे
बिल्कुल बेखबर था। जुलूस वालों ने समझा कि उन्हीं में से किसी को गिरफ्तार
किया गया है इसलिए वे अचानक उत्तेजित हो गए। जुलूस के दूसरी तरफ के पुलिस
वालों तक खबर पहुंची कि उनका अफसर पथराव से सख्त घायल हुआ है इसलिए उन्होंने
उत्तेजित होकर लाठियां घुमानी शुरू कर दी।
इस बीच एक और हंगामा हो गया। जाने किधर से एक डिब्बे जैसी कोई चीज जीप पर आ
गिरी। गिरते ही फटी और वहां बुरी तरह धुआं फैल गया। धमाके की आवाज जुलूस
वालों ने भी सुनी, पीछे से कोई चिल्लाया-आंसू गैस!
-रोटी कपड़ा दे न सके जो वो सरकार निकम्मी है!-लोगों ने सीना फुलाकर जोशीला
नारा लगाया। लोग आसपास पत्थर खोजने लगे। इसी वक्त धमाके से घबराई भीड़ का
रेला पीछे की ओर आया। जो वालंटियर सीटी लिए हुई जुलूस के साथ-साथ चल रहा था,
वह भगदड़ देखकर बौखला गया और किनारे हट कर जोर-जोर से सीटियां बजाने लगा।
धमाके की पहली सनसनी उतरते ही जीप के पीछे वाले अफसर ने अपनी पिस्तौल से गोली
चला दी। पुलिस के जिन लोगों के पास बंदूकें थीं, वे भीड़ के पास से भागे
क्योंकि धमाके से वे खुद भी डर गए थे। लेकिन पुलिस अफसर द्वारा चिल्ला कर
पिस्तौल दागने पर वे रुके और पलट कर अंधाधुंध गोलियां चलाने लगे।
पिस्तौल की तुलना में इन रायफलों की आवाज बहुत घटिया थी। दरअसल उनसे धमाके की
बजाय फटे बांस जैसी आवाज निकलती थी और दूर तक लुढ़कती चली जाती थी।
जुलूस की भगदड़ से घबरा कर सीटी बजाने वाले वालंटियर ने महसूस किया जैसे उसे
किसी ने जबर्दस्त धक्का दिया हो। वह समझ नहीं पाया कि भीड़ से इतनी दूर होने
पर भी उसे धक्का किसने दिया हो सकता है। लेकिन अगले ही क्षण उसे लगा जैसे
उसकी एक टांग किसी ने उसके नीचे से गायब कर दी और वह असंतुलित होकर गिर गया।
गिरने के साथ ही उसने महसूस किया कि उसकी जांघ चिकनी-चिकनी हो गई है। दरअसल
वह खून से तर हो गई थी। वह समझ नहीं पाया कि उसके साथ यह क्या हुआ। उसने अपने
कूल्हे पर हाथ फेरा तो वहां गर्म गिलगिला गढ़ा-सा महसूस हुआ। इसके बाद वह
चिल्लाया। बहुत ही भयार्त और बेहूदी-सी चीख निकली और वह बेहोश हो गया।
क्यू से खदेड़े गए लोग इतनी तेजी से घटी घटनाओं से चकरा गए। गोली चलते ही वे
लोग पहले तो पीछे हटे, फिर जोर से भागे। अभी वे थोड़ी ही दूर गए होंगे कि उन
पर पुलिस वालों की नजर पड़ गई। पुलिस वाले उधर भी गोलियां चलाने लगे। एक
पुलिस वाला बार-बार गोली चला रहा था, फिर भी उसे लग रह था कि उसका निशाना ठीक
नहीं बैठ रहा। इसलिए वह भागते हए लोगों के पीछे दौड़ लिया।
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