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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


रात कोई आठ बजे मुझे चकित करता हुआ चिरकुट बरामदे में आ खड़ा हुआ।

"तुम?"

"माफ कीजिएगा साहब, मेरी वजह से आपको तकलीफ हुई है।"

"इसीलिए आए हो?"

"मैंने सोचा, मेम साहब क्या कहेंगी! बताइए साहब, मोटर कहां खड़ी है?" चिरकुट ने पूछा।

"मगर तुम तो हड़ताल पर हो!"

"वो तो सही है साहब, हड़ताल अपनी जगह है और इनसानियत अपनी जगह। मैं चुपचाप सेल्फ ठीक कर दूंगा। किसी को कहिएगा नहीं।"

सेल्फ को उसने एक छोटे रिंच के सहारे मुश्किल से कुछ सेकंडों में ठीक कर दिया, फिर बोला, “इधर रोशनी दिखाइए।"

मैंने रोशनी उधर डाली, जिधर उसने कहा था। उसने एक छोटी-सी धुरी जैसी चीज दिखाकर कहा, “देखिए साहब, अब कभी सेल्फ फंस जाए, तो इसे रिंच से सीधी तरफ घुमा दीजिए, बस। और ये रिंच रख लीजिए, काम आता रहेगा।"

गाड़ी तुरंत चालू हो गई।

"कितने पैसे दे दूं?"

"शर्मिदा न करिए साहब। कोई और खिदमत होगी, तो मांग लूंगा।"

“कहीं छोड़ दूं तुम्हें?"

"नहीं हुजूर, चला जाऊंगा। मेम साहब को सलाम कहिएगा। उनको मेरी वजह से तकलीफ हुई होगी, मगर माफी मांग लीजिएगा। बूढ़ा आदमी हूं, माफ कर देंगी...और हां, अकील को न बताइएगा कि मैंने सेल्फ ठीक कर दिया है।"

अपना सफेद पलस्तरवाला पैर घसीटता हुआ वह सड़क के किनारे-किनारे चल दिया।

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