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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


मैं रिक्शा करके अकील के पास आया। वहां अजीब माहौल था। सहायक लड़के पेड़ के नीचे सो रहे थे और अकील एक मोटर की पिछली सीट पर बैठा सिगरेट पी रहा था।

"क्या बात है अकील साहब, छुट्टी मनाई जा रही है?"

"आइए, साहब, आइए।" अकील मोटर से उत्तर आया, "छुट्टी नहीं हड़ताल है।"

"हड़ताल! कैसी हड़ताल?"

"अरे साहब, अब क्या बताएं। साले चिरकुट के पीछे।"

"चिरकुट के पीछे! क्या मतलब...?"

"अरे साहब, वही चिरकुट, जिसने आपकी मोटर के दरवाजे चौपट कर दिए थे...उसने एक डिप्टी एस.पी. की मोटर भी ठीक कर दी।" कहकर अकील हंसने लगा।

“मतलब, उनके दरवाजे भी खराब कर दिए?"

"नहीं, उनके गियर का लीवर ठीक किया था। दूसरे दिन डी.एस.पी. साहब के हाथ में आ गया।"

मैं भी हंस पड़ा, “तुम लोगों का यह चिरकुट भी अजीब है।"

देर तक हंसी में साथ देने के बाद अकील ने पूछा, “कहिए, कैसे तकलीफ की?"

"अरे यार, गाड़ी का सेल्फ फंस गया है।"

"हूं।" अकील गंभीर हो गया, "ये तो मुश्किल हो गई।"

"अरे, किसी लड़के को भेज दो।"

“वही तो कह रहा था...।" अकील बोला, "बात ये है कि आजकल हड़ताल चल रही है। शहर के सारे मैकेनिक हड़ताल पर हैं। अरे हां, वो बात बताना तो मैं भूल ही गया। डी.एस.पी. साहब को चिरकुट दोबारा मिला, तो उन्होंने उसको पीट दिया। बहुत मारा। उसका एक पैर ही तोड़ दिया। बेचारा पलस्तर चढ़ाए घूम रहा है।"

"तो हड़ताल का क्या मतलब?"

"हम सब लोग डी.एस.पी. के पास गए कि उसका खर्चा दो। वो गालियां बकने लगा। इसके बाद हम लोगों ने हड़ताल कर दी। किसी की मोटर नही बनाएंगे।"

"किसी से क्या मतलब?"

"क्या करें साहब, थानेवालों ने रिपोर्ट तक नहीं लिखी। अब आप सब लोग कुछ करिए।"

"मर गए! यार, ये तो हद है! मेरी मोटर वहां फंसी पड़ी है।"

इसी वक्त रिक्शे पर चिरकट आ गया। अकील ने साहरा देकर उसे नीचे उतारा उसके एक पैर पर पलस्तर चढ़ा हुआ था और दोनों कुहनियों पर मक्यूरोक्रोम झलकाती हुई पट्टियां बंधी थीं। उतरते-उतरते उसने अकील से कहा, “सब जगह हड़ताल है। बस, जेतली, डागा और रतन साहब के गैराजों में काम हो रहा है। वहां भी बहुत कम मैकेनिक काम पर आए हैं। अरे साहब, आप?"

अकील ने कहा, “साले चिरकुट, तुम्हारे पीछे साहब की मोटर भी अटक गई। सेल्फ फंस गया है।"

“अब क्या बताएं साहब।" चिरकुट झेंपकर अपने पलस्तर के भीतर उंगली घुसाकर खुजली करने लगा।

अकील बोला, “साहब देखिए, आखिर गरीब आदमी है। काम में गलती किससे नहीं होती है।"

"अरे यार, गलती हो तो बात है। ये काम कम करता है, बिगाड़ता ज्यादा है। तुमने तो मेरी मोटर के दरवाजे देखे ही होंगे?" मैंने खीझकर कहा।

“ऐसा न कहिए साहब।" चिरकुट आगे आ गया, “सत्तर साल से ऊपर उमर हो गई है। आठ साल का था, जब जानसन साहब के साथ काम सीखना शुरू किया था...।"

“अबे किया होगा शुरू। तुमने जो किया, वो मेरे सामने है। काम नहीं हो पाता, तो मत करो।"

"कौन इस उमर में अपनी खुशी से काम करता है साहब। मजबूरी ही होती है, तभी आदमी काम भी करता है और लात भी खाता है। बुरा मत मानिएगा साहब, आप बड़े आदमी हैं। बार-बार मोटर बिगड़ेगी, बार-बार ठीक कराएंगे, फिर भी आपका घर भरा-पूरा रहेगा। मुझे आपके पैंतालीस न मिलें, तो फाके होंगे।"

“अमां हद कर दी तुमने! रियासत तक ने तो तुम्हें पीटा था।" मैंने गुस्से में कहा।

चिरकुट ने तीखेपन से कुछ कहने के लिए मुंह खोला, फिर रुक गया। उसके बहुत मैले चेहरे पर उदासी की एक मोटी परत चढ़ गई, "हां, इसने मुझे मारा था। दो-तीन झापड़ मारे थे और बहुत-सी गालियां दी थीं। फिर मुझे ढावे पर ले जाकर चाय पिलाई और दो समोसे खिलाए। चलते वक्त इसने फिर मारा था, मगर टांग नहीं तोड़ी थी मेरी। मेरी टांग नहीं तोड़ी थी, समझे बाबू साहब! टांग तोड़कर तुम लोगों ने तो मोहताज कर दिया मुझको। अपाहिज!"

"हम लोगों ने! मतलब?" मैं उसके बयान पर बौखला गया।

"अरे छोड़िए साहब, छोड़िए।" चिरकुट मुड़कर लंगड़ाता हुआ पेड़ की तरफ चल दिया।

अकील ने मेरी मोटर का काम न कर पाने के लिए एक बार फिर माफी मांगी। मैं घर वापस आ गया। मुझे यकीन था कि बीवी एक बार फिर झींकेगी, मगर वह शायद किसी काम में व्यस्त थी।

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