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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


रामानुज ने कहा, तूने झंझट ही नहीं की प्रेम की? उसने कहा; मैं बिल्कुल सच कहता हूं आपसे।
वह बेचारा ठीक ही कह रहा था। क्योंकि धर्म की दुनिया में प्रेम एक डिस्क्वालिफिकेशन है, एक अयोग्यता है।
तो उसने सोचा कि अगर मैं कहूं किसी को प्रेम किया है, तो वे कहेंगे कि अभी प्रेम-वेम छोड़, यह राग-वाग छोड़, पहले इन सबको छोड़कर आ, तब इधर आना। तो उस बेचारे ने किया भी हो तो वह कहता गया कि मैंने नहीं किया है। ऐसा कौन आदमी होगा, जिसने थोड़ा-बहुत प्रेम नही किया हो?

रामानुज ने तीसरी बार पूछा कि तू कुछ तो बता, थोड़ा-बहुत भी, कभी किसी को? उसने कहा, माफ करिए, आप क्यों बार-बार वही बातें पूछे चले जा रहे हैं? मैने प्रेम की तरफ आख उठाकर नहीं देखा। मुझे तो परमात्मा को खोजना है।

तो रामानुज ने कहा; मुझे क्षमा कर, तू कहीं और खोज। क्योंकि मेरा अनुभव यह है कि अगर तूने किसी को प्रेम किया हो तो उस प्रेम को फिर इतना बड़ा जरूर किया जा सकता है कि वह परमात्मा तक पहुंच जाए। लेकिन अगर तूने प्रेम ही नहीं किया है तो तेरे पास कुछ है नही, जिसको बड़ा किया जा सके। बीज ही नही है तेरे पास जौ वृक्ष बन सके। तो तू जा कहीं और पूछा।

और जब पति और पत्नी में प्रेम न हो, जिस पत्नी ने अपने पति को प्रेम न किया हो और जिस पति ने अपनी पत्नी को प्रेम न किया हो, वे बेटों को, बच्चों को प्रेम कर सकते हैं तो आप गलती में हैं। पत्नी उसी मात्रा में बेटे को प्रेम करेगी, जिस मात्रा में उसने अपने पति को प्रेम किया है। क्योंकि यह बेटा पति का फल है; उसका ही प्रतिफलन है, उसका ही रिफ्लेक्शन है। यह एक बेटे के प्रति जो प्रेम होनेवाला है, वह उतना ही होगा जितना उसने पति को चाहा और प्रेम किया हो! यह पाते की ही मूर्ति है जो फिर नई होकर वापस लौट आई है। अगर पति के प्रति प्रेम नहीं है, तो बेटे के प्रति प्रेम सच्चा कभी नहीं हो सकता। और अगर बेटे को प्रेम नहीं किया गया-पालना, पोसना और बड़ा कर देना प्रेम नहीं है-तो बेटा मां को कैसे प्रेम कर सकता है, बाप को कैसे प्रेम कर सकता है?

यह जो यूनिट है जीवन का-परिवार, यह विषाक्त हो गया है। सेक्स को दूषित कहने से, कंडेम करने से, निंदित करने से।
और परिवार ही फैलकर पूरा जगत है, पूरा विश्व है।
और फिर हम कहते हैं कि प्रेम बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ता है। प्रेम कैसे दिखाई पड़ेगा? हालांकि हर आदमी कहता है कि मैं प्रेम करता हूं। मां कहती है, पत्नी कहती है, बाप कहता है, भाई कहता है, बहन कहती है, मित्र कहते हैं कि हम
प्रेम करते हैं। सारी दुनिया में हर आदमी कहता है कि हम प्रेम करते हैं। और दुनिया में इकट्ठा देखो तो प्रेम कहीं दिखाई ही नहीं पड़ता! इतने लोग अगर प्रेम करते हैं तो दुनिया में तो प्रेम की वर्षा हो जानी चाहिए थी। प्रेम के फूल ही फूल खिल जाने चाहिए थे। प्रेम के दिए ही दिए जल जाते। घर-घर प्रेम का दीया होता तो दुनिया में इकट्ठी इतनी रोशनी होती प्रेम की।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga