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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


लेकिन वहां तो घृणा की रोशनी दिखाई पड़ती है, क्रोध की रोशनी दिखाई पड़ती है, युद्धों की रोशनी दिखाई पड़ती है। प्रेम का तो कोई पता नही चलता। झूठी है यह बात और यह झूठ जब तक हम मानते चले जाएंगे तब तक सत्य की दिशा मे खोज भी नहीं हो सकती। कोई किसी को प्रेम नही कर रहा है।

और जब तक काम के निसर्ग को परिपूर्ण आत्मा से स्वीकृति नही मिलतीं है, तब तक कोई किसी को प्रेम कर भी नहीं सकता। मैं आपसे कहता हूं कि काम दिव्य है, डिवाइन है।
सेक्स की शक्ति परमात्मा की शक्ति है, ईश्वर की शक्ति है।
और इसीलिए तो उससे ऊर्जा पैदा होती है और नया जीवन विकसित होता है। वही तो सबसे रहस्यपूर्ण शक्ति है, वही तो सबसे ज्यादा मिस्टीरियस फोर्स है। उससे दुश्मनी छोड़ दें। अगर आप चाहते हैं कि कभी आपके जीवन में प्रेम की वर्षा हो जाए तो उससे दुश्मनी छोड़ दें। उसे आनंद से स्वीकार करें। उसकी पवित्रता को स्वीकार करें, उसकी धन्यता को स्वीकार करें। और खोजें उसमे और गहरे और गहरे-तो आप हैरान हो जाएंगे। जितनी पवित्रता से काम की स्वीकृति होगी, उतना ही काम पवित्र होता चला जाता है और जितनी अपवित्रता और पाप से की दृष्टि से काम से विरोध होगा, काम उतना ही पापपूर्ण और कुरूप होता चला जाता है।

जब कोई अपनी पत्नी के पास ऐसे जाए जैसे कोई मंदिर के पास जाता है, जब कोई पत्नी अपने पति के पास ऐसे जाए जैसे सच में कोई परमात्मा के पास जाता है। क्योंकि जब दो प्रेमी काम से निकट आते हैं जब वे स भोग से गुजरते है, तब सच में ही वे परमात्मा के मंदिर के निकट से गुजर रहे हैं। वही परमात्मा काम कर रहा है, उनकी उस निकटता में। वही परमात्मा की सृजनशक्ति काम कर रही है। और मेरी दृष्टि यह है कि मनुष्य को समाधि का ध्यान का जो पहला अनुभव मिला है कभी भी इतिहास मे, तो वह संभोग के क्षण में मिला है और कभी नही। संभोग के क्षण में पहली बार यह स्मरण आया है आदमी को कि इतने आनंद की वर्षा हो सकती है।
और जिन्होंने सोचा, जिन्होंने मेडिटेट किया, जिन लोगों ने काम के सबंध पर और मैथुन पर चिंतन किया और ध्यान किया, उन्हें यह दिखाई पड़ा कि काम के क्षण में, मैथुन के क्षण में संभोग के क्षण में, मन विचारों से शून्य हो जाता है। एक क्षण को मन के सारे विचार रुक जाते हैं। और वह विचारों का रुक जाना और वह मन का ठहर जाना ही आनद की वर्षा का कारण होता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga