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वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

उसने स्वयं अपने आपको उसने एक बार बायीं ओर, और फिर दायीं ओर घूमकर अपने पिछवाड़े का हर संभव मुआयना किया। प्रचण्ड गरमी के कारण उसकी पीठ पर घमौरियों के छत्ते कई जगह दिख रहे थे। गरमी इतनी अधिक थी कि सभी के शरीरों में न जाने कहाँ-कहाँ घमौरियाँ निकल रही थीं।


अचानक कामिनी का ध्यान अपने शरीर से हटा तो उसे भजन फिर याद आया और वह पुनः भजन गाने लगी। धीरे-धीरे भजन गुनगुनाते हुए वह ड्रेसिंग टेबिल के सामने पड़े स्टूल पर बैठकर अपने बालों से खेलते हुए उन्हें सुखाने लगी। बाहर कहीं से किसी लकड़ी के पट्टे के टकराने जैसी आवाज आ रही थी, जैसे दो लकड़ियाँ आपस में बड़ी जल्दी-जल्दी टकरा रही हों। उसने सोचा कोई कठफोड़वा भी हो सकता है, पर इतनी ऊँची मंजिल पर! वह एक बड़ी तौलिया अपने कंधे के दोनों ओर तथा पीठ पर डाले हुए टहलती हुई पलंग के पैताने की ओर से होती हुई बेडरूम के दरवाजे पर पहुँची। आम तौर पर बेडरूम का दरवाजे हमेशा ही खुला रहता था। घर में अकेले रहने वाले व्यक्ति के लिए अपार्टमेंट के अंदर वाले दरवाजे क्या बंद और क्या खुले? आज दरवाजों के पीछे सफाई करने के कारण एक दरवाजा लगभग पूरा बंद था और दूसरा अधखुला था।

आगे बढ़कर उसने दरवाजा पूरा खोल दिया। सामने का दृश्य देखकर उसके मुँह से चीख निकलने ही वाली थी कि किसी तरह उसने अपने मुँह को ढंक कर बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज को रोका। ड्राइंग रूम में रखे टीवी के सामने बैठा पाँचवीं मंजिल का राजू वीडियो गेम खेलने में तल्लीन था। हैडफोन के बड़े-बड़े गोलों ने उसके दोनो कानों को ढंक रखा था। एक सेकेण्ड से कम के समय में कामिनी ने अपना तौलिया अपने बदन के सामने कर लिया और वापस बेडरूम के दरवाजे के पीछे हो गई। वह दरवाजे के पीछे बेड पर धम्म से बैठ गई। उसकी साँसे अचानक बहुत तेज धौंकनी की तरह चलने लगी थीं और दिल इतना तेज धड़क रहा था कि ऐसा लगता था, जैसे बाहर ही आ जायेगा।

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